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Monday, June 20, 2022

पितृ दिवस विशेष,छंदबद्ध कविता

 पितृ दिवस विशेष,छंदबद्ध कविता


 *हमर ददा - लावणी छंद*

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हमर ददा हा हमर संग मा,हाँसत अउ  मुस्कावत हे।

सरग बरोबर घर अँगना मा,अब्बड़ खुशी मनावत हे।।


बड़े-बड़े पइसा वाले मन,वृद्धा आश्रम भेजत हे।

बछर एक दिन मा जा के जी, पइसा  दे के देखत हे।।

पाले पोसे सकै नहीं वो,सेखी गजब उड़ावत हे।

हमर ददा हा हमर संग मा.....


अइसन परबुधिया मनखे के, चक्कर मा झन आहू जी।

अपन धरम अउ अपन करम ला,सुग्घर अकन निभाहू जी।।

मया ददा-दाई के अमरित,कइसे लोग भुलावत हे।

हमर ददा हा हमर संग मा.....


पढ़ा-लिखा के तोला संगी,मनखे बने बनाइस हे।

अँगरी धर जिनगी के रद्दा,तोला बने दिखाइस हे।।

अनपढ़ अपन भले हे संगी,  सब ला ज्ञान बतावत हे।

हमर ददा हा हमर संग मा....


सेवा करके मेवा पाथे,विधि के सुग्घर कहना हे।

देव बरोबर ददा कहाथे,मिलजुल के जी रहना हे।।

सुनौ *विनायक* पाँव परत जी,बात बने समझावत हे।

हमर ददा हा हमर संग मा....

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रचनाकार  :--

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम (छ.ग.)


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शोभमोहन श्रीवास्तव: ददा (कज्जल छंद)



जेन बाप हर पेट काट,


जोड़ै पइसा करै हाट,


लाय समोसा बरा चाट,


देवै घर मा चीज पाट ।



गरू लगत हे  उही बाप,


जेन भुला के अपन आप,


सबके सुख दुख रखे नाप,


आज सहत अपमान ताप । 



कलपत हावय मरे हाड़,


बेटा लहुटे मुँहबाड़,     


गइस ददा के करम छाँड़


ओकर सब सुख परे आड़ ।।



बाँटा होगे खेत खार,


डिलवा डोली मेड़ पार,


अइसन बेरा परिस मार,


जब्बर मनखे  गइस हार ।



जेकर साजे सजै साज,


घर मा जेकर चलै राज,                                        

अपन करे नइ सकत काज,


 हाथ गोड़ हे थके आज।



बेटा मन सब करौ मान,


बढ़िया राखव खान पान,


सेवा करके रखौ ध्यान,    


सबले बढ़के ददा जान।



शोभामोहन श्रीवास्तव


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: मोर ददा (बरवै छंद) बाल कविता


मोर ददा हे सुग्घर, सबले पोठ।

सुनले चिंकी बनही, मोरो गोठ।।


अपन मान थौ जेला, जी भगवान।

पूजा करँव नेक मँय, बन इंसान।।


सच्चा हावय जेकर, मया दुलार।

छाती जब्बर हिम्मत, हवे अपार।।


डाँटय फटकारय अउ, देवय साथ।

मोर सफलता मा हे, जेकर हाथ।।


हम ला लेके जावय, मेला टूर।

छोड़ लड़ाई झगड़ा, रहिथे दूर।।


घर के सबले बड़का, हवे सियान।

खड़े हवय बइरी बर, सीना तान।।


ददा मोर बर हावँय, विद्या ज्ञान।

जेकर कारण मोरो, हे पहचान।।


-हेमलाल साहू

छंद साधक सत्र-१

ग्राम-गिधवा, जिला बेमेतरा

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एक ठन सरसी गीत--------


बर के छॅइहा बाप ह होथे, दाई अमरित धार ।

सिरजनकारी पालनहारी , जननी जुग संसार ।


नव नव मासा कोख भितर ले; दाई सहिथे बोझ ।

छाती के कोरस ल पियाथे, ढाॅके अॅचरा सोझ ।

नान्हेपन ले बड़का करके, देथे मया दुलार----------

सिरजनकारी------------।


हाड़ चुरोके घाम छाॅव मा, सकले दाना बाप ।

लइका के सब साध पुराथे, खुद सहिथे संताप ।

सथरा तक ला बाॅट खवाथे, देथे सीख अपार---------।

सिरजनकारी------------।


बने रहे आशिष हमर बर, उॅखरे ले पहिचान ।

दाई ददा के छाॅव रहे ले, रहिथे गरब गुमान ।

लागा उॅखरो का छुट पाबो, सब दिन रही उधार-------------।

सिरजनकारी-----------


राजकुमार चौधरी

 टेड़ेसरा राजनादगाॅव

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डी पी लहरे: सरसी छन्द गीत..

*विषय-पितृ दिवस*


मोर ददा के गावँव संगी,निशदिन मँय गुणगान।

जेखर कारन पाये हावँव,दुनिया मा पहिचान।।


सुख के छँइहाँ देथे संगी,दुख मा देथे धीर।

ददा लुटाथे मया सबो बर,जइसे मेवा खीर।।

तीन लोक मा ददा सहीं जी,कोन हवय भगवान।

मोर ददा के गावँव संगी,निशदिन मँय गुणगान।।


दुख सह के सुख देथे मोला,करथे माला-माल।

दुख के बादर कतको आवय,बन जाथे जी ढाल।।

असल-नकल पहिचान कराथे,देथे अब्बड़ ज्ञान।

मोर ददा के गावँव संगी,निशदिन मँय गुणगान।।


घर के मुखिया ददा कहाथे,ददा जीव आधार।

जोरे रखथे जिनगी भर जी ,हँसी-खुशी परिवार।।

ए सांसा के राहत ले जी,करहूँ बड़ सम्मान।

मोर ददा के गावँव संगी,निशदिन मँय गुणगान।।


द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

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: दुर्मिळ सवैया- ददा


बिपदा दुख ला सहिके खुद हाँसत हे सुख सार बिहान ददा।

रहिथे खुद भूखन प्यासन जे नित मोर लिए भगवान ददा।

जग मान मिले पहिचान मिले सब मोर लिए बरदान ददा।।

जग पूत कपूत भले बन जावय फेर उदार महान ददा।।


रखथे परिवार सजोर सदा बर पेड़ सहीं सुख छाँव ददा।

हरथे तकलीफ दवा बनके भरथे दुख के नित घांव ददा।।

धर ध्यान गजानन बात सदा सब धाम बिराजय पाँव ददा।।

बन पूत सपूत चुका करजा बढही तब तो जग नाँव ददा।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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_*ददा गो*_


लइकापन मा अँगरी धर के,

 मँय खूब चले हँव तोर ददा गो।

पवँरी ह पिरावय खाँध चढ़ौं,

 चढ़ के सुख पावँव घोर ददा गो। 

बइठार झुलावच गोड़ झुला,

 अबड़ेच मचावँव सोर ददा गो।

सुरता करथौं अब तोर बिना, 

सुनसान गली अउ खोर ददा गो।।


रचना:बलराम चंद्राकर भिलाई

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