कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
चेला के चरचा चले, बढ़े गुरू के शान।
नता गुरू अउ शिष्य के, जग मा हवै महान।
जग मा हवै महान, गुरू के सब जस गावै।
दुःख दरद दुरिहाय, खुशी जीवन मा लावै।
सत के डहर बताय, झड़ाये झोल झमेला।
गुरू हाथ ला थाम, कमावै यस जस चेला।
जीवन मा उल्लास के, रंग गुरू भर जाय।
गुरू भक्ति सबले बड़े, देवन माथ नवाय।
देवन माथ नवाय, गुरू के सुमिरन करके।
अँधियारी दुरिहाय, गुरू दीया कस बरके।
गुणी गुरू के ग्यान, करे निर्मल तन अउ मन।
जौने गुरू बनाय, सुफल हे तेखर जीवन।।
डगमग डगमग पग करे, जिवरा जब घबराय।
रद्दा सबो मुँदाय तब, आशा गुरू जगाय।
आशा गुरू जगाय, उबारे जीवन नैया।
खुशी शांति के ठौर, गुरू के पावन पैया।
डर जर दुख जर जाय, बरे अन्तस मन जगमग।
गुरू कृपा जब होय, पाँव हाले नइ डगमग।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा (छग)
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