सार छंद
मनखे के स्वारथ छोड़े ले,धरा सरग बन जाही।
जइसन सुख वो सोंचे नइ हे, तइसन तक सब पाही।
धरती पहिली सरग रहिस हे,रहिस देव के डेरा।
सरग परी मन घूमे आवय,जावय करके फेरा।
निरमल पावन जलधारा हर,कलकल गीत सुनावय।
चिरई चिरगुन पेड़ जनावर,सबके मन ला भावय।
नदिया के ये पानी जम्मो,आज प्रदूषित होगे।
मनखे के करनी ला देखव,सबो जीव हर भोगे।
स्वच्छ हवा तनमन ला मोहय,जीव जगत हरसावय।
जंगल झाड़ी बाग बगीचा,झूम झूम लहरावय।
आज पेड़ हर सबो कटागे, धुँआ गगन भर छागे।
मनखे के स्वारथ के सेती, अइसन दिन हर आगे।
माटी ले सोना उपजावन,आज रेत कस होगे।
बिना जहर अब कुछ नइ होवय,करनी मनखे भोगे।
पहिली जइसे दिन लायेबर, पेंड़ लगावव भाई।
जिनगी खातिर स्वारथ छोड़व,पाटव जिनगी खाई।
रचना-दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार
बहुत बढ़िया सृजन हे भाई जी
ReplyDeleteपर्यावरण ऊपर केन्द्रित सुग्घर छंद आदरणीय वर्मा जी
ReplyDeleteगुरुदेव अनंत बधाई👌👏💐
ReplyDeleteबहुत सुग्घर संदेश आदरणीय👌💐
बहुत सुन्दर गुरुदेव जी
ReplyDeleteसुग्घर सार छन्द
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ऊँचा भाव गुरुदेव बधाई
ReplyDeleteकाहेन के सुग्घर सार छंद सर
ReplyDeleteसार छंद मा सार बात तँय बढ़िया इहाँ मढ़ाये।
ReplyDeleteतइहा अउ अबके तुलना कर सबके चेत चढ़ाये।।
सोरा आना बात सही ए पर्यावरण बचा लौ।
पहिली कस धरती माई ला सुग्घर बने सजा लौ।।
भाई दिलीप के सुंदर सार छंद बर गाड़ा गाड़ा बधाई उनला
👏👏🌹🌹👍👌🙏
बहुत बढ़िया सार छंद , प्रस्तुत करे हव, भावपूर्ण लेखन बर, बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना, बधाई
ReplyDeleteबहुत शानदार रचना सर
ReplyDeleteबहुत शानदार रचना सर
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