शंकर छंद:- महेंद्र कुमार बघेल
इहाॅं के माटी
कुकरा बासत चलय बाहरी,गली ॲंगना पार|
सेवा होय गाय गरुआ के,करत गोबर द्वार||
नोई धरके लुहुर लुहुर गा,पहट राउत आय|
गाय बछरु ला बाॅंध छोर के,रोज दुहिके जाय||
नान बुटुक मन गरवा खेदत,जाय गा दइहान|
भॅंवरा बाटी खेलत कूदत,गजब मारैं सान||
अउ असनाॅंद करे बर बिहना,डहर तरिया जाॅंय|
अबड़ मेछरावत लइका मन,डुबक तॅंउर नहाॅंय||
मुही पार कीड़ा काॅंटा के ,रोज राखय ध्यान|
बेरा होवत सबले पहिली,खेत जाय किसान||
हॅंसिया धरे लुवे बर काॅंदी,लाय बोझा बाॅंध|
गिरत पसीना बोल उठे जी,ठोस हावय खाॅंध ||
फाॅंद-फुॅंदा के गाड़ी बइला,जाय भइया खेत|
जोर जुरा के खातू कचरा,करें अड़बड़ चेत||
साथ पॉंव पुट देवय भउजी,करे मिलजुल काम|
जाॅंगर टोर कमावय दिन भर,कहाॅं कभू अराम||
हर तिहार मा काम छोड़ के,गाॅंव भर सकलाॅंय|
सार्वजनिक सब काम काज ला,तुरत सब निपटाॅंय ||
कका बबा के नता निभावत, सरल सुनता भाव|
जात पात के भेद भुलावत ,बैठ एके नाव||
साॅंवर ला हर रोज बनावत, खबर ताजा जान|
मरदनिया के गोठ बात के,अलग हे पहिचान||
पागा बाॅंधे खुमरी ओढ़े ,धुन बॅंसुरी बजाय|
अउ सकेल बरदी ला राउत,रोज धेनु चराय|
छुट्टी कहाॅं इकर जिनगी मा,सदा महिनत सार|
धरती माटी के सेवा बर,हवॅंय मुड़ मा भार||
बिहने बासी खाय तहाॅं ले, जाय खेती खार|
कते अपन मा बुता करे अउ, कते हर बनिहार||
बिहना चिहुॅंक तान चिरई के, अउर कउॅंवा काॅंव|
बर पीपर आमा अमली के,सुघर शीतल छाॅंव||
पूरब मा जी पाठ दबावय, शीतला के ठाॅंव|
पबरित हवय इहाॅं के माटी, जिहाॅं अइसन गाॅंव||
छंदकार- महेंद्र कुमार बघेल
डोंगरगांव, जिला- राजनांदगांव
इहाॅं के माटी
कुकरा बासत चलय बाहरी,गली ॲंगना पार|
सेवा होय गाय गरुआ के,करत गोबर द्वार||
नोई धरके लुहुर लुहुर गा,पहट राउत आय|
गाय बछरु ला बाॅंध छोर के,रोज दुहिके जाय||
नान बुटुक मन गरवा खेदत,जाय गा दइहान|
भॅंवरा बाटी खेलत कूदत,गजब मारैं सान||
अउ असनाॅंद करे बर बिहना,डहर तरिया जाॅंय|
अबड़ मेछरावत लइका मन,डुबक तॅंउर नहाॅंय||
मुही पार कीड़ा काॅंटा के ,रोज राखय ध्यान|
बेरा होवत सबले पहिली,खेत जाय किसान||
हॅंसिया धरे लुवे बर काॅंदी,लाय बोझा बाॅंध|
गिरत पसीना बोल उठे जी,ठोस हावय खाॅंध ||
फाॅंद-फुॅंदा के गाड़ी बइला,जाय भइया खेत|
जोर जुरा के खातू कचरा,करें अड़बड़ चेत||
साथ पॉंव पुट देवय भउजी,करे मिलजुल काम|
जाॅंगर टोर कमावय दिन भर,कहाॅं कभू अराम||
हर तिहार मा काम छोड़ के,गाॅंव भर सकलाॅंय|
सार्वजनिक सब काम काज ला,तुरत सब निपटाॅंय ||
कका बबा के नता निभावत, सरल सुनता भाव|
जात पात के भेद भुलावत ,बैठ एके नाव||
साॅंवर ला हर रोज बनावत, खबर ताजा जान|
मरदनिया के गोठ बात के,अलग हे पहिचान||
पागा बाॅंधे खुमरी ओढ़े ,धुन बॅंसुरी बजाय|
अउ सकेल बरदी ला राउत,रोज धेनु चराय|
छुट्टी कहाॅं इकर जिनगी मा,सदा महिनत सार|
धरती माटी के सेवा बर,हवॅंय मुड़ मा भार||
बिहने बासी खाय तहाॅं ले, जाय खेती खार|
कते अपन मा बुता करे अउ, कते हर बनिहार||
बिहना चिहुॅंक तान चिरई के, अउर कउॅंवा काॅंव|
बर पीपर आमा अमली के,सुघर शीतल छाॅंव||
पूरब मा जी पाठ दबावय, शीतला के ठाॅंव|
पबरित हवय इहाॅं के माटी, जिहाॅं अइसन गाॅंव||
छंदकार- महेंद्र कुमार बघेल
डोंगरगांव, जिला- राजनांदगांव
बहुत सुंदर छंद हे, आपला सुग्घर सृजन बर बहुत बधाई
ReplyDeleteउत्तम रचना सर जी
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