*अमृतध्वनि छंद*
(1) भाजी
भाजी के का गुन कहँव,पाला करे कमाल।
तिवरा मुनगा गोंदली, मेथी भाजी लाल।।
मेथी भाजी, लाल लहू ला, बने बढ़ाथे।
चुनचुनिया अउ,चना चरोटा,मन ला भाथे।।
कुरमा भथवा,जरी खेंहड़ा,सब मा राजी।
पुतका गोभी,राँध अमारी,सरसो भाजी।।
(2) भाजी
गुँझियारी बर्रे कुसुम,भाजी गजब सुहाय।
चेंच चनौरी चिरचिरा,कजरा उरला भाय।।
कजरा उरला,भाय करमता,अउ तिनपनिया।
खा मुसकेनी,गुमी करेला,भाजी धनिया।।
चौलाई अउ,काँदा भाजी,गुन बड़ भारी।
जंगल मा जी,मिलथे गजबे,ये गुँझियारी।।
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम
No comments:
Post a Comment