विष्णुपद छंद :- जगदीश "हीरा" साहू
आगे नवा बिहनिया अब गा, झन जीयव दबके।
बैर-भाव ला पाछू छोड़व, सबझन मजहब के।
झन बोवव ककरो बर काँटा, फेंकव सब खनके।
कोनो ला झन काटव संगी,कैची कस बनके।।
नेक करम के मान अबड़ हे, नोहय गा ससता।
जग मा नाम अमर हो जाही, गढ़बे जब रसता।
कभू गरब झन करबे भाई, इहाँ अपन बल के।
झन सोचव जादा जिनगी मा, का होही कल के।।
सबो सँवारव अपन आज ला, कल सुग्घर बनही।
उहू आज बनके जब आही, कोन समय गनही।।
जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा), छत्तीसगढ़
आगे नवा बिहनिया अब गा, झन जीयव दबके।
बैर-भाव ला पाछू छोड़व, सबझन मजहब के।
झन बोवव ककरो बर काँटा, फेंकव सब खनके।
कोनो ला झन काटव संगी,कैची कस बनके।।
नेक करम के मान अबड़ हे, नोहय गा ससता।
जग मा नाम अमर हो जाही, गढ़बे जब रसता।
कभू गरब झन करबे भाई, इहाँ अपन बल के।
झन सोचव जादा जिनगी मा, का होही कल के।।
सबो सँवारव अपन आज ला, कल सुग्घर बनही।
उहू आज बनके जब आही, कोन समय गनही।।
जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा), छत्तीसगढ़
वाह वाह बहुत खूब, संदेश प्रद रचना
ReplyDeleteबहुत सुग्घर रचना बधाई हो
ReplyDeleteधन्यवाद भैया जी,
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