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Saturday, December 12, 2020

कज्जल छंद- विजेन्द्र वर्मा

 कज्जल छंद- विजेन्द्र वर्मा


पताल

धान लुये बर जाय खेत

तब पताल के आय चेत

नून मिर्च ला डार नेत

पीस खाय धनिया समेत।


हवै विटामिन के खदान

अब पताल के गाँय गान

बखरी के हे हवै शान

खाय सबो लइका सियान।


जाड़

अबड़ जनावत हवय जाड़

काम बुता हा बाचे ठाड़

कँप कँप काँपत देह हाड़

जिनगी लागत हे उजाड़।


घर मा बइठे बबा मोर

जाड़ मरय तब करै शोर

रहि रहि झाँकय गली खोर

तापे बर अब घाम थोर।


सूपा

घर घर के तो हवै शान

सब झन देथे बिकट मान

फूने छीनें गहूँ धान

काम आय जी अबड़ जान।


आथे जब कोनो तिहार

दाई जाथे तब बजार

देखय सूपा ला निहार

ले बर पारय तब गुहार।


बोली

बोली हमरो हवै खास

लगथे संगी बड़ मिठास

दया मया के हवै वास

भरथे अंतस मा उजास।


गोरसी

संझा बेरा जभे आय

तभे गोरसी ल सिपचाय

जड़काला मा बिकट भाय

आँच गोरसी के सुहाय।


जाड़ कभू तन ला कँपाय

दाँत जाड़ मा किटकिटाय

आँच गोरसी बड़ सुहाय

थोर देर मा चट जनाय।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

जिला-रायपुर

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