सार छंद : मथुरा प्रसाद वर्मा
राधा बोलिस मोहन काली, होरी खेले आबे ।
रास रचाबे हमर गाँव मा, रंग गुलाल उड़ाबे।
रद्दा देखत खड़े रहूं रे, फ़रिया पहिरे सादा ।
आना परही तोला काली, कर ले पक्का वादा।
रसिया रे नइ जानस का, मोर गाँव बरसाना ।
करिया कारी कालिंदी के, तिरेतिर चले आना।
हे ब्रज राजा मोरमुकुट हा, तोरे माथा सोहे।
काने के कुंडल हा तोरे, मन ला मोरे मोहे।
फेर बँसी ला तँय झन लाबे, मोला अबड़ सताथे ।
सुन बसरी के धुन ला कान्हा, सब गोपी मन आथे।
बनमाला ला पहिर महुँ हा, करहुँ तोर अगुवानी।
तोरे सँग मा कइहीं मोला, सबझन राधा रानी ।
मनमोहन हा बोलिस राधा, जब जब सुरता करबे।
तोर मया मा बँधाए आहूँ, धीरज थोरिक धर ले।
गोरी मोरे रंग रंग के, लाल लाल हो जाबे।
मँय हा तोरे राधा बनहूँ , कृष्णा तहूँ कहाबे।
मथुरा प्रसाद वर्मा
ग्राम कोलिहा, बलौदाबाजार
8889710210
बड़ सुग्घर सृजन, बधाई
ReplyDeleteबहुते सुग्घर सर,बहुत-बहुत बधाई
ReplyDeleteहोरी के सुंदर चित्रण,बधाई
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सार छंद।हार्दिक बधाई
ReplyDeleteवाहहहहह सुग्घर रचना
ReplyDeleteअति सुन्दर सर जी
ReplyDeleteवाह्ह अब्बड़ सुग्घर रचना भइया बधाई 🙏🙏
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सृजन हे भाई
ReplyDeleteअति सुन्दर रचना सर
ReplyDeleteअति सुन्दर रचना सर
ReplyDeleteअनंत बधाई भाई👏👌💐💐
ReplyDeleteराधा मोहन के सुग्घर बरनन👏👏👍💐