*छत्तीसगढ़ के बियंजन- छत्तीसा (चौपाई)*
बर-बिहाव के माड़िस मड़वा | रोज छनत हे पपची लड़वा ||
बाँट तसमई के परसादी | गदगद होवत हे पड़-दादी ||
आठ ठेठरी सरलग खावै | तभो तिहारू नहीं अघावै ||
सैघो एक अँगाकर खावै | तब बंठू बूता बर जावै ||
जुडवाँ जुगरू-जगन जुगाड़ू | खावैं खूब करी के लाड़ू ||
नरियर अउर चिरौंजी लावै |तब खेदू खुरमी बनवावै ||
होटल के झन खाव कचौरी | लाव मसूर बनाव बफौरी || ,
मुठिया ला चटनी सँग खावौ | अउ सुस्ती ला दूर भगावौ ||
हाट सनिच्चर के जब जावौ | रइपुरहिन के अरसा लावौ ||
घेरी-बेरी खा झन किरिया | आज बरातू खा ले बिरिया ||
फिरतू कहै फरा मँय खाहूँ | तब्भे काम करे बर जाहूँ ||
आलू-गोभी के तरकारी | खूब सपेटत हे सोंहारी ||
दही बरा के ले चटखारा | तब जावै भइया के सारा ||
सारा के हे नाम भखाड़ू , तूकत हावै मुर्रा लाड़ू ||
पितर-पाख मा पुरखा आवैं | उरिद बरा खा के हरसावैं ||
चनाबूट भूँजै मनटोरा | हाट-बजार म बेंचै होरा ||
इडहर बर कोचइ के पाना | लाने हे नन्दू के नाना ||
बिन कुसली के होरी कइसे | बिना रंग पिचकारी जइसे ||
तिखुर सिंघाड़ा कतरा खावौ | कमजोरी ला दूर भगावौ ||
डबकत तेल म बबरा छानैं | नवा बहुरिया मन नइ जानैं ||
आम-पना पी घाम म भागै | कहै सियनहा लू नइ लागै ||
तिलिया रांधे बर तिल हेरै | फेर तिहारू घानी फेरै ||
पिठिया नुनछुर नुनछुर लागै | खाये मा ये कुरकुर लागै ||
रसगुल्ला जइसे दहरौरी | राँधे बर जानै बस गौरी ||
बिनसा के अब नाम नँदागे | जउन पनीर सहीं हे लागे ||
कोन केवचनिया ला जाने | ये हर ताकत दे मनमाने ||
नान्हेंपन के सुरता गुरतुर | अमली-लाटा चुरपुर चुरपुर ||
बोइर कूट सबो ला भावै | टूरा टूरी दुन्नों खावै ||
अमरस के पपड़ी खट-मिट्ठा | ओकर आघू सबकुछ सिट्ठा ||
हम्मन खावन गुड़ के पपड़ी | मरवाड़ी मन झड़कैं रबड़ी ||
गुरतुर-गुरतुर गुलगुल भजिया | फगनू हर खावै फुरसतिया ||
खावैं जुरमिल माई-पीला | सादा नुनहा गुरहा चीला ||
भाई बहिनी पेलमपेला | खावन छीन-झपट चौसेला ||
बर-बिहाव के जोरन खाजा | खायँ बरतिया दुलहा राजा ||
*अरुण कुमार निगम*
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