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Friday, December 18, 2020

संत शिरोमणि बाबा गुरुघासी दास जयंती विशेषांक-छंद के छ परिवार की प्रस्तुति









संत बाबा गुरुघासी दास जयंती विशेषांक-छंद के छ परिवार की प्रस्तुति

 आल्हा छंद - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


हमर राज के धन धन माटी,बाबा लेइस हे अवतार।

सत के सादा झंडा धरके,रीत नीत ला दिइस सुधार।


जात पात अउ छुआ छूत बर, खुदे बनिस बाबा हथियार।

जग के खातिर अपने सुख ला,बाबा घासी दिइस बिसार।


रूढ़िवाद ला मेटे खातिर,सदा करिस बढ़ चढ़ के काम।

हमर राज के कण कण मा जी,बसे हवे बाबा के नाम।


संत हंस कस उज्जर चोला,गूढ़ ग्यान के गुरुवर खान।

अँवरा धँवरा पेड़ तरी मा,बाँटिस सब ला सत के ज्ञान।


जंगल झाड़ी ठिहा ठिकाना,बघवा भलवा घलो मितान।

मनखे मन मा प्रीत जगाइस,सत के सादा झंडा तान।


बानी मा नित मिश्री घोरे,धरम करम के अलख जगाय।

मनखे मनखे एक बता के,सुम्मत के रद्दा देखाय।


झूठ बसे झन मुँह मा कखरो, खावव कभू न मदिरा माँस।

बाबा घासी जग ला बोलिस,करम धरम साधौ नित हाँस।


दुखिया मनके बनव सहारा,मया बढ़ा लौ बध लौ मीत।

मनखे मनखे काबर लड़ना,गावव सब झन मिलके  गीत।


सत के ध्वजा सदा लहरावय,सदा रहे घासी के नाँव।

जेखर बानी अमरित घोरे,ओखर मैं महिमा नित गाँव।


रचनाकार -  श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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रोला छंद-अरूण कुमार निगम


(1)

मनखे मनखे एक, इही हे सुख के मन्तर

जिहाँ नहीं हे भेद, उहीं असली जन-तन्तर

बाबा घासी दास, हमन ला इही बताइन

जग ला दे के ज्ञान, बने रद्दा देखाइन ।।


(2)

जिनगी के दिन चार, नसा पानी ला त्यागौ

दौलत माया जाल, दूर एखर ले भागौ।

जात-पात ला छोड़, सबो ला मनखे जानौ

बोलव जय सतनाम, अपन कीमत पहिचानौ।।


(3)

काम क्रोध मद मोह, बुराई लाथे भाई

मिहनत करके खाव, इही हे असल कमाई

सत्य अहिंसा प्रेम, दया करुणा रख जीयव

गुरु के सुग्घर गोठ, मान अमरित तुम पीयव।।


*अरुण कुमार निगम*

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*बरवै छंद*-आशा देशमुख


गुरू महिमा


अमरौतिन के कोरा ,खेले लाल।

महँगू के जिनगी ला ,करे निहाल।1।


सत हा जइसे चोला ,धरके आय।

ये जग मा गुरु घासी ,नाम कहाय।2।


सत्य नाम धारी गुरु ,घासीदास।

आज जनम दिन आये ,हे उल्लास।3।


मनखे मनखे हावय ,एक समान।

ये सन्देश दिए हे, गुरु गुनखान।4।


देव लोक कस पावन ,पुरी गिरौद।

सत्य समाधि लगावय ,धरती गोद।5।


जैतखाम  के महिमा ,काय बताँव।

येला जानव भैया ,सत के ठाँव।6।


निर्मल रखव आचरण ,नम व्यवहार।

जीवन हो सादा अउ ,उच्च विचार।7।


बिन दीया बिन बाती ,जोत जलाय।

गुरु अंतस अँंधियारी ,दूर भगाय।8।


अंतस करथे उज्जर ,गुरु के नाम।

पावन पबरित सुघ्घर ,गुरु के धाम।9।


आशा देशमुख

18-12-20

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छंदकार-द्वारिका प्रसाद लहरे 


दोहा+चौपाई छंद

*अमृत वाणी (१)*

*सत्य ही मानव का आभूषण है..*


सत्य नाम हिरदे बसा,सत्य जगत मा सार।

मनखे के गहना इही,कहिथे गुरू हमार।


*गुरुघासी के अमरित बानी,*

*बनगे जग मा अमर कहानी।*

*बाबा जी के एही कहना,*

*सत हावय मनखे के गहना।।*


सत ले ए धरती खड़े,सत ले खड़े अगास।

चाँद सुरुज सत मा चलै,जग ला करय उजास।


अंतस मा सतनाम बसालौ।

गुरु घासी के गुन ला गालौ।

मनखे गहना सत ला जानौ।

गुरु बाबा के कहना मानौ।।


सत मा जे मनखे चलै,ओखर नइया पार।

मिलय शांति सुख हा सदा,होवय मन उजियार।।


*अमृत वाणी(२)*

*मानव-मानव एक समान...*


मनखे मनखे एक हे,नइ हे कोनो भेद।

जाति भरम के भूत ला,मन ले देवव खेद।


*मनखे-मनखे एक बताये,*

*छुआ-छूत ला दूर भगाये।*

*तोर पाँव के धुर्रा चंदन,*

*सदगुरु बाबा तोला वंदन।।*


सब मनखे ले राख लौ,दया मया के भाव।

मिलके राहव संग मा,समता सुमता लाव।।


सब मनखे ला एक्कै जानौ।

भाई चारा सुमता लानौ।

जात पात के बँधना टोरौ।

सब मनखे ले नाता जोरौ।।


गुरु बाबा कहिथे सदा,सब के एक्के जात।

मिलके राहव जी बने,बिना करे आघात।।


*अमृत वाणी(३)*

*गुरू बनायें जान कर पानी पीयें छान कर..*


असल गुरू ओही हवे,जे सत राह दिखाय।

गुरू बनावव जान के,हंसा पार लगाय।


*ज्ञानवान ला गुरू बनावव,*

*अँधियारी ला दूर भगावव।*

*गुरू ज्ञान ला मन मा धरहू,*

*सुरुज असन तब जगमग बरहू।।*


मन अँधियारी टारके,सत्य ज्ञान बरसाय।

ओही गुरू महान हे,जग ला जे सिरजाय।।


*छान-छान के पीथन पानी,*

*तब रइथे सुग्घर जिनगानी।।*

*इही मरम ला गुरू बतावय,*

*सब संतन ला राह धरावय।।*


गुरू नाँव ले भागथे,जम्मो लोभ विकार।

गुरू बचन अनमोल हे,लेगय भव के पार।।



*अमृत वाणी (४)*

*हीन भावना मन से हटायें..*


हीन भावना मा कभू,रइहू झिन परसान।

सत्य करम ले आदमी,बनथे जगत महान।।


*हीन भावना मन ले छोड़व,*

*सदाचार ले नाता जोड़व।*

*कमसल कोनो ला झन काहव,*

*सुमता ले सब मिलके राहव।।*


करिया गोरा रंग ले,झिन करहू जी भेद।

ऊँच-नीच के भावना,अंतस करथे छेद।।


अपन आप झन छोटे जानौ,

जे कुल मा हव तेला मानौ।

सत्य करम हा होथे ऊँचा।

गलत करम ले माथा नीचा।।


हीन भावना ले सदा,होथे पश्चाताप।

अइसन दुख संताप ले,दूर रहव सब आप।।


अमृत वाणी(५)

*सत्य और ईमान में अटल रहें।*


अडिग रहव ईमान मा,सत्य रखव पहिचान।

मन के लालच छोड़ के,गुरु के धर लौ ध्यान।।


सत ईमान रखव जी पक्का,

झूठ नाम मा खाहव धक्का।

मन के लालच तुरते छोड़व,

अंतस मा सत नाता जोड़व।।


सत्य करम करले इहाँ,करले सदव्यवहार।

तब लगही हंसा बने,भव सागर ले पार।।


अमरित वाणी गुरुघासी के,

सत्य अटल हे अविनाशी के।

अंतस मा अब सबो उतारौ।

जिनगी सुग्घर अपन सँवारौ।।


सत रद्दा मा रेंग ले,मन के मिटा उदास।

जग अँधियारी टारथे,सत मा हवय उजास।।


अमृत वाणी (६)

*जैसा खाये अन्न वैसा बनेगा मन।*


छोड़व जेवन तामसी,इही तमो गुण लाय।

हिंसक मन ला ये करे,काम-क्रोध बढ़ जाय।।


जइसन जेवन तँय हर खाबे,

वइसन अपने मन ला पाबे।

छोड़ राजसी तामस थारी।

सादा जेवन हे गुणकारी।।


तज लौ जेवन राजसी,इही बढ़ावय दोष।

सदा बनाथे आलसी,मन मा लावय रोष।।


हरदम जेवन सादा खावव,

तन-मन फिर ताजा पावव।

मन मा दुर्गुन फिर नइ आही,

आनंदित तन-मन हो जाही।।


सादा जेवन खाव जी,आही शुद्ध विचार।

शाकाहारी तुम बनौ,छोड़व मांसाहार।।


अमृत वाणी(७)

*मेहनत ईमान की रोटी सुख का आधार।*


रोटी खा ईमान के,ये सुख के आधार।

जाँगर भर तैं काम ले,बने चला परिवार।।


महिनत के रोटी सुख देथे,

अंतस के पीरा हर लेथे।

सुख जिनगी के इही अधारा।

महिनत ले बस चलय गुजारा।।


कखरो हक ला मार के,धन दौलत झिन जोर।

महिनत ले जिनगी चला,सुख आही घर तोर।।


बइमानी के रुपिया पानी,

जइसे बोरय ए जिनगानी।।

कखरो हक मारे धन जोरे।

पछताबे तँय हिरदे टोरे।।


धन के लालच छोड़ दे,लालच हे बेकार।

सत्य करम करले बने,भव ले होबे पार।।


अमृत वाणी(८)

*क्रोध और बैर को जो त्याग देता है,*

*उसका हर कार्य बन जाता है।*


अंधा करथे आदमी,छिन भर रहिके रोष।

पागल कर देथे घलो,इही बढाथे दोष।।


आगी जइसन चोला बरथे,

छिन-छिन मा जे गुस्सा करथे।

अँधियारी हा मन मा छाथे।

सत्य ज्ञान दुरिहा हो जाथे।।


क्षमा करे बर सीख जौ,अइसन करौ प्रयास।

बैर-भाव ला छोड़ के,मीत बनव जी खास।।


कोनो ला झिन बैरी मानौ,

सबला अपने हितवा जानौ।

सुमता के रद्दा जे चलथे,

जिनगी ओखर सुख मा ढलथे।।


क्रोध-बैर ला छोड़थे,पाथे ओ सतधाम।

सदगुरु के आशीष ले,बिगड़े नइ कुछ काम।।


अमृत वाणी (९)

*दान कभी नहीं माँगना चाहिए,*

*न ही उधार लेना और देना चाहिए*


कायर मनखे हा सदा,फोकट माँगय दान।

बनके वो कमजोरहा,खोवय जी सम्मान।।


मदद करौ दुखियारा मनके,

देवव मान सहारा बनके।

दान कभू कोनो झन देवव।

झिन कखरो ले कोनो लेवव।।


राह बतावव काम के,दे बर छोड़व भीख।

सदगुरु घासीदास के,पहिचानव जी सीख।।


दुख के जइसे मिलथे दर्जा,

नइ लेना चाही जी कर्जा।

सुख के जम्मो नींद उजाड़े,

आपस मा संबध बिगाड़े।।


कर्जा जादा होय ले,चिंता छिन-छिन खाय।

गर मा जइसे फाँस हे,मुँह ले निकलय हाय।।


अमृत वाणी(१०)

*दुसरे का धन हमारे लिए कौड़ी के समान है*


सदगुरु के बानी बने,सुनव लगाके कान।

पर के धन हा ताय जी,जइसे धूल समान।।


पर के धन हा माटी जइसे,

फिर एमा हे लालच कइसे।

जाँगर भर तुम करव कमाई,

मन के लालच छोड़व भाई।।


धन के लालच फाँसथे,जइसे माया जाल।

पर के धन का काम के,बनय जीव के काल।।


मइल हाथ के धन ला जानौ,

लालच ला छोडे़ बर ठानौ।

पर के धन मा हे करलाई,

महिनत होथे जी सुखदाई,


जतके हे ततके बने,मन मा रख संतोष।

धन के लालच जान ले,सदा बढ़ाथे दोष।।


अमृत वाणी(११)

*मेहमान को साहेब के समान समझो।*


मेहमान साहेब जस,कर आदर सत्कार।

गुत्तुर बोली बोल के,सुग्घर कर व्यवहार।।


घर मा कोनों पहुना आवय,

जानौ सुख ला धर के लावय।

लोटा भर देवव जी पानी।

कर लव तुम सुग्घर महिमानी।।


पहुना सतपुरुष सहीं,होथे दव सम्मान।

घर छइहाँ बइठार के,दव जी मीठ जुबान।।


मान-गउन पहुना के करलव,

दया-मया के झोली भरलव।

देवव संतो मया चिन्हारी।

पहुना होथे मंगलकारी।।


जेवन देके पेट भर,कर लव सुख दुख गोठ।

बने रहय व्यवहार हा,मेहमान बर पोठ।।


गुरु अमृतवाणी(१२)

*रिश्तेदार का दुश्मन भी रिश्तेदार होता है।*


हितवा के बैरी घलो,हावय रिश्तेदार।

बैरी मत समझौ कभू,राखव जी व्यवहार।।


सगा-सगा मत करव लड़ाई।

आपस मा मिल राहव भाई।।

बैर भावना जम्मो छोड़ौ।

दया-मया के नाता जोड़ौ।।


दया-मया ले जीत लौ,सबके हिरदय आज।

बैर-भाव ला छोड़ दौ,जग मा करहू राज।।


संगी के बैरी सँगवारी।

सुघ्घर राखव रिश्तेदारी।।

जिनगी मा मत राखव बैरी।

हो जाहू पानी कस गैरी।।


सदगुरु कहे हमार जी,सब ला मितवा जान।

संगी  के  बैरी  कभू, मत  बैरी  तँय  मान।।


गुरु अमृतवाणी (१३)

*धीरज का फल मीठा होता है*


लालच होथे घाँव कस,सदा बढ़ावय पीर।

मीठा फर पाहू तभे,मन मा राखव धीर।।


क्रोध लोभ मा हवय बुराई।

एला छोड़व संतो भाई।।

सबर अपन हिरदे मा राखौ।

तहाँ सदा मीठा फर चाखौ।।


क्रोध लोभ जंजाल हे,एला देवव छोड़।

अपन सबर के बाँध ला,राखव निसदिन जोड़।।


क्रोध हवय जी दुख के कारन।

धरलव मन मा धीरज धारन।।

धीरज के मीठा फर पाहू।

तब जिनगी ला सफल बनाहू।।


लेवव नित सतनाम ला,मिटय सबो संताप।

धीरज मन मा राखके,कर लौ सत के जाप।।


गुरु अमृतवाणी(१४)

*प्रेम का बंधन ही असली है*


दया-मया अनमोल हे,ए ही जग मा सार।

अंतस मा राखौ मया,जिनगी लगही पार।।


दया-मया के बाँधौ बँधना।

खुशहाली आही घर-अँगना।।

बनव सबो जी परहितकारी।

अंतस राखव मया चिन्हारी।।


असली दौलत जान लौ,तुहँर सुघर व्यवहार।

सब ला दौ अमरित सहीं,दया-मया भरमार।।


दया-मया ला जोरे राहव।

मान तभे तुम जग मा पाहव।।

गुरू बबा के अमरित बानी।

धारण करके बन जव ज्ञानी।।


कतको वेद पुरान पढ़,मया बिना बेकार।

जेखर अंतस हे मया,ओही जग सरदार।।


गुरु अमृतवाणी (१५)

*माता-पिता और गुरु को सम्मान दो।*


मातु-पिता गुरु देवता,देवव जी सम्मान।

इँखरे कहना मानहू,तब होही कल्यान।।


मातु-पिता के कहना मानौ।

सहीं देवता इनला जानौ।।

कर लव भइया निसदिन सेवा।

तब तो पाहू सुख के मेवा।।


जीव-मुक्ति होवय नहीं,बिन गुरु संत सुजान।

धरलव गुरु के ज्ञान ला,देके सुघ्घर ध्यान।।


मातु-पिता सदगुरु गुन गावौ।

हाथ-जोड़ के बचन निभावौ।।

इँखर शरन मा राखौ डेरा।

होही सुख के सदा सबेरा।।


मातु-पिता गुरु के सदा,पावन पर लौ पाँव।

इँखरे दे आशीष मा,पाहू सुख के छाँव।।


गुरु अमृतवाणी(१६)

*बिना बछड़े के गाय का दूध मत पीयो*


मुरही गइया के कभू,मत कर गोरस पान।

माँ होथे जननी सबो,इँखरो दुख पहिचान।।


दुखयारी हे मुरही गइया।

कभू दूध मत दूहव भइया।।

पर के दुख ला अपने जानौ।

सत्य धरम ला मन मा ठानौ।।


दुखयारी माँ के सबो,दुख मा देवव साथ।

करौ मदत हर हाल मा,सदा लमावव हाथ।।


गइया हे ममता के सागर।

मया लुटाथे सब बर आगर।।

जग ला दूध पियाथे गइया।

तभे कहाथे जग मा मइया।।


अपन सुवारथ के कभू,मत रँगहू जी रंग।

मुरही गइया ला सदा,राखौ अपने संग।।


गुरु अमृतवाणी(१७)

*इसी जन्म को सुधारना सच है*


संतो बने सुधार लौ,इही जनम ला आज।

दया-मया सुख बाँट के,सत के कर लौ काज।।


सत्य करम ले जनम सुधारौ।

अंतस ले सतनाम पुकारौ।।

तभे शांति सुख घर-घर छाही।

सफल जनम सबके हो जाही।।


जिनगी भर कर लौ सबो,संतो परउपकार।

भजहू जब सतनाम ला,तब जाहू भवपार।।


जीव-जंतु बर दया दिखावौ।

मन ले हिंसा दूर भगावौ।

दया-धरम के नता निभावौ।

इही जनम ला सफल बनावौ।।


कोन जनी कइसन इहाँ,होही कब अवतार।

पूण्य कमावौ आज ले,इही जनम हे सार।।


गुरु अमृतवाणी(१८)

*सतनाम घट-घट में समाया हुआ है*


रोम-रोम मा हे रमे,देखव जी सतनाम।

भटकौ झन पहिचान लौ,मन मा हे सत धाम।।


कहाँ-कहाँ तुम खोजे जाहू।

खौजौ कतको सत नइ  पाहू।।

घट-घट मा सतनाम रमे हे।

तन-मन मा सतधाम बसे हे।।


सत मा ए धरती चलै,सत मा अड़िग अकाश।

सत मा ही करथे बने,चंदा सुरुज उजास।।


घट मा हे सतनाम ल जानौ।

देखौ संतो सत पहिचानौ।।

सतगुरु वाणी हावय चोखा।

जे नइ माने खाही धोखा।।


अजर-अमर सतनाम हे,सत हे जग मा सार।

जपन करौ सतनाम के,होही बेड़ा पार।।


गुरु अमृवाणी(१९)

*ज्ञान का मार्ग तलवार की धार है*


कठिन ज्ञान के राह हे,जइसे ए तलवार।

चलौ बने मन ठान के,होही मन उजियार।।


बनौ सबो जी सत के ज्ञानी।

छोड़व अपने मन अभिमानी।।

ज्ञान राह ला गुरू बताये।

रेंगव ओमा बिना डराये।।


असल-नकल का चीज हे,पहिली सत पहिचान।

खोल ज्ञान के द्वार ला,तब बनबे विद्वान।।


करय तर्क तब मानै ज्ञानी।

धरै गुरू के अमरित बानी।।

अनपढ़ हा तुरते सब मानै।

तर्क करे बर कुछ नइ जानै।।


सतखोजी कहिलाय जी,पाये सत के ज्ञान।

बाबा घासीदास हा,जग मा हवय महान।।


गुरु अमृतवाणी(२०)

*गर्भस्थ शिशु भी आपके समान है*


नान्हे लइका ला घलो,जानव अपन समान।

दया-मया देवव सदा,ए ही सदगुरु ज्ञान।।


लेवव जी सदगुरु ले दीक्षा।

लइका ला दौ नैतिक शिक्षा।।

सबो निभावव जिम्मेदारी।

लइका बन जय परहितकारी।।


लइका ला देवव बने,ज्ञान सीख संस्कार।

तब बनही इंसान जी,करही सत व्यवहार।।


लइका मन ला ज्ञान धरावौ।

बोले बर सतनाम सिखावौ।।

तब तो जग मा आगू बढ़हीं।

सत्य ज्ञान ले जिनगी गढ़हीं।।


सबो जीव एके कहे,सदगुरु घासीदास।

सत्य ज्ञान ला मान लौ,कर लौ जी विश्वास।।


गुरु अमृवाणी(२१)

*जो भी आपके पास है उसे बाँट कर खायें।*


जौन चीज हे पास मा,बाँट-बाँट के खाव।

लाँघन कोनो झन रहै,मनखे फरज निभाव।।


सत्य धरम के धरलौ बाना।

जीव-जंतु ला देवव दाना।।

लाँघन ला जेवन तो देवव।

बदला मा तुम कुछ झन लेवव।।


जेवन के बेरा कहूँ,पहुना घर मा आय।

ओहू ला जेवन खवा,ओ लाँघन मत जाय।।


मानवता के धरम निभावौ।

जीव-जंतु बर दया दिखावौ।

निस-दिन जय सतनाम ल गावौ।

जग मा गुरुवाणी बगरावौ।।


संकट के बेरा रहै,पर जय कहूँ दुकाल।

सब संतन मा बाँट दे,तोर धरे वो माल।।


गुरु अमृवाणी(22)

*जितने भी हैं सभी मेरे संत हैं*


कहय गुरू साहेब हा,सत्य ज्ञान ला पाव।

जतका हौ ततका सबो,मोर संत तुम आव।।


सत्य धरम ला जे पहिचानै।

माने बर जी मन मा ठानै।।

ओही मनखे संत कहाथे।

जग मा सुघ्घर नाँव कमाथे।।


भेद-भाव ला छोड़ के,करथे सत के काम।

वो मनखे सब संत हें,जे मानै सतनाम।।


जे मनखे सत के गुण गाथे।

दूर सबो बिपदा हो जाथे।

ओहर मंगल सुख ला पाथे

खुशहाली घर-अँगना आथे।।


कहिथे घासीदास जी,तज लौ गरब गुमान।

सत्य ज्ञान अमरित सहीं,पी लौ संत सुजान।।


गुरु अमृतवाणी(२३)

*गाय-भैंस को हल में नहीं जोतना चाहिए*


गाय-भँइस माता सहीं,जानैं सकल जहान।

नाँगर मा तुम फाँद के,करहू मत अपमान।।


गाय-भँइस ममता बरसाथें।

सब मनखे बर मया लुटाथें।।

दूध-दही घी हमला देथें।

दुख-पीरा सबके हर लेथें।।


चलव निभावव आज ले,सत्य धरम के रीत।

गाय भँइस के संग मा,राखव पावन प्रीत।।


गाय भँइस के करलव सेवा।

दूध-दही  घी  पाहू  मेवा।।

गाय-भँइस के जे घर वासा।

पूरन होथे सुख के आसा।।


कहिथे घासीदास जी,सत्य धरम ला जान।।

पालन करलौ तुम सबो,सदगुरु सत्य विधान।।


गुरु अमृवाणी(२४)

*मांस तो मांस उससे मिलते जुलते सब्जियों का भी सेवन न करें*


हत्या करना जीव के,अइसन छोड़व आस।

अपन जीव कस जान लौ,मत खाहू जी मास।।


बनके राहव शाकाहारी।

हरा-भरा खावव तरकारी।।

सादा जेवन सादा बानी।

राखव जी सुघ्घर जिनगानी।।


मास सही जे लाल हे,मत राँधव ओ साग।

मास खाय के लालसा,मन ले जाही भाग।


हाड़-मास के तुँहरो काया।

मास खाय के छोड़व माया।

बनव कभू मत मांसाहारी।

कहिथे सदगुरु सत के धारी।।


खाहू मत जी मास ला,इही तमोगुन लाय।

मास खाय जे आदमी,दानव सदा कहाय।।


गुरु अमृवाणी(२५)

*किसी की जान लेना हत्या है ही,लेकिन किसी को सपने में मारना भी हत्या है*


सपना मा मत सोचहू,ले बर कखरो जान।

हिंसा तो अपराध है,तज लौ मन अभिमान।।


कोनों ला मारे के सपना।

झन देखव एमा हे तपना।।

अंतस ले गुस्सा ला टारौ।

दया-मया के दीया बारौ।।


क्रोधी,पापी आदमी,करथे हिंसा काम।

निष्ठुर बनके मारथे,होथे खुद बदनाम।।


सदगुरु वाणी हवय निराला।

पी लौ सत के अमरित प्याला।।

गुस्सा के आदत ला छोड़ौ।

सत्य ज्ञान ले नाता जोड़ौ।।


हिंसा मत करहू कभू,मन ला राखव साफ।

क्रोध-बैर तज के चलौ,करना सीखव माफ।।


गुरु अमृतवाणी(२६)


*नारियल पान सुपाड़ी से सम्मान करो*


पान-सुपाड़ी नारियल,ले करलौ सम्मान।

ढोंग दिखावा छोड़ के,धरलौ गुरु के ज्ञान।।


काबर करथौ ढ़ोंग दिखावा।

छोड़व छप्पन भोग चढ़ावा।।

अंतस मा श्रद्धा ला राखौ।

सत्य नाम के फर ला चाखौ।।


अंध भक्ति ला छोड़ के,चलौ सत्य के राह।

सत्य करम के रातदिन,मन मा राखौ चाह।।


आडम्बर ला मत मानौ जी।

सत्य ज्ञान ला सब जानौ जी।।

अंतस ले अँधियार मिटालौ।

सत्य ज्ञान के जोत जलालौ


सदगुरु शिक्षा मंत्र हे,सब संतन बर सार।

सत्य ज्ञान ला मान लौ,जिनगी होही पार।।


गुरु अमृतवाणी (२७)

*मंदिर मस्जिद बनवाने से अच्छा है कुआँ,तालाब,अनाथालय,धर्मशाला बनाना चाहिए।*


मंदिर मस्जिद मा कभू,नइ होवय कल्यान।

बनवाके तरिया कुआँ,पावव जग सम्मान।।


मंदिर मस्जिद झन बनवाहू।

ए मा तो कुच्छू नइ पाहू।।

बने कुआँ तरिया खनवालौ।

जग मा सुघ्घर नाँव कमालौ।।


बनय अनाथालय इहाँ,करहू सफल प्रयास।

बनय धरमशाला घलो,दीन-दुखी बर खास।।


बनव हितैषी सबके भाई।

जीव-जंतु के करव भलाई।।

नेकी के सब करव कमाई।

ए ही होथे बड़ सुखदाई।।


दुरगम ला बनवा सुगम,सबके आही काम।

चल संगी सत राह मा,भज के जयसतनाम।।


गुरु अमृतवाणी(२८)

*जीव हत्या महापाप है*

दोहा-

जीव मारना पाप हे,मत करबे अपराध।

अपन जीव कस जान के,परहित ला नित साध।।


कखरो दिल मा चोट लगाना।

होथे ए बड़ पाप समाना।।

छोड़व संतो जीव सताना।

हत्यारा तुम झन कहिलाना।।


जब जिनगी नइ दे सकव,लेथव काबर प्रान।

लगही अब्बड़ पाप जी,मिट जाही सब शान।।


अपन जीव कस सबला जानौ।

पर के पीरा ला पहिचानौ।

जीव-जंतु ले प्रीत बढ़ावौ।

सत्य-नाम के रीत निभावौ।।


जीव-जीव सब एक हे,झन देहू जी चोट।

लोभ-क्रोध छल भावना,टारव मन के खोट।।


गुरु अमृवाणी(२९)

*बारहों माह के खर्च की व्यवस्था कर लें,

तभी पूजा अर्जना करें नहीं तो न करें।*


पहली बारा माह के,खर्चा अपन बटोर।

भक्ति-भाव मा तब बने,लगही मन हा तोर।।


लाँघन कस दुख नइ हे दूजा।

पेट भरे मा करहू पूजा।

हे सतगुरु के अमरित बानी।

सब संतन मन कहना मानी।।


घर मा नइ हे खाय बर,मन भटके जब तोर।

तब पूजा का प्राथना,लगा काम मा जोर।।


पेट भरे बर दाना नइहे।

काम-धाम मा जाना नइहे।।

तब पूजा मा का मन लगही।

भक्ति-भाव मन मा का जगही।।


अभिनंदन गुरु के करौ,बंदव संत समाज।

सच्चा मन से मान लौ,सत्य नाम ला आज।।


गुरु अमृवाणी (३०)

*पितृ-पक्ष मनाना पागलपन है।*

मातु-पिता भगवान हे,निसदिन कर सम्मान।

जीयत मा इनला खवा,रंग-रंग पकवान।।


मातु-पिता के करलौ सेवा।

रोज खवावौ लड्डू मेवा।।

सबो इँखर दुख ला हर लेवव।

जीयत मा सब सुख ला देवव।।


जीयत मा माने नहीं,माने पीतर पाख।

का खाही पकवान ला,जे होगे हे राख।।


पिंड-दान हे ढ़ोंग दिखावा।

छोड़व पीतर भोग चढ़ावा।।

मरे आदमी काला खाही।

ज्ञान तुहँर हिरदे कब आही।।


मरगे हावय तेन ला,छप्पन भोग लगाय।।

माने पीतर पाख ला,वो जग बइहा ताय।


गुरु अमृतवाणी(३१)

*तामसी भोजन और दुर्गुणों से दूर रहें।*


होथे जे हर तामसी,वो जेवन मत खाव।

बनके शाकाहार जी,दुरगुन ले बँच जाव।।


मत खाहू जी गरम मसाला।

ए सब हे दुरगुन के प्याला।।

सादा जेवन सादा बानी।

राखव कहिथे सदगुरु ज्ञानी।।


दुरगुन मा फँसके कभू,मत होहू जी चूर।

क्रोध,बैर,मदपान ले,राहव सब जन दूर।।


तामस जेवन ले मुँह मोड़ौ।

नशा-पान ला झटकुन छोड़ौ।।

रहव शुद्ध सब शाकाहारी।

सत्य नाम के बनव पुजारी।।


सदगुरु के उपदेश ला,जानै सकल जहान।

सत रद्दा मा रेंगहू,तब बनहू इंसान।।


गुरु अमृतवाणी(३२)

*निंदा और चुगली से घर बिगड़ता है*


कखरो मत निंदा करौ,बढ़थे ऐमा रोष।

निंदा ले का फायदा,छोड़व अइसन दोष।।


चुगल खोर मत बनहू भाई।

नइते होही बड़ दुखदाई।।

रोष-दोष के आगी बरही।

निंदा मा कतको घर जरही।।


निंदा मा नइ हे भला,बढ़थे व्यर्थ विवाद।

अइसन आदत छोड़ दौ,रखौ अपन मर्जाद।।


निंदा के झन बोंवव काँटा।

मारे जइसन होथे चाँटा।।

निंदा हा व्यवहार बिगाड़े।

समझौ जी घर-द्वार उजाड़े।।


चारी-चुगली छोड़ के,सत्यनाम गुन गाव।

तब होही सबके भला,सत्य बात पतियाव।।


गुरु अमृवाणी(३३)

*धन को किसी अच्छे कार्य में खर्च करें,व्यर्थ में नहीं उड़ायें।*


धन-दौलत अनमोल हे,फोकट झन उड़वाव।

अच्छा कारज बर भले,खरचा ला कर जाव।।


खून-पछीना जब गिर जाथे।

तब महिनत ले धन घर आथे।।

झन करहू फोकट धन खरचा।

ऊँचा एखर जग मा दरजा।।


महिनत के धन ला कहूँ,जुआ-नशा मा खोय।

मूँड़ धरै परिवार हा,परही सबला रोय।।


गलत जिनिस मा धन उड़वाहू।

पाछू चलके बड़ पछताहू।।

नेक-काम बर खरचा करहू।

तब तो सुख के झोली भरहू।।


सत्य करम ले धन कमा,कुछ परहित बर जोर।

धन फोकट मा झन उड़ा,कहिथे सदगुरु मोर।।



गुरु अमृतवाणी(३४)

*ये धरती आपकी है इसका श्रृंगार करें।*


ए धरती हे आपके,कर ले जी श्रृंगार।

पेंड़ लगा हरियर बना,ए ही सुख आधार।।


जुरमिल के सब पेंड़ लगावौ।

धरती के कोरा हरियावौ।।

तरिया नदिया ला मत पाटौ।

कभू पेंड़ पौधा मत काटौ।।


साफ रखौ पयार्वरण, ए जिनगी के सार।

धरती के सेवा करौ,बड़ पाहू उपहार।।


जंगल,नदिया,पेंड़ बचालौ।

जल-थल ला जी शुद्ध बनालौ।।

प्रकृति हवय अब्बड़ वरदानी

देथे जी सुख के जिनगानी।।


जीव-जंतु जंगल सबो,सुघर रहै संसार।

सदगुरु घासीदास के,अइसन नेक विचार।।


गुरु अमृतवाणी(३५)

*दीन-दुखियों की सेवा सबसे बड़ा धर्म है*


सबले बड़का धर्म हे,परहित परउपकार।

दीन-दुखी ला आज ले,सुख के दव उपहार।।


दया भावना मन मा भरले।

परहित के नित कारज करले।।

सबके करले सदा भलाई।

दुख के होही इहाँ बिदाई।।


मनखे सेवा धर्म हे,ए ही जग मा सार।

दीन-दुखी के कर भला,होही जय जयकार।।


अज्ञानी ला ज्ञान सिखादे।

भटके ला सत राह बतादे।।

भूखा ला जलपान करादे।

मानवता के फर्ज निभादे।।


सत्य धर्म ला जान लौ,भज लौ जी सतनाम।

करौ मदद इंसान के,इही पूण्य के काम।।


 गुरु अमृवाणी(३६)

*किसी के राह में काँटे न बोयें।*

ककरो रद्दा मा कभू,काँटा ला बगराय।

खुद तँय गड़बे जान ले,परही तब पछताय।।


ककरो बर झन काँटा बोहू।

नइते ओमा गड़ के रोहू।।

जलन भावना मन ले छोड़ौ।

दया-मया ले नाता जोड़ौ।।


काँटा बोंके राह मा,करथस तँय परशान।

पर के पीरा ला समझ,बनथस का नादान।


ककरो बर मत गढ्ढा कोड़ौ।

बैर- भाव ला तुरते छोड़ौ।।

पर पीरा ला अपने जानौ।

अपने सब मनखे ला मानौ।।


ककरो बनते काम मा, तँय बाधा मत डार।

सब बर सोच बनाय के,करले पर उपकार।।


गुरु अमृवाणी (३७)

*घमंड का घर खाली होता है*


नाशवान जिनगी हवै,मत करबे अभिमान।

जाना परही छोड़ के,तोला सकल जहान।।


चारे दिन के ए जिनगानी।

मत करहू जी तुम अभिमानी।।

माटी मा मिल जाही काया।

छोड़े परही जग के माया।।


अहंकार मा जेन हा,रहिथे हरदम चूर।

ओ तो बड़ पछताय जी,दुख पावै भरपूर।।


ए जिनगी के काय ठिकाना।

तज लेवव जी गरब गुमाना।।

माया के सब खेल पुराना।

दया-मया के गावव गाना।।


तज लौ गरब गुमान ला,जिनगी के दिन चार।

बनके सबके मीत जी,कर लौ सद व्यवहार।।


गुरु अमृवाणी(३८)

*झगड़े का जड़ नहीं होता,अचानक में भयानक नुकसान होता है*


झगरा के जर काट ले,रहिके जी चुपचाप।

होही दूर कलंक हा,छिन मा अपने आप।।


जब झगरा झंझट मा परहू।

गुस्सा के आगी मा बरहू।।

काय फायदा ए मा पाहू।

पाछू चलके बड़ पछताहू।।


जब रखहू मन शांत जी,झगरा खुद मिट जाय।

झगरा मा नुकसान हे,दुरगुन सदा बढ़ाय।।


बने शांति ले तुम राहव जी।

तब तो निसदिन सुख पाहव जी।।

सदा बढ़ावौ भाईचारा।

सुख-दुख मा सब बनव सहारा।।


झगरा बर मत जोर दौ,होथे बड़ नुकसान।

बढ़ जाथे मन भेद हा,समझौ संत सुजान।।


गुरु अमृवाणी(३९)

*न्याय सबके लिए बराबर होता है*


सब मनखे बर जान लौ,एक बरोबर न्याय।

जे दोषी बनही कहूँ,उही सजा तो पाय।।


न्याय सबो बर एक्के हावय।

इहाँ सजा अपराधी पावय।।

न्यायालय के महिमा भारी।

जानव समझव सब नर-नारी।।


न्याय पाय बर हे इहाँ,समता के अधिकार।

राजा चाहे रंक हो,सबो हवँय हकदार।।


प्रजातंत्र के एक चिन्हारी।

न्याय पाय के सब अधिकारी।।

संविधान के सुनव कहानी।

मानवता के इही निशानी।।


न्याय मिले बर हो जही,भले इहाँ कुछ देर।

सब बर हे कानून हा,नइ होवय अंधेर।।


गुरु अमृतवाणी(४०)

*धर्मात्मा वही है जो धर्म करता है।*


परहित परउपकार हा,सबले बड़का धर्म।

कहिलाथे धरमात्मा,जे करथे सत कर्म।।


सदाचार ला धारण करलौ।

दया-धरम हिरदे मा भरलौ।।

बनौ सबो जी पर उपकारी।

रखव हमेशा सत्य चिन्हारी।।


झूठ अहिंसा छोड़ के,करलौ सत के काम।

जीयव जिनगी शान से,भज के जी सतनाम।।


पूण्य कमा के मन हर्षालौ।

परहित करके नाम कमालौ।।

सत्य नाम के गाना गालौ।।

सदगुरु के कहना अपनालौ।।


दया-धरम संतोष हा,सत के हे पहिचान।

कर नेकी होही भला,ए ही सदगुरु ज्ञान।।


गुरु अमृतवाणी(४१)

*दुश्मन के साथ भी प्रेम रखो।*


बैरी के सँग मा घलो,सुघ्घर राखौ प्रीत।

गुत्तुर बोली बोल के,मन ला लेवव जीत।।


बैर-भाव ला दूर भगावौ।

दया-मया अब्बड़ बरसावौ।।

बैरी के बन जावव मितवा।

मन से मानौ ओला हितवा।।


आपस मा मिलके रहौ,मत राखौ मन भेद।

करुहा बोली बोल के,करहू मत दिल छेद।।


दया-मया ले नाता जोड़ौ।

बैर भावना मन ले छौड़ौ।।

मन के जम्मो भेद भुलावौ।

बैरी ला भी गले लगावौ।।


बदला लेके चाह मा,मन मा उपजै रोष।

सबो भुलाके बैर ला,कर लौ मन संतोष।।


गुरु अमृतवाणी(४२)

*मेरे संत जन मुझे किसी से बड़े मत कहना।*


मोला बड़का मत कहौ,कोनो संत सुजान।

मोर कहे उपदेश ला,मन मा राखौ ध्यान।।


सत्य नाम ला मानत राहौ।

ककरो ले बड़का मत काहौ।।

मन मा भर लौ अमरित बानी।

तब सुघ्घर चलही जिनगानी।।


सदगुरु बानी सत्य हे,जस अमरित के धार।

सबो संत धारण करौ,होही जिनगी पार।।


मोर नाँव के जपना छोड़ौ।

अंतस मा सतनाम ल जोड़ौ।

सत संदेशा ला सब गुनलौ।

सत के संतो रद्दा चुनलौ।।


अमरित वाणी के सबो,कर लौ जी सम्मान।

अंतस मा धारण करौ,मिल जाही सत ज्ञान।।


द्वारिका प्रसाद लहरे

बायपास रोड़ कवर्धा

छत्तीसगढ़

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चोवाराम वर्मा बादल

गुरु हे घासीदास , सत्य के परम पुजारी।

 सत के जोत जलाय, संत जग के हितकारी।

 पावन गांँव गिरौद,मातु अमरौतिन कोरा।

 धन-धन महँगू दास, पिता बन करिन निहोरा।1



 सत्य पुरुष अवतार, तोर महिमा हे भारी।

 सुमर-सुमर सतनाम, मुक्ति पाथें नर-नारी। 

ऊँच-नीच के भेद,मिटाये अलख जगाके।

 मनखे- मनखे एक, कहे सब ला समझाके। 2



तोर सात संदेश, सार हे मानवता के ।

समता के व्यवहार, तोड़ हे दानवता के।

 छुआछूत हे पाप, पुण्य हे भाईचारा।

 जात पात हे व्यर्थ, सबो झन करौ किनारा। 3



मातु पिता हे देव, तपोवन हावय घर हा।

 सबके हिरदे खेत, प्रेम के डारन थरहा।

 गुरु के आशीर्वाद,पाय हन छत्तीसगढ़िया।

 सत मारग मा रेंग, बनन जी सब ले बढ़िया।4


चोवा राम 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

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*सार छंद*


कोन कहाँ जी जाही कइसे,सबके करम बताही।

छोड़ जगत के मेला ठेला,पंछी हा उड़ जाही।।


धरम करम ला सार जान के,सत के रद्दा चुनले।

सुग्घर कर तँय काम जगत मा,मन मा अपने गुनले।।


छोड़व गा अब चारी चुगली,काँटा नहीं उगाहू।

मनखे जावव चेत नहीं ते,मार करम के खाहू।।


बैर भाव ला मेट इहाँ जी,करम बने तँय करबे।

सुनता ले सब काम सधे अब,राह नवा तँय गढ़बे।।


जात पात  के बँधना ला जी,भुर्री असन जलाहू।

बाबा के कहना माने ले,सद्गति सुग्घर पाहू।।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव (धरसीवाँ)

जिला-रायपुर

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 गीतिका छंद 

गोठ घासीदास के जी, पोठ हावय ज्ञान के

वो कहे हे सब बरोबर, खोज सत ला जान के।

जान ले सत ज्ञान ला अउ, बोल जय सतनाम के

हो जबो माटी सबोझन, नइ रबो कुछु काम के।।


हे अबड़ संसार मा ये, मोह माया जाल जी

जाल मा फँसके सबो के, हाल हे बेहाल जी।

भेद मनखे ला डहत हे, जस अगिन के डाह जी 

गोठ घासीदास जी के, धर चलव सत राह जी।।


छोड़ दव अब तो लड़ाई, भेद ला सब त्याग दव

मान लव सब हन बरोबर, एक स्वर मा राग दव।

एक दूसर बर रखव झन, दुश्मनी ला पाल जी

संग चलबो साथ जम्मो, देश हो खुशहाल जी।।


अनिल सलाम 🙏🙏

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 अमृतध्वनि छंद - बोधन राम निषादराज


(1) संत घासीदास

लाला  अमरौतिन   तहीं, बाबा   घासीदास।

सत् मारग सत् ज्ञान के,जोत जलाए खास।।

जोत  जलाए, खास  धरम के, पाठ  पढ़ाए।

मानवता  के,  दे  संदेशा,  जग  समझाए।।

जनहित बर तँय,धरे जपे हस, कंठी माला।

सादा  झंडा,  गाड़े तँय हा,  महँगू   लाला।।


(2)

जंगल झाड़ी खार मा,गूँजत हावय नाम।

अलख जगाइस ज्ञान के,बाबा पूरन काम।।

बाबा पूरन, काम  बनाइस, तप ला करके।

दया मया के,भाव जगाइस, सत् ला धरके।।

नाम   सुमरले,  बाबा  घासी,  होथे  मंगल।

जनहित खातिर,बाबा भटकिस,झाड़ी जंगल।।


(3)

जय हो घासीदास के,जय हो जय सतनाम।

जइसन एखर काम हे, सुग्घर  एखर नाम।।

सुग्घर  एखर, नाम  सत्य के,  हवै  पुजारी।

जात-पात के,  भेद  मिटइया, ये सँगवारी।।

बोली बोलव,गुरु चरनन मा,अमरितमय हो।

मनखे ला सत्,पाठ पढ़इया,बाबा जय हो।।


बोधन राम निषादराज

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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सुखदेव: सतनाम साखी 


गुरू कृपा ले बढ़ के भइया, कहॉं दुसर उपहार हो।

गुरू कृपा ले जिनगी नइया, होवत हे भॅंव पार हो।

होवत हे भॅंव पार, बोल दे सत्तनाम की जय।

सत्तनाम के नाम, सुमर के संत होत निर्भय।


सतनाम सार- 16, 12


गुरु घासी के जनम जयन्ती, अठारह दिसम्बर हो।

ए दे गूॅंजय गगन म पंथी , बजय झॉंझ मॉंदर हो।


लागे खोर-गली ह सुहावन, गॉंवों लगय सरग ना।

पुरे चौंक दुवारी दुवारी, फभत हवय घर ॲंगना।


हावे हर्षित ग हाट-बजार, शहर नगर छगन-मगन।

गुरु घासी बबा ल सोरियाय, ए डोंगर पर्बत बन।


खेती-खार निहारय रस्ता, लगे दरश आशा हो।

नान्हे बिरवा ला मिलही, गुरू ज्ञान शिक्षा हो।


साक-पान के बढ़गे सुवाद, कंद-मूल गुरतुर हो।

गुरु देहू परसाद रवा ला, ज्ञान गुण लय सुर हो।


नदिया नरवा कर पानी, कंचफरी निर्मल हो।

गुरु चरण पखारन खातिर, दुबी धरे हे जल हो।


करे ताप ला सूरुज मध्यम, आही जननायक हो।

बहे फूल के धरके सुगंध, पुरवा सुखदायक हो।


माता अमरौतिन के ललना, बाबा सतधारी हो ।

बाबा महॅंगूदास दुलारा, अंशा ॲंवतारी हो।


गुरु के माथ म चन्दन सोहय, कण्ठी गर शोभय हो।

गुरु पॉंव खड़ाऊ छू लेतेंव, अइसे मन होवय हो।


करय आरती बन दिया-बाती, मोरे तन अउ मन हो।

गुरु मन अंतस म बिराजव, लगे हृदय आसन हो।


रचना-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

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गीतिका छंद- विजेन्द्र वर्मा


मोह माया लोभ ला तो,त्याग दव सब आज जी।

बोल बोलव साँच अब तो,रोज करलव काज जी।।

संत चोला ओढ़ बाबा,देय सब ला ग्यान हे।

मीठ अमरित बोल ओकर,आज तो पहिचान हे।।


छोड़ निंदा चारि ला तो,नींद ले अब जाग तैं।

बाँट जग मा प्रीत सब ला,झन लगा अब आग तैं।।

मान कहना आज गुरु के,बूड़ सत के धार जी।

संत घासी बोले हावै,बात सुग्घर सार जी।।


तोर बिगड़े काज बनही,नाव जपले राम के।

रेंग सत के राह मा अब,सोच झन ये काम के।।

छोड़ दे अभिमान ला अब,देह बर ये नास ये।

संत घासी दास बाबा,बात केहे खास ये।।


गोठ पावन संत गुरु के,आज तँय हा मान ले।

जैत खंभा काय होथे,राह चुनके जान ले।।

होय उज्जर तोर अंतस,रेंग गुरु के राह अब।

राख निरमल आचरण तँय,होय पूरा चाह तब।।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

जिला-रायपुर

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गजल-- ( गुरु घासीदास जयंती विशेष)


संत घासीदास गुरु संदेश सत के सार संतो

सत्य ही गहना मनुज के प्रेम सुख आधार संतो


पर बुराई दूर रहना थाम सुमता के डगर चल

क्रोध दुख के आग मा मन जल जथे घर द्वार संतो।


चल अहिंसा राह मा नित थाम गुरु के सत्य बानी

माया नगरी ले तभे जी तोर तो उद्धार संतो।


ले जला हिरदे दुवारी दीप समता एकता के

कोंख माँ के एक जानौ एक हे परिवार संतो।


ज्ञान सत उपदेश गुरु के धर चले पात्रे गजानंद

मोर जिनगी मा सदा गुरु नाम के उपकार संतो।



*इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )


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 *जय जय गुरुघासी  बाबा जी, बिपदा  मोर हरौ* ।

 *आये हँव सतधाम तोर मँय, झोली  मोर भरौ* ।।1।।


 *दीन-हीन लइका  मँय बाबा, आऔ दुःख हरौ* ।

 *हँव अज्ञानी दुनिया मा मँय, मन उजियार करौ।।* 2।।


 *अमरौतिन महँगू  के ललना, हमरो ध्यान धरौ।* 

 *गुरुवर तँय हर हाथ बढ़ादे, किरपा आज करौ* ।।3।।


 *गुरु बाबा तँय हस हितकारी, सबके ख्याल करौ* ।

 *दयावान तँय सबले जादा, जग मा सत्य भरौ* ।।4।।


 *जगमग तोरे चिनहा चमकै, बाबा नमन करौं।* 

 *जगत पिता  महिमा हे भारी, तोरे चरन परौं* ।।5।।


 *सत के नाम जगत मा छावय, माया मोह टरै* |

 *समता सुमता राहय सबमा, जुरमिल गुजर करैं** ||6||* 


*बाढ़य बिरछा भाईचारा, मनखे साथ रहैं|* 

*दुनिया मा जब उपजय पीरा, सुखदुख सबो सहैं* ||7||


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 *छंदकार-* 

 *अश्वनी कोसरे रहँगिया "प्रेरक"* 

 *कवर्धा कबीरधाम(छ.ग.)*

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        (सार छंद)

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छत्तीसगढ़ के सुरुज बरोबर, सत अँजोर बगरइया। 

जन जन मा भाईचारा अउ, सुम्मत भाव जगइया। ।

मनखे सबो समान बताके, सत्तनाम गुन गाइन। 

मानवता के सुघ्घर रस्ता, दुनिया ला देखाइन। ।

अइसन संत सुजानी के हर, करम बचन हें पावन। 

बाबा घासीदास गुरु ला, जन जन करथें बंदन। ।

       जय सतनाम!!

दीपक निषाद -बनसाँकरा (सिमगा)

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रोला छंद


अमरौतिन के लाल,नमन हे बाबा तोला।

पारत हँव गोहार, दरश तँय दे दे मोला।

हे गुरु घासीदास,ज्ञान के जोत जलाये।

सार हवय सतनाम,जगत ला तहीं बताये।


नन्द कुमार साहू नादान 🙏

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ज्ञानू


सत्यनाम संदेश ला, दुनियाँ मा बगराय।

मेटय जन के पीर ला, बन्दीछोर कहाय।।


पढ़े लिखे नइ वो रिहिस, भरे ज्ञान अनमोल।

छिन मा देवय अउ इहाँ, आँखी सबके खोल।।


झूठ कपट जानय नही, कभू मोह अउ लोभ।

जिनगी भर दुरिहा रहय, इँखर ह्रदय ले खोभ।।


मानवता के सीख दय, समझै लोगन बात।

ढोंग गलत पाखंड बर, लगे रहय दिनरात।।


मनखे मनखे एक हे, करलव सबले नेह।

कहै गुरू घासी बबा, दुर्लभ मानुष देह।।



छंदकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी-कबीरधाम

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मोहन मयारू: *महिमा गुरु घासीदास के*


गुरु चरण बन्दन करौ , होय सुफल सब काज ।

रद्दा सत्या के धरौ , राखव सतगुरु लाज ।। 


होत बिहनिया नाम ले , करवँ सुमरनी तोर ।

सत्यनाम हिरदे बसे , बगरे  चारो ओर ।।


बनगे आज गिरौद जी , बाबा घासी धाम ।

जन्म धरिन जीहाँ बबा , गूँजय सत्यानाम ।।


पावन धाम गिरौद मा , बाबा ले अवतार  ।

सत्यनाम् गूँजय सदा , जगमा हावय सार ।

जगमा हावय सार , नाम ला तँय हर जपले ।

गाले सत्यानाम , पार जी होबे झपले ।

चरण कुंड के धार , बहय जी जइसे सावन ।

मेला लगथे रोज , धाम गा हावय पावन ।। 


कर सुमिरन सतनाम के , जाबे भवले पार ।

गुरु चरण मा मन लगा , नाम हवय जी सार ।।


बाबा घासी दास के , महिमा हवय महान ।

सत्य नाम निज सार हे , जानय सकल जहान ।।


महँगू के जी पूत , सत्य के रद्दा चलथे ।  

माता अमरौतीन , देख जी दुनिया जलथे । 

सत्यनाम् हे सार , सबो के सेवा करथे ।

मानव एक समान , मान जी पीरा हरथे ।।


   छंदकार - मयारू मोहन कुमार निषाद

                   गाँव - लमती , भाटापारा , 

                जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)

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जगदीश के दोहे

सतनाम हे सार


गुरु घासी सत ज्ञान ले, तारत हे संसार।

मानव गुरु उपदेश ला, होही बेड़ा पार।।


धन्य हवय भुइँया हमर, जय गिरौदपुर धाम।

सुमिरँव मैं सतनाम ला, गुरु के पावन नाम।।


सत बोलव सत मा चलव, जप लव जी सतनाम।

मिल जाही सद्गुरु कृपा, बनही बिगड़े काम।।


सत्यनाम जग सार हे, गाँठ बाँध के राख।

नइ माने जब साँच ला, होही सबकुछ खाख।।


भेदभाव ला दूर कर, बगराए हे ज्ञान।

मनखे मनखे एक हे, दव सबला सम्मान।।


जन्मे सब इक देश मा, राज गाँव सब एक।

रंग रूप गुन एक हे, अंतर का हे देख।।


जगदीश "हीरा" साहू (व्याख्याता)

कड़ार (भाटापारा), बलौदाबाजार

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 ज्ञानू कवि: मोद सवैया


प्यास मरे मछली जल भीतर आवत हे मोला सुन हाँसी।

आतम ज्ञान बिना भटके नर का मथुरा काबा अउ कासी।

नाम जपै नइ आलस मा फँसगे मनुवा माया गर फाँसी।

भक्ति बिना भव कोन तरै सत बात कहे बाबा गुरु घासी।


ज्ञानुदास मानिकपुरी

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अरविंद सवैया

1/

अमरौतिन के तॅय लाल बबा, ललना मॅहगू करगै बड़ नाम।

धर ऊॅच विचार करे मन मा, उपकार करे जस के सत काम।।

सतनाम कहै सतनाम धरै, सतमारग लेय बबा तॅय थाम।

दय भाग जगा जन के मन मा, सत लोक गिरौदपुरी गुरु धाम।।


2/

दियना ह बरै महिमा ल कहै, हमरे गुरु तो सुन होय महान।

जग तार दिये सतनाम दिये, मनखे मनखे कह एक समान।

सत साध सधै अउ ध्यान धरै, तन ले मन ले गुरु देवय ज्ञान।

सब चेत धराय बबा मनखे, सतमारग के करथै ग बखान।।


रामकली कारे

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*।। अरविंद सवैया छंद काव्यांजलि ।।*


मँहगू अमरौतिन के प्रिय लाल गिरौदपुरी म लिए अवतार।

सतनाम जपो सतनाम जपो कहिके सबके हरथे दुख भार।।

झन माँस ल खाव नशा झन लेवव जीव कहे ककरो झन मार।

मनखे-मनखे सब एक हवै सबले कर लौ बढ़िया व्यवहार।।१।।


सतजोत जलाय रहे अउ अंतस मा बस ध्यान लगावत जाय।

पर के तिय मातु समान निहारव ज्ञान सबो ल बतावत जाय।।

झन पूजव मूरति मंदिर जा निज रूप के मान बढ़ावत जाय।

विधवा मन के ग बिहाव कराय सती परथा ल मिटावत जाय।।२ ।।


मद लोभ मिटा तज काम बुरा नइ क्रोध भला नइहे भल मोह।

सत प्रेम दया करुणा दिखला सब जीव समान हवै गल जोह।।

मनखे मनखे सब एक हवै तज जात महा दुख ला झन बोह।

झन झूठ ल बोलव भेद ल छोड़व डाह रखौ मन मा झन खोह।।३ ।।


*रचनाकार अशोक धीवर "जलक्षत्री"*

ग्राम- तुलसी (तिल्दा-नेवरा)

 जिला- रायपुर (छत्तीसगढ़)

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 दोहा-

बाबा घासीदास


सत के रसता तँय चले ,बाबाघासी दास।

मानवता के पाठ दे,बनगे बाबा खास।।


अमरौतिन के लाल तँय, मँहगू रहे सपूत।

नाम अमर हे आज गा, सत्य राह के दूत।।


जय हो घासीदास के, जय होवे जतखाम।

गुरुवर तोरे पाँव मा, करत हवंव प्रणाम।।


झूठ कपट छोड़ो कहे,वाणी गा अनमोल।

गुरुवर के रसता चलौ,सत्य सत्य गा बोल।।


मनखे मनखे एक हे,करलो सबसे प्यार।

दू दिन के हे जिन्दगी, कहे बात वो सार।।


छोड़ो दारू माँस ला,गुरुवर के संदेश।

ज्ञान जगत में बाँट के,हरे रिहिस ग कलेश।।


छंदकार 

केवरा यदु "मीरा "

राजिम

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: आल्हा छंद-  सद्गुरु बाबा घासीदास

         - सुकमोती चौहान "रुचि"

सद के रस्ता चलिस सदा जी , सद्गुरु बाबा घासी दास।

मनखे मनखे सबो एक हे, भेदभाव के करिन विनास।



जय हो महँगू अमरौतिन के,जे जनीन अइसन औलाद।

ऊँच नीच ला मेटाये बर, अड़गे बनके ओ फौलाद।

कर प्रचार सतनाम पंथ के, सद के देवय ए संदेश।

बाबा घूमिन राज राज जी, ओमन बना साधु के भेश।

नेक करम के फल हर मिलथे, रहिस गुरू मन मा विश्वास।

सद के रस्ता......


धरके जनम गिरौध पुरी मा ,कर गिन ओला पबरित धाम।

आज बने हे सुरता मा जी,सुग्घर मंदिर जैइत खाम।

नाम अमर होगे बाबा के,अमर हवै ओमन के ज्ञान।

देखाये मारग मा चलके,आज सबो जी बनव महान।

घासी बाबा के संदेशा, उड़त हवै जी आज अकास।

सद के रस्ता.....


सुकमोती चौहान "रुचि"

बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.

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परमपूज्य संत गुरु घासीदास जी

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(रोला छंद)

रोला छंद


गुरु हे घासीदास , सत्य के परम पुजारी।

 सत के जोत जलाय, संत जग के हितकारी।

 पावन गांँव गिरौद,मातु अमरौतिन कोरा।

 धन-धन महँगू दास, पिता बन करिन निहोरा।1



 सत्य पुरुष अवतार, तोर महिमा हे भारी।

 सुमर-सुमर सतनाम, मुक्ति पाथें नर-नारी। 

ऊँच-नीच के भेद,मिटाये अलख जगाके।

 मनखे- मनखे एक, कहे सब ला समझाके। 2



तोर सात संदेश, सार हे मानवता के ।

समता के व्यवहार, तोड़ हे दानवता के।

 छुआछूत हे पाप, पुण्य हे भाईचारा।

 जात पात हे व्यर्थ, कहे सब करौ किनारा। 3



मातु पिता हे देव, तपोवन हावय घर हा।

 सबके हिरदे खेत, प्रेम के डारन थरहा।

 गुरु के आशीर्वाद,पाय हन छत्तीसगढ़िया।

 सत मारग मा रेंग, बने हन सब ले बढ़िया।4


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

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6 comments:

  1. अद्भुत अद्भुत संकलन शानदार सबके रचना हार्दिक बधाई जय सतनाम

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  2. हार्दिक बधाई जय सतनाम

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  3. कुछ सुधार के बाद पुनः प्रस्तुत हे ;-

    अमृतध्वनि छंद - बोधन राम निषादराज

    (1) संत घासीदास
    लाला अमरौतिन तहीं, बाबा घासीदास।
    सत् मारग सत् ज्ञान के,जोत जलाए खास।।
    जोत जलाए, खास धरम के, पाठ पढ़ाए।
    मानवता के, दे संदेशा, जग समझाए।।
    जनहित बर तँय,धरे जपे हस, कंठी माला।
    सादा झंडा, गाड़े तँय हा, महँगू लाला।।

    (2)
    जंगल झाड़ी खार मा,गूँजत हावय नाम।
    अलख जगाइस ज्ञान के,बाबा पूरन काम।।
    बाबा पूरन, काम बनाइस, तप ला करके।
    दया मया के,भाव जगाइस, सत् ला धरके।।
    नाम सुमरले, बाबा घासी, होथे मंगल।
    जनहित खातिर,बाबा भटकिस,झाड़ी जंगल।।

    (3)
    जय हो घासीदास के,जय हो जय सतनाम।
    जइसन एखर काम हे, सुग्घर एखर नाम।।
    सुग्घर एखर, नाम सत्य के, हवै पुजारी।
    जात-पात के, भेद मिटइया, ये सँगवारी।।
    बोली बोलव,गुरु चरनन मा,अमरितमय हो।
    मनखे ला सत्,पाठ पढ़इया,बाबा जय हो।।



    बोधन राम निषादराज
    सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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  4. बहुत सुग्घर संकलन । जय हो बाबा घासी दास की

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  5. जय गुरुघासीदास बाबा जी की

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  6. बहुत बढ़िया संकलन

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