जयकारी छन्द- बासी
जरे घाम मा चटचट चाम, लगे थकासी रूकय काम।
खेवन खेवन गला सुखाय, बदन पछीना मा थर्राय।
चले हवा जब ताते तात, भाय नही मन ला जब भात।
चक्कर घेरी बेरी आय, तन के ताप घलो बढ़ जाय।
घाम झाँझ मा पेट पिराय, चैन चिटिक तन मन नइ पाय।
तब खा बासी दुनो जुवार, खाके दुरिहा जर बोखार।
बासी खाके बन जा वीर, खेत जोत अउ लकड़ी चीर।
हकन हकन के खंती कोड़, धार नदी नरवा के मोड़।
गार पछीना बिहना साँझ, सोन उगलही धरती बाँझ।
सड़क महल घर बाँध बना, ताकत तन के अपन जना।
खुद के अउ दुनिया के काम, अपन बाँह मा ले चल थाम।
करके बूता पाबे मान, बन जाबे भुइयाँ के शान।
सुनके बासी मूँदय कान, उहू खात हे लान अथान।
खावै बासी पेज गरीब, कहे तहू मन आय करीब।
खावत हें सब थारी चाँट, लइका लोग सबे सँग बाँट।
बासी कहिके हाँसे जौन, हाँस हाँस के खावै तौन।
बासी चटनी के गुण जान, खाय अमीर गरीब किसान।
पिज़्ज़ा बर्गर चउमिन छोड़, खावै सबझन माड़ी मोड़।
बदलत हे ये जुग हा फेर, लहुटत हे बासी के बेर।
बड़े लगे ना छोटे आज, बासी खाये नइहे लाज।
बासी बासी के हे शोर, खावै नून मही सब घोर।
भाजी चटनी आम अथान, कच्चा मिरी गोंदली चान।
बरी बिजौरी कड़ही साग, मिले संग मा जागे भाग।
बासी खाके पसिया ढोंक, जर कमजोरी के लू फोंक।
करे हकन के बूता काम, खा बासी मजदूर किसान।
गर्मी सर्दी अउ आसाढ़, एको दिन नइ होवै आड़।।
जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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