एकादशी देवउठनी के,छाये खुशी अपार।
घरघर तोरन ताव सजे हे,गड़े हवे खुशियार।
रिगबिगात हे तुलसी चँवरा,अँगना चँउक पुराय।
तुलसी सँग मा सालि-ग्राम के,ये दिन ब्याय रचाय।
कुंकुम हरदी चंदन बंदन,चूड़ी चुनरी हार---।
एकादशी देवउठनी के,छाये खुशी अपार।
ब्याह रचाके पुण्य कमावै,करके कन्यादान।
कांदा कूसा लाई लाड़ू,खीर पुड़ी पकवान।
चढ़ा सँवागा नरियर फाटा,बन्दै बारम्बार---।
एकादशी देवउठनी के,छाये खुशी अपार।
जागे निंदिया ले नारायण,होवय मंगल काज।
बर बिहाव अउ मँगनी झँगनी,मुहतुर होवै आज।
मेला मड़ई मातर जागे,बहय मया के धार--।
एकादशी देवउठनी के,छाये खुशी अपार।
लइका लोग सियान सबे झन,नाचे गाये झूम।
मीत मितानी मया बढ़ावय,गाँव गली मा घूम।
करे जाड़ के सबझन स्वागत,सूपा चरिहा बार।
एकादशी देवउठनी के,छाये खुशी अपार--।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
सुग्घर भैया जी
ReplyDeleteवाहहहहह!वाहहह!बड़ सुग्घर खैरझिटिया जी
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