बरसात (गीतिका छ्न्द)
घन घटा घनघोर धरके, बूँद बड़ बरसात हे।
नाच के गाके मँयूरा, नीर ला परघात हे।
ताल डबरी एक होगे, काम के हे शुभ लगन।
दिन किसानी के हबरगे, कहि कमैया हे मगन।।
ढोंड़िहा धमना हा भागे, ए मुड़ा ले ओ मुड़ा।
साँप बिच्छू बड़ दिखत हे, डर हवैं चारो मुड़ा।
बड़ चमकथे बड़ गरजथे, देख ले आगास ला।
धर तभो नाँगर किसनहा, खेत बोंथे आस ला।
घूमथे बड़ गोल लइका, नाचथें बौछार मा।
हाथ मा चिखला धरें हें, अउ खड़ें हे धार मा।
जब गिरे पानी रदारद, नइ सुनें तब बात ला।
नाच गाके दिन बिताथें, देख के बरसात ला।
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ताल डबरी भीतरी ले, बोलथे टर मेचका।
ढेंखरा उप्पर मा चढ़के, डोलथे बड़ टेटका।
खोंधरा झाला उझरगे, का करे अब मेकरा।
टाँग के डाढ़ा चलत हे, चाब देथे केकरा।।
पार मा मछरी चढ़े तब, खाय बिनबिन कोकड़ा।
रात दिन खेले गरी मिल, छोकरा अउ डोकरा।
जब करे झक्कर झड़ी, सब खाय होरा भूँज के।
पाँख खग बड़ फड़फड़ाये, मन लुभाये गूँज के।।
खेत मा डँटगे कमैया, छोड़ के घर खोर ला।
लोर गेहे बउर बत्तर, देख के अंजोर ला।
फुरफुँदी फाँफा उड़े बड़, अउ उड़ें चमगेदरी।
सब कहैं कर जोर के घन, झन सताबे ए दरी।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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