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Wednesday, November 20, 2019

सार छंद -दिलीप वर्मा


सार छंद

मनखे के स्वारथ छोड़े ले,धरा सरग बन जाही।
जइसन सुख वो सोंचे नइ हे, तइसन तक सब पाही।

धरती पहिली सरग रहिस हे,रहिस देव के डेरा।
सरग परी मन घूमे आवय,जावय करके फेरा।

निरमल पावन जलधारा हर,कलकल गीत सुनावय।
चिरई चिरगुन पेड़ जनावर,सबके मन ला भावय।

नदिया के ये पानी जम्मो,आज प्रदूषित होगे।
मनखे के करनी ला देखव,सबो जीव हर भोगे।

स्वच्छ हवा तनमन ला मोहय,जीव जगत हरसावय।
जंगल झाड़ी बाग बगीचा,झूम झूम लहरावय।

आज पेड़ हर सबो कटागे, धुँआ गगन भर छागे।
मनखे के स्वारथ के सेती, अइसन दिन हर आगे।

माटी ले सोना उपजावन,आज रेत कस होगे।
बिना जहर अब कुछ नइ होवय,करनी मनखे भोगे।

पहिली जइसे दिन लायेबर, पेंड़ लगावव भाई।
जिनगी खातिर स्वारथ छोड़व,पाटव जिनगी खाई।

रचना-दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार

12 comments:

  1. बहुत बढ़िया सृजन हे भाई जी

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  2. पर्यावरण ऊपर केन्द्रित सुग्घर छंद आदरणीय वर्मा जी

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  3. गुरुदेव अनंत बधाई👌👏💐
    बहुत सुग्घर संदेश आदरणीय👌💐

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  4. बहुत सुन्दर गुरुदेव जी

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  5. बहुत सुन्दर ऊँचा भाव गुरुदेव बधाई

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  6. काहेन के सुग्घर सार छंद सर

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  7. सार छंद मा सार बात तँय बढ़िया इहाँ मढ़ाये।
    तइहा अउ अबके तुलना कर सबके चेत चढ़ाये।।
    सोरा आना बात सही ए पर्यावरण बचा लौ।
    पहिली कस धरती माई ला सुग्घर बने सजा लौ।।
    भाई दिलीप के सुंदर सार छंद बर गाड़ा गाड़ा बधाई उनला
    👏👏🌹🌹👍👌🙏

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  8. बहुत बढ़िया सार छंद , प्रस्तुत करे हव, भावपूर्ण लेखन बर, बहुत बधाई

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  9. बहुत शानदार रचना सर

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  10. बहुत शानदार रचना सर

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