*आषाढ़ के गरमी(हरिगीतिका)*
आषाढ़ के गरमी गजब,अँइलात हावय तन सबो।
खेती किसानी हा घलो,देखव भुँजावत हे सबो।।
सब मूड़ धर रोवत इहाँ,मनखे बिचारा का करै।
पानी बिना धनहा सबो,मुँह फार के दर्रा परै।।
घर मा उही बन मा उही, होवय सबो हलकान जी।
धमका सहावै अब नहीं,बिनती सुनौ भगवान जी।।
अब चिलचिलावत घाम जी,बादर उड़ै आगास मा।
जोहत सबो रद्दा इहाँ, बइठे सबोझन आस मा।।
करलात हे सब जीव मन,नरवा बहै कब धार हा।
बीतत हवै आषाढ़ हा,परिया परै सब खार हा।।
काबर रिसाये देवता,अब ध्यान हमरो ला धरौ।
धरती सुखावत देख लौ,सुन आज बरसा ला करौ।।
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
सादर नमन गुरुदेव जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना जी।
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