दोहा-सन्त कबीर साहेब ला समर्पित
1. सत्य लोक ले अँवतरे, सद्गुरु संत कबीर |
काशी के तालाब में, आके हरलिस पीर ||
2. जेठ माह के पूर्णिमा,प्रगटे दास कबीर |
नीरू-नीमा के घलो, खुलगे जी तकदीर ||
3. कमल फूल मा शिशु बने, संत धरिस अँवतार |
आय लहरतारा मिलय, पावन गंगा धार ||
4. स्वामी रामानंद जी, गुरु बन बाँटे ज्ञान |
दोहा अउ साखी-शबद, लिखय रमैनी गान ||
5.निर्गुण ला करके नमन, भुलिस अंधविश्वास |
आडम्बर सब त्याग के, गुरु मा बाँधिस आस |
6. पंचमेल खिचड़ी रहय, भाखा सरल समान |
मध्यकाल के कवि बने, जग मा भए महान ||
7.जिनगी के अंतिम समय,मगहर बसय सुजान |
सदगुरु अँवतारी पुरुष, त्यागय अपन परान ||
दिलीप टिकरिहा "छत्तीसगढ़िया"
पिरदा (भिंभौरी),बेरला-बेमेतरा
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