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Sunday, June 5, 2022

आल्हा छंंद* *हसदेव बचाबो*

 *आल्हा छंंद*

*हसदेव बचाबो*

चलव सबो हसदेव बचाबो, इही हमर हे तारनहार।

जंगल झाड़ी  रक्षा करबो, तभे बाचही खेती-खार।। 


नइ बाचय हसदेव नदी हा, जंगल मा खुल जही खदान।

दर्री बाँगों बाँध सुखाही, पानी खोजत रही किसान।।

इही बाँध हा सुनलौ संगी, जांजगीर के हे आधार।

जंगल झाड़ी रक्षा करबो, तभे बाचही खेती-खार।। 


हाथी भलुवा घर-घर आही, हमर जीव के होही काल।

व्यापारी मन नोट कमाही, वोमन होही माला-माल।।

इमन बनाही महल अटारी, होबो हम सब बिन घर-द्वार।

जंगल झाड़ी रक्षा करबो, तभे बाचही खेती-खार। 


अब आगे बेरा जागे के, माटी माँगत हे बलिदान।

माटी के रक्षा बर संगी, आघू आवव तुमन जवान।।

खाँधा जोरौ अब साँकर कस, भेदभाव सब लौ टार।

जंगल झाड़ी रक्षा करबो, तभे बाचही खेती-खार।।

*अनुज छत्तीसगढ़िया*

*पाली जिला कोरबा*

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