शंकर छंद - बोधन राम निषादराज
मोर पिरोहिल
(1)
आजा अब तँय झन तरसाना,आज अँगना मोर।
करदेबे सुन्ना कुरिया ला,आ के तँय अँजोर।।
बादर बइरी गरजत रहिथे,जीव धड़कत जाय।
रहि रहि मोला सुरता आथे,मोर मन ललचाय।।
(2)
ए ओ मैना सुग्घर तोरे, रूप हा मोहाय।
काम-धाम मा मन नइ लागै,तोर सुरता आय।।
मटकत गली-खोर मा रेंगस,गजब नखरा तोर।
देख-देख के तोला बइरी,जरय जिवरा मोर।।
(3)
रंग-रंग के खोपा पारे, गजरा तँय लगाय।
ऊँचा हिल के सेंडिल पहिरे,देख तँय मुस्काय।।
कोयल जइसे गुरतुर बोली,मोर मन ला भाय।
मीठ जलेबी सिट्ठा लागे, खाय ते पतियाय।।
छंदकार - बोधन राम निषादराज "विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला - कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
मोर पिरोहिल
(1)
आजा अब तँय झन तरसाना,आज अँगना मोर।
करदेबे सुन्ना कुरिया ला,आ के तँय अँजोर।।
बादर बइरी गरजत रहिथे,जीव धड़कत जाय।
रहि रहि मोला सुरता आथे,मोर मन ललचाय।।
(2)
ए ओ मैना सुग्घर तोरे, रूप हा मोहाय।
काम-धाम मा मन नइ लागै,तोर सुरता आय।।
मटकत गली-खोर मा रेंगस,गजब नखरा तोर।
देख-देख के तोला बइरी,जरय जिवरा मोर।।
(3)
रंग-रंग के खोपा पारे, गजरा तँय लगाय।
ऊँचा हिल के सेंडिल पहिरे,देख तँय मुस्काय।।
कोयल जइसे गुरतुर बोली,मोर मन ला भाय।
मीठ जलेबी सिट्ठा लागे, खाय ते पतियाय।।
छंदकार - बोधन राम निषादराज "विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला - कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
वाह वाह बहुत खूब गुरुदेव
ReplyDeleteबढ़िया रचना भैया जी
ReplyDeleteबहुत सुग्घर सादर नमन गुरुदेव
ReplyDeleteगजब सुग्घर रचना सर
ReplyDeleteगजब सुग्घर रचना सर
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