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Sunday, March 22, 2020

कोरोना वायरस ले बचाव अउ जन जागरण बर छंद परिवार के गोहार

कोरोना वायरस ले बचाव अउ जन जागरण बर छंद परिवार के गोहार

आल्हा छंद*-आशा देशमुख

ये कोरोना ये कोरोना,काबर तँय दुनिया मा आय।
नाम सुनत हे जेहर तोरे,ओखर पोटा काँपत जाय।

थर थर काँपत हावय जग हा, कइसे सबके प्राण बचाय।
छूत वायरस घूमत हावय,जनता घर मा हवय लुकाय।

ताला लगगिस देश प्रान्त मा, गाँव शहर बइठे चुपचाप।
अतिक मचावत हवच तबाही,जैसे जग ला मिलगे श्राप।

घर मा सब बैठागुँर होगे, काम धाम सब होगय बन्द।
रोजी रोटी मार खात हे,धंधा होगे हावय मंद।

देश प्रशासन जुटे हवय सब,विनती करत हवय सरकार।
विकट आपदा आये हावय,सब झन होगे हे लाचार।

रोग भगाना हे तब सब झन,साथ निभावव रहिके दूर।
कड़ी टूटही तब कोरोना,भागे बर होही मजबूर।

देवदूत कस डॉक्टर मन हें, सेवा करत हवँय दिन रात।
डटे हवँय सब कर्मवीर मन,बिगड़े झन अब तो हालात।

युद्ध महामारी के फइले ,घर मा रहिके जीतव जंग।
देखत हे ये विनाश लीला,यम के दूत हवँय सब दंग।


विकट भयंकर स्थिति आगय ,जनता रहव देश के साथ।
मास्क लगावव रहव सुरक्षित,अउ धोवव जी दिनभर हाथ।


आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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आल्हा छंद:- महेंद्र कुमार बघेल

(करव हियाव)

दुनिया के मौसम ला देखत, अब प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाव।
हल्का अउ सादा खाना ला, निसदिन भोजन मा अपनाव।।

खानपान के चेत करे बर , जेकर मन मा आही बोध।
रोग रई ला खुद भगाय बर, तब तन हा करही प्रतिरोध।।

धरना परही नेक नियत ला, गलत सोच नाली मा फेंक।
डगमग झन होवय अंतस हर,बाॅंध छोर के पहिली छेंक।।

रगड़ रगड़ के धोवत माॅंजत, रोग रई ला तुरत भगाव।
बासी के सुरता ला छोड़व, गरम गरम ताजा बस खाव।

वन पहाड़ नदिया नरवा ला, मिलजुल करना परही साफ।
वरना पर्यावरण घलव अब, बिल्कुल नइ कर पाही माफ।।

वजन बढ़े झन घर मा बइठे, करना परही सोच विचार।
मोल मेहनत के बड़ होथे,जिनगी मा चल तहूॅं उतार।।

नख मुड़ ले अपने काया के ,सोवत जागत करव हियाव।
खई खजानी बाहिर वाले, कभू भूल के अब झन खाव।।

ताजा कहिके रोज खात हें, फेर साग मा दवा छिताय।
जान बूझ के परबुधिया कस,पइसा देके रोग बिसाय।।

येती ओती देख ताक के ,साफ सफाई ला पहिचान।
जब उज्जर रहि घर दुवार हर ,तब कर पाबो गरब गुमान।।

छंदकार-महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव जिला-राजनांदगांव

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 आल्हा छंद :- कौशल कुमार साहू

कोरोना

चीन देश ले दुनिया भर मा,कोरोना हा कहर मँचाय।
देख दशा राजा चिंता मा,परजा कइसे जान बँचाय।।

जादू -मंतर नोहय टोना, छूत बिमारी येला जान।
सर्दी सँघरा सुख्खा खाँसी, जर बुखार येकर पहचान।।

सरग सिधारे कतकों मनखे,रोकथाम बर करौ उपाय।
सेनिटाइजर मास्क लगावा,डॉक्टर मन हा रोज बताय।।

साफ- सफाई साबुन मलमल, धोवव हाथ ल बारम्बार।
गला मिलौ झन तीन फीट ले,करौ दूर ले जय जोहार।।

पाँव अपन झन बाहिर राखव,घर मा राखव लइका लोग।
दरवाजा मा खिंचलव रेखा, नइ आवय बरपेली रोग।।

तजौ माँस बन शाकाहारी, झड़कव भोजन ताते-तात।
जुरमिल ठानव जमके मारव,ये रकसा ला लाते-लात।।

गोत धरम नइ पूछय ककरो, कोरोना के नइये जात।
संकट भारी मनखे मनखे, सरपट दँउड़य दिन अउ रात।।

अपन जान ला दाँव लगाके,रोगी मन के करे निदान।
बिपत काल मा संग खड़े हे,डॉक्टर सँउहे जस भगवान।।

हिम्मत राखव धीरज राखव, काहत हे सब ला सरकार।
सुरमा बनके जंग जीत लौ,कोरोना के होवय हार।।

अपन देश ला जिन्दा राखव,देश मया के गावव गीत।
अरज करत हे "कौशल" तुँहरे,बनौ बिपत मा सबके मीत।।

छंदकार :- कौशल कुमार साहू
निवास : सुहेला (फरहदा)
जिला-बलौदाबाजार-भाटापारा, छत्तीसगढ़

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आल्हा छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


याद जमाना जुग जुग रखही, कोरोना के नरसंहार ।
मन्दिर मस्जिद बन्द रहिस हे, बन्द चर्च गरुद्वारा द्वार ।।

वो भगवान कहाँ छुपगे जब, रहिस देश  मा संकट घोर ।
अंधभक्त मन दूर लुकागे, कोरोना जब  मारिस जोर ।।

राहत बर बस हाथ बढ़ाये, देखव परखव तुम विज्ञान ।
इही बात ला मँय तो सोंचव, होथे का सच मा भगवान ।।

नाम बड़े कब जग मा होथे, होथे बड़का सच मा काम ।
करम करे से सउँहत मिलथे, राम रहीम यीशु गुरु धाम ।।

मोर लेखनी के हे कहना, बनव सबो जी करम प्रधान ।
करम करे तब पेट भरे हे, भरय नहीं कोई भगवान ।।

ना तो मँय हा धर्म विरोधी, ना मँय नास्तिक सुन भगवान ।
सच्चाई ला धर मँय जीथँव, मोर इही असली पहिचान ।।

इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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आल्हा  छंद-अश्वनी

जब जब आवय संकट भारी,झट हो जावन सब तैयार|
जब जब फैले हे महमारी,तब तब होये हे तकरार||

जान बचाये खातिर आवव,जनता कर्फ्यू सफल बनाव|
घर भीतर बन रहव सुरक्षित,सेनेटाइज बने कराव|

करे लाकडाउन हे शासन ,जन जन के ये बने बचाव|
अपन देश के खातिर सहिलव,कुछ दिन बर  जी नीत निभाव|

 लगें हवँय तत्पर सेवा बर,फर्ज निभा देवन उत्साह||
झन जावन हम घर ले बाहिर,कोरोना बर सही सलाह||

डाक्टर-पुलिस सफाई अमला,अउ मुखिया के राखव मान|
विपदा आघू कवच बने हे,इमन देश के आवँय शान|

बंद रखें मंदिर गुरुद्वारा,नेक पहल के बड़ सम्मान|
हवय बरोबर हिस्सेदारी,सुखी रहँय मजदूर किसान||

पारा बस्ती राज देश के,जब-जब आवय संकट जान|
सरकारी कारज के पालन,देशहित बर धरव जी ध्यान||

बाढ़य दिन दिन भाईचारा, मनखे ले मनखे के  काम ||
 समता सुमता  सब मा राहय,तभे देश के होही नाम|

अश्वनी कोसरे "रहँगिया"
छंद साधक कक्षा 9

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 रोला छंद - केवरा यदु"मीरा"

मोदी काहय बात,बने मन मा धर लेहू।
घर मा रहि दिन रात, खोर के झन सुध लेहू।।
घेरी बेरी हाथ,तहूँ मन धोवत रहिहू।
पटका मा मुँह बाँध, अपन बूता ला करहू ।।

कहिनी कथा सुनाय,अपन मन ला बहिलावव।
दार भात ला खाव, माँस ला अभी   भुलावव।

थोरिक दिन के बात, अभी घर मा तुम राहव।
जिनगी हे अनमोल,बात ला सबझन मानव।।

कइसन दिन हा आय, मने मा गुनव जानव।
महामारी कस मान, कथे गा सिरतो मानव।।

खाँसी सरद बुखार,जाँच तुरते करवावव।
ताते पानी भात, ध्यान धर के तुम खावव।।

चीनी चिँग ले आय,गजब रोवावत हावय।
डाक्टर  ग भगवान, सबो के जान बचावय ।।

आके देखव राम, मचे हे हाहाकारी।
जोहन तोरे बाट, जगत के पालन हारी।।

धर के तीर कमान,आज आओ रघुराई।
बिपदा के हे भार, लगे अब बड़ दुखदाई।।

छंदकारा - केवरा यदु "मीरा "
राजिम

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 आल्हा- दिलीप कुमार वर्मा

फइलत हावय जे महमारी, तेखर कथा सुनावँव आज।
कतका खतरा बाढ़त हावय, मण्डरावत हे बनके बाज।

जाने कोन जगा ले आये, कुछ दिन मा दुनिया भर छाय।
दहलावत हे रार मचावत, जाने कहाँ तलक ये जाय।

सात समंदर पार पहुँचगे, नइ बाँचत हे कोनो छोर।
कोरोना के महमारी ले, दुनिया भर मा माते सोर।

जिहाँ जिहाँ कोरोना जावय, तिहाँ तिहाँ बनगे समशान।
मरे रोवया नइ बाँचत हे, शहर नगर होगे वीरान।

अजर अमर अविनासी लागय, अमर बेल जस बाढ़त जाय।
छूत बरोबर ये महमारी, साबुत मनखे तक ला खाय।

बात कहत लाचार करत हे, छूते ही तन मा आ जाय।
एक जगा ले दुसर जगा मा, वस्तु तको मा चढ़ के आय।

दिखय नही ये ततका छोटे, पर मनखे ला मात खवाय।
ये तन आवत स्वांसा रुक जय, तड़फ तड़फ मनखे मर जाय।

कतको मनखे खटिया धरलय, कतको मनखे यमपुर जाय।
पर मनखे कहना नइ मानय, अइसन सँवहत रहे झपाय।

साँस लेत मा हो परसानी, सुक्खा खाँसी सर्दी आय।
अउ बुखार मा तन हर तीपय, लच्छन येखर इही बताय।

अइसन हे ता जाँच करावव, डॉक्टर ले तुरते मिल आव।
कहना ला डॉक्टर के मानव, कोरोना ले जान बचाव।

दुनिया भर समझावत हावय, घर ले बाहिर झन गा जाव।
जभे जरूरी तब्भे निकलव, मुँह मा सुग्घर मास्क लगाव।

भीड़ भाड़ ले दुरिहा राहव, रहव एक मीटर जी दूर।
बार बार साबुन ले भाई, धोना हावय हाथ जरूर।

कोरोना तब घर नइ आवय, शासन के कहना ला मान।
अपन सुरक्षा हाथ अपन हे, खतरा ला अब तो पहिचान।

डॉक्टर जान लगाये हावय, खड़े करोना यम के बीच।
नर्स तको मन साथ चलत हे, जिनगी मा अमरित दय छींच।

खड़े सिपाही छाती ताने, कोरोना ला दय ललकार।
तुहरो जान बचाये खातिर, समझावत हे बारम्बार।

भूत लात के बात न माने, देत सिपाही डंडा मार।
बिन बुद्धि के मनखे मन ले, देव तको हर जावय हार।

पर इन ला हे जान बचाना, करना अपन हवय जी काम।
आसा हे कोरोना मरही, तब्भे पाही यहू अराम।

आशा ले आकाश थमे हे, आशा ले बरसा हो जाय।
रख लव आशा मन मा भाई, कोरोना हर बच नइ पाय।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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कुलदीप सिन्हा: कोरोना बर जनजागरण
आल्हा छंद

आवव संगी आज सबो मिल, कोरोना ला देवव मात।
येती ओती चारों कोती, बिगड़े हावय गा हालात।।

घर के भीतर रहिके भइया, करना तुम ला हवे बचाव।
बांध तोबरा मुंह मा सब झन, कोरोना ला दूर भगाव।।

साफ सफाई खुद के राखव, रहि रहि के तुम धोवव हाथ।
छींक संग यदि आथे खांसी, रख रुमाल गा हरदम साथ।।

गरम गरम गा पीयो पानी, खावव खाना ताते तात।
अपनो अपनो बीच घलो गा, करहू अब दुरिहा ले बात।।

हाथ मिलाना बंद करव अब, रहि के दुरिहा करो प्रनाम।
जेन तोबरा बांधे हावव, वोला बदलव गा हर शाम।

कहूं हाट ले सब्जी लाथव, धो धो के करहू उपयोग।
अइसन तुहर करे ले भइया, दुरिहा होही जम्मो रोग।।

हल्का मा झन लेवव कोनो, रोग भयंकर इन ला जान।
दिखय नहीं गा जल्दी लक्षण, भीतर भीतर लेथय प्रान।।

इन ला दूर करे बर अब तो, भिड़े हवय देखव सरकार।
येखर सेती दुनिया भर मा, माते हावय हाहाकार।।

आंख मा आंसू भर के मोदी, सब जनता मन ला समझाय।
भारतवासी मन बर वोहा, जइसे देव दूत बन आय।

अतना मा यदि नइ मानय जे, होही वोखर बंठाधार।
खुद मरही ते मरही संगी, संग पीस जाही संसार।।

"दीप" कहत हे उन ला सुन लो, करव न लक्ष्मण रेखा पार।
रहो मस्त जी घर मा अपने, बांटव सब मिल मया दुलार।।

छंदकार
कुलदीप सिन्हा "दीप"
कुकरेल ( सलोनी ) धमतरी
छत्तीसगढ़

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 कुण्डलियाँ छन्द-राम कुमार चन्द्रवंशी
1
कोरोना हर भागही,बात सुनौ धर माथ।
चलव स्वदेशी रीत मा,तजौ मिलाना हाथ।
तजौ मिलाना हाथ,हवै बड़ रोग पदोना।
छोड़व माँसाहार,तभे भठही कोरोना।।
2
साबुन मा सब हाथ मुँह,धोवव बारंबार।
होही पक्का जानलौ,कोरोना के हार।
कोरोना के हार,जीतना जंग हवै अब।
हो जावव तैयार,हाथ धो साबुन मा सब।।
3
चलौ लगा के मास्क सब,होगे बहुत मजाक।
अलकरहा ये रोग हे,हवै जमावत धाक।
हवै जमावत धाक,लेव दम दूर भगाके।
बाँचव सब ल बचाव,सबो मन मास्क लगा के।।

रचनाकार-राम कुमार चन्द्रवंशी
ग्राम+पोष्ट-बेलरगोंदी(छुरिया)
जिला-राजनांदगाँव
छत्तीसगढ़
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 चौपाई-बोधन निषाद

बच के रहना रे संगवारी।
फइले हावय ये बीमारी।।
नाम करोना चीनी हावै।
सर्दी खाँसी संगे आवै।।

अपन सुरक्षा खुद हे करना।
एखर ले काबर हे डरना।
भीड़ भाड़ मा नइ हे जाना।
नाक मुँहूँ मा मास्क लगाना।।

हाथ जोर ले दुरिहा रइहू।
हाय हलो झन तिर मा करहू।।
गाँव कहूँ झन जावव संगी।
कोरोना झन लावव संगी।।

रचनाकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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           पोखन लाल जायसवाल

हाँसत खेलत जिनगी मा अब,आगे कोरोना हे।
हवय बाँचना आज सबो ला,आए कोरोना हे।

मना करत हावे सबझन अब,कुकरी नइ खाना हे।
घेरी भेरी घर ले फोकट,बाहिर नइ जाना हे।
थोरिक सुवाद लेहे खातिर,जिनगी नइ खोना हे।
हवय बाँचना आज सबो ला,आए कोरोना हे।

ठउर ठउर मा टँगे हवय सब,रंग रंग के परचा।
एती ओती चारों डाहन,करत हवय सब चरचा।
बाढ़े हावे चिंता सबके,अब अउ का होना हे।
हवय बाँचना आज सबो ला,आए कोरोना हे।

सोचव समझव मनखे अव सब,नोहव बइला भइसा।
जिनगी नइ तब कोन काम के,जोर जँगारे पइसा।
सोचव झन पइसा कौड़ी जब,जिनगी बर खोना हे।
हवय बाँचना आज सबो ला,आए कोरोना हे।

तन के रहिते कर ले चिंता,काली बर मरना हे।
सरदी खाँसी के इलाज मा,देरी नइ करना हे।
बाँचे बर मुँह हाथ सबो ला,साबुन ले धोना हे।
हवय बाँचना आज सबो ला,आए कोरोना हे।

भीड़-भाड़ ले रहिके दुरिहा,मिल लौ हाथ जोर के।
जनता करफ्यू मानन सबझन,राखन कड़ी टोर के।
नइच फइलही तब कोरोना,ए बात सिखोना हे।
हवय बाँचना आज सबो ला,आए कोरोना हे।

रखन सावधानी छिन छिन मा,आज इही बिनती हे।
हे बचाव ही इलाज एखर,ए मोरो सुनती हे।
कसम खान सब,कोरोना के,अब नाँव बुड़ोना हे।
हवय बाँचना आज सबो ला,आए कोरोना हे।

पोखन लाल जायसवाल
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 रोला छंद - श्रीमती आशा आजाद

कोरोना हे छाय,देश मा जानौ भाई।
देख वायरस आज,मात गे अब करलाई।।
बिगड़े हे हालात,नास छिन भर मा करथे।
लग जावय ये रोग,कतक मनखे मन मरथे।।

फैलाइस हे रोग,चीन हा देखौ जानौ।
खाइन कच्चा मांस,रोग नावा पहिचानौ।।
फैलत तुरते अंग,हाथ झन जान मिलाहू।
मास्क ल पहिरौ रोज,ज्ञान के बात सिखाहू।।

भीड़ भड़क्का छोड़,हवय अबड़ महामारी।
जन जन बगरे खूब,वायरस के बीमारी।।
मुँह मा रखौ रुमाल,साथ झन किटानु आये।
बाहिर झन जी जाव,छुवत ये रोग लगाये।।

खाँसी संग जुकाम,हवय जी इही निसानी।
गला करे हे जाम,सांस के बड़ परसानी।।
चमगादड़ अउ सांप,खाय हे चीनी मन जी।
जहर बरोबर मान,बिगड़ गे सबके तन जी।।

शहर शहर अउ गाँव,देश के जम्मो कोना।
कलपत अब्बड़ मान,देख बगरे कोरोना।।
धोवौ अपने हाथ,रोज साबुन ले भैया।
धरलौ करलौ चेत,देश के सबो रहैया।।

लहसुन सुघर उपाय,गरम पानी ला पीहू।
हल्दी तुलसी काट,सुघर एखर ले जीहू।।
करदौ पूरा बंद,चीन के खई खजाना।
बिगड़ जथे हालात,परय पाछु पछताना।

रोकथाम के काज,करत हे डाक्टर सुनलौ।
कहिथें जेन उपाय,ध्यान धर ओला गुनलौ।।
सर्दी छींक जुकाम,जाँच खाँसी के करहू।
रखके मनखे चेत,स्वस्थ तन मन ला रखहू।

छंदकार - श्रीमती आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़
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'जनता कर्फ्यू-(सरसी-लावणी छंद गीत)-अहिलेश्वर

सुरुज नरायण तहूँ कृपा कर,चरचर ले कर घाम।
'जनता कर्फ्यू'हे हम घर मा,बइठे हन दिल थाम।

लटकन के चटकन बीमारी,एती ओती चटकत हे।
साधारण सर्दी खाँसी हा,कोरोना कस खटकत हे।

चैन टोर के कोरोना के,पाँव करे बर जाम।
'जनता कर्फ्यू'हे हम घर मा,बइठे हन दिल थाम।

काल बरोबर कोरोना हा,दुनिया भर मा छा गे हे।
भारत भुँइया घलो दुखी चिंतित हे अउ घबरागे हे।

शहर गाँव झन फइले पावय,जल्दी लगय लगाम।
'जनता कर्फ्यू'हे हम घर मा,बइठे हन दिल थाम।

घर परिवार सगा सोदर ला,कानोकान जतावत हन।
शासन के निर्देश काय हे,फोन लगा समझावत हन।

सब के सतर्कता ले टल जै,दुख-दायक अंजाम।
'जनता कर्फ्यू'हे हम घर मा,बइठे हन दिल थाम।

अन्य देश प्रान्त ले कोनो,गाँव शहर मा आवत हें।
लोगन भिन्न भिन्न माध्यम ले,सत्य खबर पहुँचावत हें।

चौदह दिन बर क्वारंटाइन,देख-रेख के काम।
'जनता कर्फ्यू'हे हम घर मा,बइठे हन दिल थाम।

भाँप संक्रमण के खतरा ला,भीड़ लगाना वर्जित हे।
घुमे-फिरे बर बाहर जाना,छुना-छुवाना वर्जित हे।

खेवन खेवन हाथ ल धोवन,घर मा करन अराम।
'जनता कर्फ्यू'हे हम घर मा,बइठे हन दिल थाम।

रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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आल्हा छंद -पुरषोत्तम ठेठवार

आय बने बैरी कोरोना, गजब मचाये हाहाकार ।
बिना मौत के लोग मरत हें, मिले नही कोनो उपचार ।।

आये तै महामारी बनके, दुख पावत हें राजा रंक ।
बिक्खर जहर जोर फैलाये, मारत हवै बिछी कस डंक ।।

तोर उपज हे चीन देश के, दुख पावै सारा संसार ।
शहर नगर अउ गाँव खोर मा, कोरोना के चर्चा सार ।।

सर्दी खाँसी अउ बुखार हे, कोरोना के लक्षण जान ।
बाँचव एखर कोप ले संगी, राखव तन के बने धियान ।।

राखव तन के साफ सफाई, घेरी बेरी धोवव हाथ ।
करो नही जी लापरवाही, नइतो पीटना परही माथ ।।

कखरो हाथ पाँव झन धरिहौ, दुरिहा जोड़व दूनो हाथ ।
भीड़ भाड़ मा झन जाहव जी, एक दू झन के राहव साथ ।।

मास्क लगाके करौ सुरक्षा, अपनावव जी शाकाहार ।
खावव दाल भात रोटी ला, तजदौ संगी मांसाहार ।।

स्वस्थ रही सबके तन मन हा, तभे भागही दूर बिमार ।
कोरोना ले बाँचव संगी, राखव सुग्घर नेक बिचार ।।

ठेठवार के बात मानलौ, कहे सियानी सुग्घर गोठ ।
लड़ो लडाई कोरोना ले, तन मन राखव बज्जर पोठ ।।

छंदकार
पुरूषोत्तम ठेठवार
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*शंकर छंद*

आये हावय कोरोना हा, लोगन बड़ डराय।
फइलत हवय महामारी कस,कोन कहाँ लुकाय।
संसो मा सरकार घलो हे,देत हें संदेश।
जनता ला मिलके लड़ना हे,भागय सबो क्लेश।

सावचेत हें देश प्रशासन ,कोनो झन डराव।
जागरूकता फ़इलावव सब ,सुरक्षा अपनाव।
साफ सफाई बहुत जरूरी,धोवत रहव हाथ।
मेल जोल से दूर रहव सब, देश हावय साथ।।

रूप धरे ईश्वर हा देखव,डॉक्टर वो कहाय।
कतको मन के प्राण ल देखव,सेवा कर बचाय।
जनता कर्फ्यू लगत हवय जी,लोग मानौ बात।
मर जाये दुष्टिन कोरोना ,मारव अबड़ लात।

आशा देशमुख
एनटीपीसी कोरबा (छत्तीसगढ़)
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चौपाई छंद-जीतेन्द्र निषाद

एक नवा अब आ गे रोग। कोरोना काहत हे लोग।।
फइलत हावय जम्मों देश। होगे सब बर बिक्कट क्लेश।।

खावय चमगादड़ अउ साँप। चीन सकिस नइ एला भाँप।।
कोरोना के फइलय रोग। चीनी करय अबड़ के सोग।।

जब कचलहा रहय गा माँस। अब्बड़ खावय बिक्कट हाँस।।
ले लिस कतको झन के प्रान। तब समझिस गा चीन जपान।।

सर्दी खाँसी संग बुखार। जब छींकाशी आवय यार।।
टिश्यू पेपर करव प्रयोग। नइ फइले दूसर ला रोग।।

जब रोगी होवय गंभीर। साँस लेय बर होय अधीर।।
तड़पय जस बिन पानी मीन। इह आखिर लक्षण गउकीन।।

खेवन-खेवन धोवव हाथ। सेनिटाइजर साबुन साथ।।
रोज्जे मुँह मा मास्क लगाव। कोरोना ला दूर भगाव।।

तीन फीट दुरिहा मा जाव। तभ्भे ककरो सँग बतियाव।।
अइसन संदेशा बगराव। जन-जन के तुम प्रान बचाव।।

जेवन जेवव सादा भात। पीयव पानी तातेतात।।
तन ला रखव सदा सब गर्म। सुग्घर करव सदा हर कर्म।।

कोरोना के लक्षण पाय। डॉक्टर कर जी तुरत दिखाय।।
सबले बढ़िया इही उपाय। कोरोना ला दूर भगाय।।
जीतेन्द्र निषाद
बालोद

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छप्पय छंद - श्रीमती आशा आजाद

कोरोना के रोग,छाय अबड़ महामारी।
बिगड़े हे हालात,वायरस के बीमारी।।
देवय तन ल बिगाड़,बात ला मानौ भैया।
रखहू सबझन ध्यान,देश के सबो रहैया।।
खाँसी छींक जुकाम हो,जाँच करे मा ध्यान दौ।
छुवत बढ़य जी रोग हा,सबला सुग्घर ज्ञान दौ।।

मुँह मा रखौ रुमाल,मास्क ला पहिरौ भाई।
फइल जही नित जान,मातही तब करलाई।।
वायरस के प्रकोप,रात दिन बाढ़ै जानौ।
बाहिर झन जी जाव,गोठ डाक्टर के मानौ।।
हाथ मिलाके सब सुनो,धोवव अपने हाथ जी।
रोज सावधानी रखौ,घूमौ झन नित साथ जी।

छंदकार - श्रीमती आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़
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***कोरोना वायरस***
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जग मा आहे नवा विषाणु।समझव येला बम परमाणु।।
हे कोरोना येकर नाँव।डरवा देहे शहर व गाँव।।

जान हजारों लेलिस छीन।निकलिस येहर जब ले चीन।।
सावचेत हो भाई मोर।झन मानव येला कमजोर।।

बाहिर कम निकलव सब लोग।मास्क घलो कर लव उपयोग।।
हैंडवॉश-साबुन रख साथ।घेरीबेरी धोवव हाथ।।

हाथ मिलाना ला अब छोड़।छूवव झन जी ककरो गोड़।।
भीड़-भाड़ ले राहव बाँच।सकलावव मत कोनो पाँच।।

साफ-सफाई रख घर-द्वार।अपनावव सब शाकाहार।।
जन बर जन होवव हितवार।मन के डर ला झट ले टार।।

शासन के मानव सब बात।राहव सजग अभी दिन-रात।।
जुरमिल जम्मों कर दव वार।तब कोरोना के हे हार।।

रचना--कमलेश वर्मा,भिम्भौरी
बेमेतरा,9009110792
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

जयकरी छन्द- मथुरा प्रसाद वर्मा


सुन लव भाई सुनव मितान। मोर गोठ ला दे के ध्यान।
हे संकट मा सबके जान। आज मोर तँय कहना मान।

वाइरस एक कोरोना नाँव। फैलत हवे  सहर अउ गाँव।
डर के मारे काँपय लोग। बन्द होत हे सब उद्योग।

सोसल मिडिया करे बखान। रोग ह भारी लेवय प्रान।
दुनियाँ भर हावे परशान। खोजे मा नइ पाय निदान।

हमर परोसी चीन ह ताय। जेन जीव ला कच्चा खाय।
सांप बिछी तक चट कर जाय। इही रोग के कारन आय।

सुन के कोरोना के नाम। आज जगत हर काँपय राम।
फैलावत कतको अफवाह। सुन लेवव बांचे के राह।

जर बुखार अउ खासी छींक। मुड़ पीरा नइ होवय ठीक।
साँस लेत मा लागे जोर। निमोनिया कस लक्षण तोर।

फेर डरे के नइ हे बात। डर हर करथे जादा घात।
हिम्मत राखव मन मा जोर । इही ह प्रान बचाही तोर।

कोरोना के का उपचार। मार मचे हे हाहाकार।
दवा नही कोनो हर पाय। सावधानी हर एक उपाय।

भीड़ भाड़ मा तुम मत जाव। घर म रही के समय बिताव।
शाकाहारी खाना खाव। स्वच्छता ला तुम अपनाव ।

नही हवा मा फैलय रोग। वाइरस ल फैलाथे लोग।
हलो हाय के चलन ल छोड़। राम राम कर हाथ ल जोड ।

जाड़ नमी मा  ये हा भोगाय। गर्मी म वाइरस मर जाय।
तेखर ले झन ठंडा खाव। जाड़ा लगे उँहा झन जाव।

जेला सर्दी खासी आय। छिक छिक के जी घबराय।
अपने हर झन करय उपाय। अस्पताल तुरते ले जाय।

बार बार जे हाथ ल धोय। साबुन लगा लगा के कोय।
साफ रहे नइ खतरा होय। इही उपाय ला राख सँजोय।

रचना
मथुरा प्रसाद वर्मा
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आल्हा-बलराम चन्द्राकर
(कोरोना उपर सचेत करत छंद)

कोरोना के कारण जग मा, हवै मातगे हाहाकार ।
चीन देश के बेमारी हा, देखौ आगे हमरो द्वार।।

अजब वाइरस एहर संगी, नइ हे एकर अभी इलाज ।
लापरवाही के कारण ही, बगरत हे दुनिया मा आज।।

रोग संक्रमण के कोरोना, हर लिस आज हजारों प्राण।
त्राहि-त्राहि जग मा होगे हे, बेबस होगे हे इंसान।।

मनखे ले मनखे मा जाथे, रोगी ले जब तन छू जाय।
रहै फासला हवै जरूरी, हे बचाव के एक उपाय।।

लक्षण एकर दिखथे संगी, सर्दी खाँसी तेज बुखार।
सावधान हो जावन हम जी, छींक आय जब बारंबार।।

घर ले बाहिर झन निकलन जी, भीड़भाड़ ले राहन दूर।
करन गोठ हम दुरिहा रहिके, रद्दा बाट न जावन टूर।।

सतर्कता ले टरही संकट, इही एक ठन हे उपचार।
करबो जब एकांतवास हम, तब निरोग रइही परिवार।।

साबुन सेनेटाईजर ले, साफ रखन गा संगी हाथ।
जनता कर्फ्यू सार्थक हे जी, घर के देव नवाँवन माथ।।

हाथ मिलाना गला लगाना, अउ छूना नइ हे जी पैर।
जै जोहार अभी दुरिहा ले, चेत रहे मा सब के खैर।।

लोग विदेशी चाहे देशी, नइ सटना हे बिल्कुल तीर।
अनुशासन अनिवार्य हवै जी, मन मा राखन थोकन धीर।।

राहन दूर बजार हाट ले, सख्ती हे शासन निर्देश।
कहना हे डाक्टर मन के जी, निगरानी सब करन विशेष।।

*मोटर रेल जहाज बइठना*, अउ पंगत के करन तियाग।
सैर-सपाटा करन अभी झन, घर के खावन रोटी-साग।।

टर जाही ये गिरहा संगी, राहन सबझन सजग सचेत।
हे लड़ना जी डरना नइ हे, ए बलराम कहै गा नेत।।

छंदकार :
बलराम चंद्राकर
भिलाई छत्तीसगढ़
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केंवरा यदु मीरा

कोरोना  के डर  सबो, नारी नर ल सताय।
घर में बइठे सोचथे,  दारू कइसे आय।।

झन पी दारू ला अभी,परे रबे चितियाय।
पुलिस हबर तोला जही, डंडा दिही ठठाय।।

बिगर  पिये कइसे कटे,बही मोर दिन रात।
चुप चुप बइठे हँव इहाँ, मुँहू मोर खजुवात।।

बनी भुती अब बंद हे, घर में नइये  साग।
बकबक झन कर  फूट गे, तोर संग   तो भाग।।

मीठ मीठ तँय बोलते, घर में रहिके आज।
बने गुजरतिस दिन हमर, बनतिस बिगड़े काज।।

छंदकारा
केवरा यदु "मीरा "
राजिम
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 वायरस रोकथाम बर -ज्ञानू

नाम चलत हे चारो कोती,कोरोना कोरोना।
आय वायरस येहा संगी,नोहय जादू टोना।

साफ सफाई घर औ बाहिर,राखव कोना कोना।
धोवव हाथ ल बार बार औ,मुहूँ माँस्क बांधोना।

भीड़भाड़ ले बचके दुरिहाँ,घर मा बंद रहोना।
सावचेत बस राहव संगी,नइ चिंता फिकर परोना।

ताजा ताजा खाना पीना,जंक फूड झन खोजोना।
दार भात औ रोटी दाई, बस बना परोसोना।

बाहिर जाये बर रे लइका ,तुहुँ मन नही पदोना।
घर भीतर मा आनी बानी,खेलव खेल खिलोना।

बबा सुनाही कथा कंथली,सुन सुन पोठ हँसोना।
सुन बूढ़ी दाई के हाना,लोट पोट सब होना।

सर्दी खाँसी औ बुखार हे,अस्पताल जाओना।
हवय स्वास्थ्यकर्मी औ डाँक्टर,मुफत दवा पाओना।

हाथ जोड़के नमस्कार कर,अब झन गला मिलोना।
अतके बूता करलव संगी,इही सार समझोना।

छोटे छोटे बात हवय जी,सब झन ध्यान रखोना।
हार भागही ये पापी हा,कोरोना के रोना।

हाथ जोड़के बिनय 'ज्ञानु' के,देवव ध्यान सुनोना।
लापरवाही झन करहू नइ,जिनगी परही धोना।

छंदकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी-कवर्धा
जिला-कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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नीलम जायसवाल: जयकारी छंद

कोरोना के डर हे छाय। बाहर ले बीमारी आय।
जस-जस मनखे मेल बढ़ाय। तस-तस एहा बगरत जाय।।

कोरोना ले खुद ल बचाव। रोकथाम गा झट अपनाव।
घर ले बाहर झन जी जाव। तात-तात जी खाना खाव।।

घेरी-बेरी धोवव हाथ। साफ-सफाई साथे-साथ।
आपस मा दूरी ल बनाव। मीटर के भीतर झन आव।।

खाँसे-छींंके बर रूमाल। सब ल बचाना हे हर हाल।
बासी-ठंडा झन जी खाव। बिना जरूरत कहीं न जाव।।

कहिंँचो जाना मास्क लगाव। इन्फेक्शन ले खुद ल बचाव।
सरकारी आदेश ल मान। अपन फर्ज गा तँय हा जान।।

समझ-बूझ बन जा हुसियार। लक्षण मा ले तैं उपचार।
झन कर तैंहा मेल-मिलाप। अस्पताल जा चुप्पेचाप।।

चौदह दिन रखहीं एकांत। जर-बुखार हो जाही शांत।
अलग रहे ले बनही बात। कोरोना ला देबो मात।।

कवयित्री - नीलम जायसवाल, भिलाई, छत्तीसगढ़
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कोरोना(चोपाई छंद)-जीतेन्द्र वर्मा

रहिरहि सबला रोना पड़ही।पाछू जब कोरोना पड़ही।
हरे भंयकर ये बीमारी।जइसे दुख के बादल कारी।।

काँपे थरथर सारी दुनिया।हवै कलेचुप बइगा गुनिया।
तांडव करत हवै कोरोना।काम आय नइ जादू टोना।।

नइहे दवई सूजी पानी।अटके अध्धर मा जिनगानी।
आगे हे ये कइसन बेरा।काल लगावत हावै फेरा।।

घर भीतर मनखे धंधागे।कोरोना बैरी कस लागे।
फइले मनखे ले मनखे मा।परलय के ताकत हे येमा।

घर मा रहना हे हुशियारी।घर  बाहर पसरे बीमारी।
आपा झन खोवव गा भैया।धीर लगाके तरही नैया।

आफत आये हावै भारी।आय बिदेशी ये बीमारी।
मिलजुल लड़ना हे एखर ले।कोनो झन निकलौ जी घर ले।

खेवन खेवन हाथ ल धोवव।तन अउ मन ले चंगा होवव।
इती उती के बात ल छोड़व।कोरोना के कनिहा तोड़व।

जर बुखार अउ सर्दी खाँसी।होवत रहिथे बारा माँसी।
एखर लक्षण ला पहिचानव।जानकार के बयना मानव।

भीड़ भाड़ मा जाना छोड़व।बासी खाना खाना छोड़व।
आसपास के करव सफाई।कोरोना बर इही दवाई।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को कोरबा

13 comments:

  1. बहुत सुंदर संदेश प्रद रचनाएं

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  2. बहुत सुन्दर संकलन गुरुदेव जी

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  3. बहुत सुंदर संदेशप्रद संकलन

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  4. सुग्घर संकलन,जम्मो झन ल बधाई।

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  5. पढ़के अब्बड़ सुग्घर लागिस

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  6. सुग्घर साहित्यिक कर्म।

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  7. सुग्घर रचना कोरोना के रोकथाम बर जन जागरण

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  8. सुग्घर रचना कोरोना के रोकथाम बर जन जागरण

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  9. जन जागरण बड़ सुग्घर छंद रचना संकलन ।।

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  10. देश मा ए सुग्घर प्रयास अउ संदेश बहुत अच्छा हे,जनजागरण संदेश👆👏👌💐💐

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  11. बहुत सुग्घर संकलन। ये कोरोना काल सचमुच यादगार बन गे।

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  12. सुग्घर संकलन संदेश देती हुई रचनाए

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