भक्ति के मारग-छत्तीसगढ़ी भजन संग्रह
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भजन संग्रह का नाम - भक्ति के मारग
रचनाकार:-
बोधन राम निषाद राज "विनायक"
व्याख्याता वाणिज्य विभाग
शास.उच्च.मा.वि.सिंघनगढ़,वि.खण्ड,
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम (छ.ग.)
मोबाइल : 9893293764
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अंतस के गोहर - भक्ति के मारग
- डॉ. पीसी लाल यादव
सबे मनखे के मन मा सिरजन के भाव होथे । सिरजन के सुभाव ओखर जिनगी के सुख-दुःख,हाँसी-खुशी,उछाह-मंगल अउ मया-पीरा मा समाय रहिथे । जिनगी अनुभव के ढाबा आय । अंतस के अनुभव गोहर बन के साहित्य रूप मा ढर जथे । अब येहू डहर चेत करि के जब सबे मनखे मा अनुभव के धार हे त ओ सबे मा देखऊल काबर नइ दय ? त एखर उत्तर इही आय के जेन अपन अनुभव ला कागद-कलम ले ओगरा देते,ओ कवि/साहित्यकार बन जथे अउ जेन भाव ला ओगार नइ पाय, ओह मन मार के रहि जथे,पर अनुभव के संसार तो ओखरो करा होथे ।
साहित्य समाज ला दिशा देथे। समाज के रहन-सहन,चाल-चलन,रीत-नीत,परम्परा सबे साहित्य मा समा के समाज ला अँजोर देथे । जेन रचना अँजोर बगराथे साहित्य ये । जेन जिनगी जिए बर पलोंदी देथे अउ मानवीय मूल्य के बढ़ोतरी करथे,मनखे जिनगी मा सुघरई बगराथे,उही साहित्य हा सारथक होथे ।
छतयिसगढ़ी साहित्य के दशा अउ दिशा ऊपर बिचार करी त ये बात सामने आथे के पद्य साहित्य के लेखन गजबेच होथे अउ गद्य साहित्य के सिरजन मा हम बड़ पछुवाय हन । को जनी काबर? एखर बर सोचे ला परही । छत्तीसगढ़ी मा गीत-कविता लिखइया कतकोन पोठ साहित्यकार हे ।तइहा जुग ले देखबे त भक्ति काल मा भक्ति भाव के रचना होइस। धनी धरमदास,कबीरदास जी के चेला रिहिन,ऊँखर पद रचना मा भक्ति के मारग जेन ला हम पैडगरी कहि सकत हन देखऊल देथे। भक्ति पद चाहे ओ तुलसी-कबीर के होय के मीरा- सूरदास के होय या अउ दूसर भक्ति कालिन कवि मन के होय । सब मा "स्वान्तः सुखाय" के भाव हे । जेन ला सुनइया हिरदै ले ग्रहण करिन अउ ओ लोक व्यापी होगे । ओ बेरा परिस्थिति ओइसने रिहिस।
गाँव के रहइया लोक समाज मा भक्ति भाव समुन्द लाहरा कस लहरावत रहिथे।लोक मानस देवी-देवता के मान-गऊन ,गीत-संगीत ले करथे।तेखरे सेती लोक जीवन मा हरि भजन के प्रभाव,सुभाव और भाव मिलथे। भजन आत्म शांति के सबले बड़े साधन आय। कोनों सुनय के झन सुनय,गवइया अपने मा मगन रहिथे अउ "भक्ति के मारग" मा रेंग के मन भर सुख-शांति पा के भगवान के भजन गा के अपन जिनगी ला धन-धन कर लेथे। भाई बोधन राम निषादराज "विनायक" जी ह घलो अपन भावना के फूल ला देवी-देवता के चरन मा चघाय के उदीम करे हे। स्थानीय लोक देवी-देवता ह लोक जीवन के आराध्य होथे। लोहारा क्षेत्र मा सुतिया पाठ के गजब मान-गऊन हे त स्थानीयता के प्रभाव ये संग्रह मा अमाय हे-
जय हो जय-जय हिंगलाज माई,जय सुतियापाठ।
सेवा बजाथौं,माथ नवाथौं,बिनती सुनले आज।।
मनभावन तोरे अँगना ओ,महामाई शीतला माई।
मैं तोरे आरती गावौं ओ,तोला माथ नवावौं दाई।।
निमुवा के छइँहा मा बिराजे,सब के दुख हरइया।
भवन बने तोर सुग्घर लागे,लोहारा के भुइँया।।
लोक कंठ मा लोकगीत सउँहत बसे रहिथे।जब लोक कंठ ले गीत बगरथे त ओखर प्रभाव लोक जीवन मा ये देखे बर मिलथे,पता ही नइ चले के ये रचना गीत ये के लिखित गीत ये।ये संग्रह मा लोक गीत के बढ़िया प्रभाव समाय हे -
तोर मन मा बसे हे भगवान,खोजे ला तैंहा कहाँ जाबेगा।
झाँक ले अपन हिरदै भितरी,हरि ला पाबे गा।।
परम्परा के अनुसार कवि ह संग्रह मा दुर्गा वन्दना,गणेश वन्दना,शिव वन्दना मुहतुर करे हे।लोक जीवन मा राम,कृष्ण अउ शिव के प्रभाव जादा हे । तेखरे सेती भाई बोधन राम निषादराज "विनायक" जी ह इँखर भक्ति के रंग मा रंगे हे-
मोर कान्हा तँय जीव ला तरसाई डारे।
बिन मारे मँय तो मर गेंव,भुलाई डारे।।
कवि के स्तिथि अपन प्रिय बर मन ले कम नइ हे-
ब्रज के मुरारी घनश्याम रे,मोह डारे सखी आला।
माखन दही तँय लुटाय रे,कान्हा नन्द जी लाला।।
जेन मनखे ला अपन जात,धरम अउ देश के गरब-गुमान नइ रहे,ओ मनखे तो मुर्दा के समान आय। भाई बोधन राम निषादराज जी के घलो अपन जातीय गौरव हे। सबो जानत हे निषादराज जी ह भगवान राम ला गंगा पार नहाकाय रिहिसे। ये तो बड़ रोचक अउ भक्ति भाव ले भरे प्रसंग आय,त ये भक्ति कइसे छुटही -
नहकावँव नहीं राम,तोला गंगा के पार नहकावँव नहीं।
बूड़ जाही मोर डोंगा जी,बीच मझधार नहकावँव नहीं।।
तइहा जुग ले भक्ति कवि मन ये जिनगी ला नासवान बताय हे। अउ ये सिरतोन बात आय।साँसा के राहत ले ये ठाठ के पुछन्तर हे। पंछी उड़ा गे तहाँ ले पिंजरा के का मान, का गऊ न ? ये बात ला बोधन राम निषादराज जी कतका सुग्घर बऊरे हे -
पानी कस फोटका रे,पानी कस फोटका,
पानी कस फोटका,तोर काया फूट जाही।
झन करबे गरब अउ तँय,झन करबे गुमान।
तन के राहत ले कर,दया - धरम दान।।
ठगनी हावय दुनिया,तोर माया लूट जाही।
लोक भाषा के मिठास हिरदै ला अपन रस मा बोर देथे त तन-मन अउ जीवन धन-धन हो जथे।लोक भाषा सुने मा नीक अउ बोले मा मीठ लगथे।एखर प्रभाव कान डाहर अमा के हिरदै मा लहू बन के सँचर जथे।एखर सेती हमला अपन लोक भाषा माने माई भाखा छतयिसगढ़ी के बढ़ोतरी बर सरलग उदीम करना चाही। भाई बोधन राम निषादराज जी ये संग्रह मा अइसने उदीम करत दिखत हे। ऊँखर भाषा कतका सहज,सरल अउ सरस हे,बानगी देखव -
तँय बने दिए बनवासा,मोर माता कैकेई दाई।
बैचकही मन्थरा खातिर,घर ले दे निकलाई।।
मनखे ला अपन माटी,महतारी,संस्कृति अउ प्रकृति बर बड़ मया होथे।दरअसल इही माटी,महतारी,संस्कृति अउ प्रकृति ह मनखे के चिन्हारी आय। अपन चिन्हारी बचाय बर अपन माटी ला सोरियाय बिना जिनगी अकारथ हो जाही। माटी हे तभे तो मान हे,नइ ते मनखे मुर्दा समान हे। भाई बोधन राम निषादराज जी के सुग्घर बानगी -
मोर भारत माता के माटी,गंगा पाँव ला पखारौं।
मया के दीया बारँव,तोर आरती उतारौं।।
छत्तीसगढ़ के पावन भुइँया,राजिम धाम पधारे ओ।
महानदी के सुग्घर पानी,पापी जीव ला तारे ओ।।
"भक्ति के मारग" के रचना करके भाई बोधन राम निषादराज जी ह आत्म कल्यान के रद्दा देखाय हे। भक्ति मारग के रेंगइया मनखे ला धन-दोगानी नइ मिलय पर जिनगी बर सुख-शांति,संतोष अउ धीरज के धन जरूर मिलथे । इही ह तो जिनगी के सार ये "भक्ति के मारग" के इही विचार ये।आसा हे भजन प्रेमी भाई-बहिनी मन ला ये संग्रह ह नीक लगही।मैं भाई बोधन राम निषादराज जी के सरलग अघुवाये के कामना करत हँव । वो ह खूब पढ़ै,खूब गुनै अउ खूब लिखै।
- डॉ. पीसी लाल यादव
वरिष्ठ साहित्यकार व लेखक
गंडई, टिकरीपारा
जिला-राजनांदगाँव (छ.ग.)
मोबाइल - 9424113122
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अंतस के गोठ
- ज्ञानुदास मानिकपुरी
छत्तीसगढ़ राज्य के अपन अलग पहिचान हे अउ वो पहिचान हे इहाँ के बोली भाषा,संस्कृति,रीतिरिवाज अउ परम्परा।छत्तीसगढ़ के कुल आबादी 70% हा गाँव मा बसथे।अलग-अलग क्षेत्र मा अलग-अलग बोली,अलग परम्परा,अलग रीतिरिवाज अद्भुत लगथे। तभो ले छत्तीसगढ़ के मनखेमन बहुत जल्दी एक-दूसर ले मिल जथे।
इहाँ के मनखेमन बहुत ही भोलाभाला अउ सिधवा होथे,तेखर सेती कहे गेहे -"छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया"।हिरदे मा मया प्रेम उमड़त रथे।छत्तीसगढ़ महतारी के दुलौरिन बेटी कौशिल्या तेखर बेटा राम,ओखरे सेती छत्तीसगढ़ हा राम ला भाँचा कहिथे। इहाँ भाँचा के पाँव परे जाथे।एखरे सेती पूरा छत्तीसगढ़ हा राम के पूजा करथे।
ये सच हे कि साहित्य हा समाज ला रद्दा देखाथे । एक कवि समाज मा व्याप्त कुरीति ला अपन कविता के माध्यम ले दुनिया के सामने लाथे । आज के समे मा मनखे अतका व्यस्त होगे हे कि ओला थोरको अपन जिनगी के कल्यान करे बर समे नइये । अइसन समे मा कवि श्री बोधन राम निषादराज "विनायक" जी के ये किताब "भक्ति के मारग" मनखे के कल्यान बर उपयोगी हो सकथे।
छत्तीसगढ़ी भाषा के अपन अलग मिठास हे । बोले मा, सुने मा बहुत नीक लगथे,हिरदै गदगद हो जथे । कवि श्री बोधन राम निषादराज "विनायक" जी गाँव मा पले बढ़े हावय,ओखर रग रग मा गँवई वातावरण हा लहू बन के दउड़त हे।
आज भी गाँव मा रामनवमी,दशहरा,देवारी,होरी,गणेश चतुर्थी,जग-जँवारा ला विशेष रूप मा मनाय जाथे। उही भाव ला कवि श्री विनायक जी अपन ये किताब "भक्ति के मारग" मा उकेरे हे । मोला पूरा विश्वास हे कि ये भजन संग्रह छत्तीसगढ़ी साहित्य के कोठी ला बढ़ाही । बहुत ही सरल अउ सहज भाषा के उपयोग कवि द्वारा कहे गेहे वोहा हा पढ़ईया के हिरदै ला छुये बर पर्याप्त हे ।
भजन संग्रह "भक्ति के मारग" किताब मा कवि आत्म कल्यान के बात बताय हावय । भक्ति के मारग मा चलईया संगी मन ला ये संग्रह जरूर पसन्द आही अउ ऊँखर जिनगी मा भक्ति,सुख शांति अउ धैर्य जरूर मिलही ।
मैं कवि बोधन राम निषादराज "विनायक" जी के सरलग सृजन बर कामना करत हँव । सदा आपके कलम लोक कल्यान बर चलत राहय।
- ज्ञानुदास मानिकपुरी
(छंदकार)
ग्राम-चंदैनी (सहसपुर लोहारा)
जिला-कबीरधाम (छ.ग.)
मोबाइल : 9993240143
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समर्पण
मँय बोधन राम निषाद राज "विनायक" अपन छत्तीसगढ़ी भजन संग्रह *भक्ति के मारग* ला मोर जनम देवइया महतारी सरगवासी श्रीमती बुधियारिन बाई निषाद के चरण कमल मा सादर अर्पण करत हँव।
दाई तोर दुलार ला,इहाँ कहाँ मँय पाँव।
जब ले जिनगी हा रही,तोरे गुन ला गाँव।।
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"अपन गोठ"
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पीपर के हे छाँव जी,लोहारा हे गाँव।
घर के आगू देवता,राधा कृष्णा नाँव।।
मोर गाँव हावै थान खम्हरिया,जिला बेमेतरा।जिहाँ 15/02/1973 मा मोर जनम होइस हे।मँय उहाँ खेलेंव-कूदेंव अउ प्राथमिक शिक्षा पायेंव।मोर माँ - बाप बहुत गरीब रहिस हे।गरीबी मा तंग आ के शहर डाहर कमाय खाय बर चल दिस हे।उही समय सन् 1987 में मोर मामा श्री भरत लाल निषाद हा मोला अपन घर सहसपुर लोहारा ले आइस।ओखर देखरेख मा मँय इहाँ उच्च शिक्षा पायेंव अउ सन् 1998 मा शिक्षा कर्मी के नौकरी पायेंव।
मोला गीत, कविता अउ भजन पढ़े मा,सुने मा अउ गाये मा बहुत रूचि राहय।मँय अपन स्कूल के कार्यक्रम मा अपन लिखे वाले गीत ला गावँव।किताब के दोहा अउ कविता ला पढ़हँव त मोरो मन मा भाव उठै।इही भाव के कारण मँय गीत ला लिखे बर धर लेव।
मोर गीत लिखे के लगन ला देख के सहसपुर लोहारा के मैडम श्रीमती रविबाला ठाकुर "सुधा" हा मोला "छत्तीसगढ़ी साहित्य मंच" व्हाट्स अप ग्रुप मा जोड़वाइस ।जिहाँ बड़े-बड़े रचनाकार मन के रचना ला पढ़के मोला बहुत कुछ सीखे बर मिलिस ,तब ले मोर लिखे के उत्साह हा कई गुना बाढ़ गे।
आज मँय अपन छत्तीसगढ़ राज के संग-संग अपन देश के अउ कई राज के साहित्यकार मन संग व्हाट्स अप ग्रुप के माध्यम ले जुड़े हावँव।जिहाँ बड़े-बडे साहित्यकार मन के मार्गदर्शन अउ सुझाव मिलत रहिथे।
मोला बिसेष रूप ले प्रोत्साहन देवत रहिथे कबीरधाम जिला के साहित्यकार भइया जइसे श्री ज्ञानुदास मानिकपुरी जी, श्री महेंद्र देवांगन माटी जी,सिल्हाटी अंचल के कवि भाई मन के बहुत हाथ हावै।
मोर छत्तीसगढ़ी भजन संग्रह " भक्ति के मारग" के भजन ला सँजोय बर मोर कवयित्री बड़े दीदी श्रीमती सुधा शर्मा अउ श्रीमती केंवरा यदु "मीरा" दूनों छत्तीसगढ़ के पवन नगरी राजिम ,जेला छत्तीसगढ़ के प्रयाग कहे जाथे,के रहइया आवय।मँय ऊँखर बहुत-बहुत आभारी हँव।
विशेष रूप ले भजन लेखन अउ संकलन मा सहयोग करइया मोर धरम पत्नी श्रीमती शांति देवी निषाद,पुत्री लतारानी अउ पुत्र कुलेश्वर कुमार,इँखर मन के हिरदय ले आभार हे।
मँय परम आदरणीय गुरुदेव श्री अरुण कुमार निगम जी के सादर चरन वंदन करत हँव जेन मोर इही उत्साह अउ लगन ला देख के अपन "छंद के छ" ऑनलाइन कक्षा 5 मा छंद सीखे के मौका दे हावय।एखर बर मँय गुरुदेव के सादर आभारी हँव।
मोर छत्तीसगढ़ी भजन संग्रह "मुक्ति के मारग" के भुमिका लिखइया,गंडई (राजनांदगाँव) के रहइया डॉ. पी.सी.लाल यादव जी के बहुत बहुत आभारी हँव।
मोर छत्तीसगढ़ी भजन संग्रह "भक्ति के मारग" हा छत्तीसगढ़ राज भाषा आयोग के सहयोग ले प्रकाशित होय हावय। एखर बर आयोग के जम्मो सदस्य मन के हिरदय ले आभारी हँव।
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(1) जै हो शारदा माई
जै हो जै हो शारदा ,भवानी माता अम्बे।
सेवा ला गावौं तोर आज हो माँ।
मइया सेवा ला गावौं तोर,आज हो माँ।
लाली लाली चुनरी,ओढ़ावौं माता जननी।
अछत लगावौं चोला,साज हो माँ।
मइया सेवा ला गावौं तोर,आज हो माँ।
लोहारा वाली माता,शीतला भवानी ओ।
शरन पड़े हौं तोर,आज हो माँ।
मइया सेवा ला गावौं तोर,आज हो माँ।
चुन चुन फुलवा के,हार मैं चढ़ावौं ओ।
जोड़े हावौं महुँ दुनों,हाथ हो माँ।
मइया सेवा ला गावौं तोर,आज हो माँ।
जगमग जोत जंवारा, सोहे माई तोर।
रखवारी पंडा करे,आज हो माँ
मइया सेवा ला गावौं तोर,आज हो माँ।
कल कल दाई मोर, जिभिया लमावैं ओ।
तिरसुल उठावत हावै,आज हो माँ।
मइया सेवा ला गावौं तोर,आज हो माँ।
जम्मो भगत तोसे ,बिनती करतहे ओ।
बेडा पार करबे तैं,आज हो माँ।
मइया सेवा ला गावौं तोर,आज हो माँ।
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(2) सरस्वती वन्दना
सरस्वती मइया पइँया ,परत हँव मँय तोर।
ज्ञान के दीया बार के मइया,कर देबे अँजोर।।
नान्हें - नान्हें लइका हमन,
सुनले माता बिनती।
छोटे-छोटे हाथ ले मइया,
चढ़ावन फूल अउ पातीं।।
मन मा तँय जगादे ज्योति,चमकन गली खोर..............
सरस्वती मइया..........
मँजुर के सवारी मइया,
ज्ञान के देवइया।
बीना के बजइया मइया,
मन के तँय उजरइया।।
ज्ञान के गंगा बोहादे सात सुर
तँय छोड़.........
सरस्वती मैया........
चोर-ढोर कोनो मत होवे,
मन में बसे ईमान।
सत् रद्दा मा जावन मइया ,
अइसे दे वरदान।।
सब जन के तँय विपदा हरले,
हरले विपदा मोर.........
सरस्वती मैया.............
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(3) सरस्वती वंदना---
सरस्वती माई तोर आरती उतारौं।
ब्रम्हा के ब्रम्हाणी मइया,पाँव तोर पखारौं।।
एक हाथ मा पोथी मइया,एक हाथ मा बीना।
ज्ञान के गंगा बोहादे,जै-जै,जै गोहारौं।
सरस्वती माई तोर आरती उतारौं........
नान्हैं-2 लइका हमन,कोरा मा तोर आयेहन।
मन मा हमर दीया बार के,अँधियारी भगावौ।
सरस्वती माई तोर आरती उतारौं.........
आगू-2 राहन मइया,पाछू राहय दुनिया।
किरपा रही तुँहर मइया,हिरदे मा पधारौ।
सरस्वती माई तोर आरती उतारौं........
मँय अज्ञानी नइ जानव,विनती तोर करतहौं।
दे मोला आशीष मइया,कोन ला मँय गोहरावौं।
सरस्वती माई तोर आरती उतारौं.........
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(4) केंवट भइया -
(श्री राम,भक्त केंवट से कहत हे)
धीरे चलावव पतवार,केंवट भइया धीरे चलावव।
बइठे हे सिया सुकुमार,केंवट भइया धीरे चलावव।।
गंगा के पावन जल ले,सबो के प्यास मिटाना हे।
मइया के सुघ्घर रूप के,दरसन घलो जी पाना हे।।
भोली-भाली सिया हे सवार,केंवट भइया धीरे चलावव।
धीरे चलावव पतवार............
राजमहल के सुख काय,ओखर ले ए बड़ भारी हे।
पतिवरता में अव्वल, सीता ए मोर सती नारी हे।।
गंगा मइया दरसन अपार,केंवट भइया धीरे चलावव।
धीरे चलावव पतवार.............
सरग सुख ले बढ़िया हावै,काठ के तोर नइया।
छोड़न नइ भावय मोला, ए गा केंवट भइया।।
नइया भागत हावय मझधार,केंवट भइया धीरे चलावव।
धीरे चलावव पतवार............
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(5) केंवट भैया -
नहकावव नहीं राम, तोला गंगा के पार।
नहकावव नहीं...................
बूड़ जाही मोर डोंगा,जी बीच मझधार।।
नहकावव नहीं....................
सरहा हावै डोंगा मोर,जीविका के सहारा।
तोर पाँव के धुर्रा मा हे, जादू अपरम्पारा।।
बइठ प्रभु पार मा,चरन लेतेव मा पखार।
नहकावव नही.....................
श्राप पाइस अहिल्या,पथरा बनीस भारी।
तोर चरन छूवब मा, तरिस गौतम नारी।।
डोंगा कुछु बन जाही, नइ होवौं तियार।
नहकावव नहीं......................
ला केंवटीन कठौता,पाँव धोयेल परही।
चरणामृत ला पी, पुरखा हा मोर तरही।।
धूप-दीप पूजा , अउ आरती उतार।
नहकावव नहीं.....................
नइ लेवौं चढ़हाई,अउ नइ लेवौं उतराई।
तोर काम मोर काम ,एके हावय भाई।।
तहूँ केंवट,महूँ केंवट,दूनों के पतवार।
नहकावव नही.....................
घाट मोर आये प्रभु , पार मँय उतारहूँ।
मोरो बेड़ापार करबे,घाट तोर आहूँ।।
भावसागर के तरइया, महूँ ला देबे तार।
बोधन राम के जिनगी,करबे बेड़ापार।
नहकावव नहीं......................
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(6) जय हनुमान -
जय हो हनुमान,तोर महिमा हावै भारी।
केशरी-अंजनी नंदन, रूद्र अवतारी।।
जय हो हनुमान...................
राम अउ सुग्रीव के, मितानी कराये।
सीता माता जानकी के,पता तँय लगाये।।
लाँघ गये सागर तँय, मारे अतियाचारी।
जय हो हनुमान..................
मसक रूप ला धरे , घूम डारे लंका।
निशाचरी माया के, बजा डारे डंका।।
बल अपन दिखाई के,लंका जरा डारी।
जय हो हनुमान....................
संकट हरइया तहीं,लखन भइया राम के।
लाये सजीवन बूटी, तँय हा हरि नाम के।।
ज्ञान गुनवान तहीं , हावस बलधारी।
जय हो हनुमान....................
दानव मारे बड़े-बड़े, पापी ला संघारे।
सिया-राम-लखन के , काज ला सँवारे।।
करबे काज बोधन के, शरन मा तिहारी।
जय हो हनुमान......................
केशरी-अंजनी नंदन, रूद्र अवतारी।।
जय हो हनुमान......................
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(7) पानी कस फोटका -
पानी कस फ़ोटका रे,पानी कस फोटका।
पानी कस फ़ोटका,तोर काया फूट जाही।।
झन करबे गरब अउ,तँय झन कर गुमान।
तन के रहत ले कर, दया - धरम दान।।
ठगनी हावै दुनिया,तोर माया लूट जाही।
तोर काया फूट जाही...............
बड़े-बड़े महल अउ ,बनाये घर कुरिया।
जोरे नाता सैना सब ,हो जाही रे दुरिहा।।
माटी के हे चोला रे,माटी में मिल जाही।
तोर काया फूट जाही...............
जादा झन लाहो लेबे,दू दिन के जवानी।
प्रभु भगती करले ये,नइ मिलै जिनगानी।।
मन मंदिर खोल बइठ,हरि मिल जाही।
तोर काया फूट जाही...............
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(8) जय सुतियापाट -
जय हो जय-जय हिंगलाज,
माई जय सुतियापाट।
सेवा बजावौं,माथ नवावौं,
बिनती सुनले आज।।
जय हो...................
कइसन बिपदा परे आज,
आये हँव तोर दुवारी।
लाज बचाबे हमर मइया,
हमन लइका के महतारी।।
भाव-भगती जानव नहीं,
करबे पूरन काज।
जय हो..................
पहाड़ी के ऊपर मइया,
गजब बने तोर मड़िया।
चइत अउ कुँवार महीना,
लगथे मेला खूब बढ़िया।।
हरियर तोर जँवारा डोले,
कलश जोत जले दिन-रात।
जय हो..................
जगत् माता शेरावाली,
इच्छा शक्ति के देवइया।
आये हावन हमन शरन,
तँय दुःख-दारिद हरइया।।
करबे छइँहा अँचरा के,
तोर हाथ रहे मोर माथ।
जय हो..................
जय हो जय जय हिंगलाज,
माई जय सुतियापाट।
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(9) पिंजरा के सुवना -
भजन बिना जिनगी,होगे हे बिनकाम। ए पिंजरा के सुवना तँय,बोल राम-राम।।
जइसन बोलाथे जी ,जेवन के देवइया।
वइसने करम करबे रे,जीव हे जवइया।।
हमर सुख-दुःख सबो ,होगे हे हराम।
ए पिंजरा के...............
रहत ले तन के हरि,नाम तहूँ रटत रहा।
अपन करम कर तँय,ईश्वर ला जपत रहा।।
जीवन-मरन दूनों हावै,बिधि के हे काम।
ए पिंजरा के.................
मया-मोह झन कर तँय,दया-धरम करले।
भगती कर संगी तँय,पुन के गठरी भरले।।
पिंजरा छोड़ एक दिन, उड़ जाबे दूर धाम।
ए पिंजरा के..................
कोनों नइ तो जानै संगी,मन के कलपना।
चारों कोती एती-ओती,परथे रे भटकना।।
कहे बोधन राम सदा, भजलौ सियाराम।
ए पिंजरा के..................
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(10) चल ना रे काँवरिया -
चल ना रे काँवरिया, चल काँवर ला धरले।
सिका-जोंती चुकिया में,गंगा जल भरले।।
चल ना रे काँवरिया.........................
सावन के महीना हावै,शिव शंभु दानी के।
कर सेवा मन भरके,काँवर ले कमानी के।।
हर-हर बम भोले बाबा,पावन काम करले।
चल ना रे काँवरिया..........................
छोटे-बड़े सबो जाथे ,भोले के दरबार माँ।
गिरे-अपटे मनखे मन, खड़े हे दुवार माँ।।
जउने आसा करबे पाबे, बेल पतरी लेले।
चल ना रे काँवरिया.........................
भोला के मंदिरवा लगे,भगतन के मेला।
दुरिहा ले काँवर धरे ,आवत, धरे भेला।।
ॐ नमः शिवाय, बोधन राम तहूँ जपले।
चल ना रे काँवरिया..........................
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(11) भोले बाबा के दुवरिया -
लेके गंगा जल काँवर,चलत हे काँवरिया।
सावन के महीना,भोले बाबा के दुवरिया।।
लेके गंगा जल काँवर.......................
फोरा परे पाँव सबो,भगत मन हा चलत हे।
रिमझिम फुहार पड़े,काँवर हा डोलत हे।।
जै-जैकार होवत हे, गाँव अउ शहरिया।
लेके गंगा जल काँवर......................
जै हो बूढ़ा महादेव ,निराला तोर दरबार।
झूमे काँवरिया टोली,धरे धतूरा के हार।।
मेला लगे चारों कोती,छाये तोर नगरिया।
लेके गंगा जल काँवर.......................
काँवर रचरच बाजे,लइका नाचे रे जवान।
भोले बाबा के भगत,धरे त्रिशूल निशान।।
रंगे शिव जी के रंग ,निषाद राज भइया।
लेके गंगा जल काँवर.......................
सावन के महीना,...........................।
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(12) तुलसी दास जी के बानी -
लिखे हावै सीता-राम के कहानी,
गोस्वामी तुलसी दास जी के बानी।
राजा रामचंद्र ,रावन अभिमानी,
गोस्वामी तुलसी दास जी के बानी।।
लिखे हावै सीता-राम के कहानी।
संकट दुरिहा करइया हनुमान हे,
लक्षमन,भरत,शत्रुहन समान हे।।
राम जी के परम भगती वाले,
माता अंजनी के लाल बलिदानी।।
लिखे हावै सीता-राम के कहानी।
सीता-राम जोड़ी सुघ्घर ले आगर,
रघुकुल नन्दन परेम के गागर ।।
अवधपति राम जी संग सीता माई,
राम जी के नगरी धाम हे सुहानी।।
लिखे हावै सीता-राम के कहानी।
नर अउ बानर के संगती बिचित्र,
कहे कथा तुलसी श्री राम चरित्र।
काग भुसुंडि कहे गरुण के तिर म,
शिव शंकर शंभु कहे बचन भवानी।।
लिखे हावै सीता-राम के कहानी।
ज्ञान के गंगा बहाइस हे जग में,
राम कथा अमरित समाये रग-रग में।
भव सागर पार करेबर एक डोंगा हे,
राम गुन गा ले तर जाही जिनगानी।।
लिखे हावै सीता-राम के कहानी।
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(13) सर्पराज नाग -
नागों के नाग शेषनाग जी,
थोरकुन बिनती तो सुनले।
भोले शंकर के गर के हार जी,
मोरो बर तँय आज गुनले।।
औघड़ दानी के करे सिंगार,
तन बदन भभूति लगाये।
दुनिया के खातिर जहर ला,
पिलिस कंठ मा समाये।।
उही जहर के कारन तोरे,
तन बिखहर जहरीले।
नागों के नाग शेषनाग जी,
थोरकुन बिनती तो सुनले।।
सावन महिना पाख अँधेरी,
तिथि तोर पंचमी आथे।
ऋषि-मुनि , बइगा-घुमिया,
अपन मंतर ला उजराथे।।
हमरो रक्षा करबे देवता,
चरनन में महूँ ला रखले।
नागों के नाग शेषनाग जी,
थोरकुन बिनती तो सुनले।।
धरती के बोझा मूड़ धरके,
सागर ले तहीं बचाये हस।
श्री राम के भाई लछिमन,
अवतारी बनके आये हस।।
पाँव पखारौं तोर गुन गावौं,
शम्भु के सुरता ला करले।
नागों के नाग शेषनाग जी,
थोरकुन बिनती तो सुनले।।
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(14) शिव महिमा -
भोला भंडारी भूतहा के ,तँय संगवारी।
लट बगराये राखर चुपरे,महादेव त्रिपुरारी।
भोला भंडारी............
गर मा सर्प के माला पहिरे,मृग छाला हे तन मा।
हाथ मा डमरू त्रिशूल बिराजे,जटा मा गंगा धारी।
भोला भंडारी.............
कैलाशी पर्वत मा बइठे ,बघवा के आसन
मा।
तीन लोक के स्वामी प्रभु जी,बइला के सवारी।
भोला भंडारी..............
घोर हलाहल पी के प्रभु जी,नीलकंठ तँय बनगे।
दुनिया तोरे गुन ला गावै,जग के तँय हित- कारी।
भोला भंडारी...............
भस्मासुर जी करिस तपस्या,तँय हा वर दे डारेस।
ओला भसम करेबर विष्णु, छलिया के रूप धारी।
भोला भंडारी..............
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(15) भजन बिना -
ए दे भटकत हे संगी ,मन भजन बिना।
मन भजन बिना नइ,पावै जतन बिना।।
हरि नाम सुमिर, सुख -धाम सुमिर ले।
जीव के रहत ले ,बने काम तँय कर ले।।
जस नइ तो मिलै जी,दया-धरम बिना।
ए दे भटकत हे संगी...........
माटी के चोला रे ,माटी मा मिल जाही।
कर कुछु अइसे काम,नाम हो जाही।।
नइ तो मिलै पहिचान, करम बिना।
ए दे भटकत हे संगी............
हरि भगती बिन,जिनगी अधूरा होथे।
संत मिलन कर ले,इक्छा पूरा होथे।।
रस्ता सरग के नइ मिलै मरन बिना।
ए दे भटकत हे संगी...........
जीव-जगत के हावै , नश्वर माया।
अन-धन के पाछू , दौड़त हे काया।।
काया-माया छूट जाही,सुमिरन बिना।
ए दे भटकत हे संगी.............
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(16) ए जंगल के राजा -
ए जंगल के राजा, लेके आजा मोर मइया।
महूँ अँगना सजायेंव,जुरियाये हे देखइया।।
ए जंगल के राजा...........
गरजत-गरजत आबे,मोर घर के दुवारी।
अँगना चउँक पुरायेंव,करें सोला सिंगारी।
फूल-पान चढ़ाहूँ ,अउ ओढ़ाहूँ रे चुनरिया।
ए जंगल के राजा............
चन्दन काठ पिढ़ली, बइठाहूँ माता दाई।
गंगा जल में पाँव ला,पखारहूँ महा माई।।
जस सेवा गीत तोर,सुनावत हे बजइया।
ए जंगल के राजा...............
जोती-कलश तोर,सिरजे हावै आसन मा।
फूल फुले हरियर ,पिँयुरी तोर कानन मा।।
धजा अउ पताका सोहे,मंदिर- दुवरिया।
ए जंगल के राजा................
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(17) भोले बाबा डमरू धारी -
हमन आयेन तोर दुवारी,
भोले बाबा डमरू धारी।
हमरो जिनगी ला प्रभु तँय,उबार देबे गा।
डुबती नइया जिनगी के,उतार देबे गा।।
बइला के सवारी करे,त्रिशूल हे हाथ मा।
माता गौरा रानी सोहे,तोरे संग साथ मा।।
परबतिया कैलाशी,भोला प्यार देबे गा।
हमरो जिनगी ल प्रभु.......................
फइले जहर दुनिया मा,अमरित कर देबे।
धरम करम राहय सबो,पबरित कर देबे।।तरन तारन भुइँया बर,गंगा धार लेबे गा।
हमरो जिनगी ल प्रभु ....................
दूज के चँदा जइसे,तन मन अँजोर कर।
सुख दुःख तोर हाथ,महूँ ला सजोर कर।।निषाद राज भोला,चोला सँवार देबे गा।
हमरो जिनगी ल प्रभु ...................
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(18) तँय बने दिये बनवासा -
तँय बने दिये बनवासा,मोर माता कैकई दाई।
बैचकही मंथरा खातिर,घर ले दे निकलाई।।
तँय बने दिये बनवासा..........................
सिंगवेरपुर राजा ,केंवट भइया ले मिलाये।
पुरखा होइस तरन तारन,डोंगा मा बइठाये।।
गंगा पार कर डारेंव, नइ देयेंव उतराई।
तँय बने दिये बनवासा.........................
अतियाचारि बाढ़े रहिस ,दानव बलधारी।
जप तप मा बिघ्न डारे,कुटिया ला उजारी।।
रक्षा ऊँखर करे खातिर,बनेंव मँय सहाई।
तँय बने दिये बनवासा.........................
कुटिया मा दर्शन दे के, गौतम नारी तरेंव।
यज्ञ करे विस्वामित्र, काज ला सँवारेंव।।
भुइँया के भाग जगिस,बजिस हे शहनाई।
तँय बने दिये बनवासा,.......................
शबरी तरिस,सुग्रीव संग मिलिस हनुमान।
लंका मा रावन मार,देय विभीषन ला दान।।
सुख पाबे बोधन निषाद,करेंव मँय भलाई।
तैं बने दिये बनवासा,........................
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(19) गणपति महाराज -
मोला ज्ञान देना जी,गणपति महाराज मोला ज्ञान देना जी।
लइका हँव कुछु नइ जानँव मान देना जी।
मोला ज्ञान देना जी.......
मँय निर्बुद्धि निचट अढ़हा,अधम अउ गँवार हँव।
तोर चरन मा पड़े हवौं,नहीं मँय हुसियार हँव।।
हमरो कोती मुसा सवारी ध्यान देना जी।
मोला ज्ञान देना जी।
गणपति महाराज.........
ऋद्धिपति-सिद्धिपति गौरी के तँय लाला।
जबर कान हाथी चाल,मुकुट सोहे भाला।।
बुद्धि के खजाना देवा आन देना जी।
मोला ज्ञान देना जी।
गणपति महाराज..........
माता के दुलरवा शिवनंदन दुलारा।
गजबदन बरोबर तोर आँखी हावै तारा।
हमर जइसे दीन-हीन ला तार देना जी।
मोला ज्ञान देना जी।
गणपति महाराज...........
लइका हँव कुछु नइ जानँव मान देना जी।
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(20) "गणपति महाराज"
जै हो जै जै गणराज ,गणपति महाराज।
बिघ्न के हरइया प्रभु,करो पूरन काज।।
जै हो जै जै गणदेवा,......................।
पहिली सुमरनी प्रभु , तुँहीं ला मँय मनावौं।
मुसवा बरोबर महूँ , सेवा फल ला पावौं।।
धन भाग मँय मानौं तोला,घर बिराजे आज।
जै हो जै जै गणदेवा,......................।
शंभु सुत गिरिजा के ,नंदन दुलारा तहीं।
रिद्धि अउ सिद्धि के, धनी प्यारा तहीं।।
सबो देवता मिलके,पहिराये तोला ताज।
जै हो जै जै गणदेवा,......................।
तीनों लोक चउदा ,भुवन मा तोर शोर हे।
धरती रे अगास मा ,बगरे ओर छोर हे।।
कण कण में देवा तोर ,समाये हावै राज।
हाथ जोड़ बिनती करे,बोधन निषादराज।
जै हो जै जै गणदेवा,.....................।
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(21) जै हो मुसुवा सवारी -
जै हो मुसुवा सवारी,मँय करौं बिनती तोर ।
गणपति देवा हे स्वामी, अरजी हे मोर।।
जै हो मुसुवा सवारी........................।
मंडप बनावौं मँय अउ,आसन ला सजावौं।
मोदक चढ़ावौं, लड़ुवा भोग मँय लगावौं।।
परत हावौं पइँया , करबे अँगना अँजोर।
जै हो मुसुवा सवारी.......................।
पहली पहली सुमरनी,तोरे गुन ला गायेंव।
फूल पान नरियर ,सवाँगा ला चढ़ायेंव।।
गिरिजा सुत गजानन,बिराजे चारों ऒर।
जै हो मुसुवा सवारी.......................।
बुद्धि अउ ज्ञान दे दे,आन अउ मान दे दे।
दुःख दारिद दुनिया के,मिटा के शान दे दे।।
निषाद राज खुशी रहै,शरन मा आये तोर।
जै हो मुसवा सवारी.......................।
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(22) जै हो जै जै गणेश -
जै हो जै जै जै जै जै, होवै तोर गणेश।
बंदना करत हँव तोर,काटौ मोर कलेश।।
जै हो जै जै जै जै..............
गणपति बप्पा मोरिया,मूसक सवारी जी।
दूनों हाथ जोड़ मँय,खड़े तोर दुवारी जी।।
मइया परबतिया , पिता भोला हे महेश।
जै हो जै जै जै जै.............
बुद्धि के सागर अउ ,रिद्धि सिद्धि दाता।
मँय तोर गुन गावौं,मोर भाग के विधाता।।
जगमग अँजोर कर दे, गाँव गँवई देश।
जै हो जै जै जै जै.............
दुःख के हरइया तहीं, सिद्धि विनायक।
मंगल करबे हमरो, शुभ फल दायक।।
करहू निषाद जी के ,बिगड़े काम शेष।
जै हो जै जै जै जै...............
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(23) गोपी शिकायत -
हे यशोदा मइया,परत हँव तोर पइँया,
अपन कान्हा ला,अपन लाला ला थोरकुन समझाई देहू।
मोर बंसी के बजइया ला समझाई देहू।।
घर-घर वो हा चोरी-चोरी,सुन्ना घर मा जाथे।
माखन, मिसरी,दूध,दही,ग्वाला के संग खाथे।।
अपन लाला ला................
मोर बंसी के बजइया...........
पानी जाथन जमुना ता,वो पाछू-पाछू आथे।
रेंगत-रेंगत आगू-आगू,कनिहा ला मटकाथे ।।
अपन लाला ला ...................
मोर बंसी के बजइया ला..............
बाँस के वो तो बँसरी धरे,कदम मा चढ़ जाथे।
नहाये के बेरा नटखट कान्हा,लुगरा ला लुकाथे।।
अपन लाला ला..................
मोर बंसी के बजइया ला..........
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(24) मुरली वाला -
मोरे श्यामला सलोना,मुरली वाला।
मँय गोरी ब्रज की बाला।
नन्दलाल झुला झूलत हे।
जन्म लिये मथुरा के,कारागारा।
भाद्रकृष्ण अष्टमी अवतारा।
वासुदेव झुला झूलत हे।
श्याम बरन सोहे ,काँधे पीताम्बर।
कमल नयन सोहे,कटि मुरलीधर।
संग संग खेले गोप ग्वाला।
साजे वैजंती माला।
श्याम झुला झूलत हे।
खुशियाँ मनावे सब,वृन्दाबन धाम मा।
जमुना के नीर क्षीर,भोर अउ शाम मा।
कदम के डार डोरे डाला।
कन्हैया मीत वाला।
घनश्याम झुला झूलत हे।
ब्रज की पावन भूमि,श्री कृष्ण रंग मा।
रज भरे कण कण,प्रेम अउ उमंग मा।
देव दनुज ऋषि मुनि सारा।
चमके चाँद अउ सितारा।
ब्रजराज झुला झूलत हे।
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(25) भजन कीर्तन -
श्याम मुरली वाला,घनश्याम मुरली वाला।
ब्रज के कन्हैया नन्दलाला,
घनश्याम मुरली वाला।
गोकुल के गलियाँ,वृंदावन क्र गलियाँ,
लुका छिपी खेलें ,गोप ग्वाला।
घनश्याम मुरली वाला।
मथुरा के गोरी,बरसाना के छोरी,
रास करत नाचे,ब्रजबाला ।
घनश्याम मुरली वाला।
राधारानी रसिया,किशन के मनबसिया,
रस बरसावे,गोपी आला।
घनश्याम मुरली वाला।
यशोदा के ललना,झुले चन्दन के पलना,
गले में,वैजंती के माला।
घनश्याम मुरली वाला।
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(26) जस गीत -
सेवा ला गावौं मँय तुम्हार,जग जननी माया।
सेवा ला गावौं मँय तुम्हार ओ माँ।
कौन ओढ़ावै मइया,सतरंग चुनरी।
सतरंग चुनरी हो मइया,सतरंग चुनरी।
कौन पहिराये फुलवा हार,जगजननी माया।
सेवा ला गावौं मँय तुम्हार ओ माँ।
राम ओढ़ावै मइया,सतरंग चुनरी।
सतरंग चुनरी हो मइया,सतरंग चुनरी।
लखन पहिराये फुलवा हार,जग जननी माया।
सेवा ला गावौं मँय तुम्हार ओ माँ।
कौन सजावै मइया,चंदन के पिढ़ली।
चंदन के पिढ़ली मइया,चंदन के पिढ़ली।
कौन हलावै निमुवा डार,जग जननी माया।
सेवा ला गावौं मँय तुम्हार ओ माँ।
राम सजावै मइया,चंदन के पिढ़ली।
चंदन के पिढ़ली मइया,चंदन के पिढ़ली
लखन हलावै निमुवा डार,जग जननी माया।
सेवा ला गावौं मँय तुम्हार ओ माँ।
जगमग जगमग मइया ,जोत जलत हे।
जोत जलत हे मइया,जोत जलत हे।
दया मया देदे माँ अपार,जग जननी माया।
सेवा ला गावौं मँय तुम्हार ओ माँ।
हरियर हरियर मइया, तोर फुलवरिया।
तोर फुलवरिया हो मइया,तोर फुलवरिया।
करो माँ हमारो बेड़ापार,जग जननी माया।
सवा ला गावौं मँय तुम्हार ओ माँ।
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(27) सेवा जस गीत -
बन्दना :--
सुमिरन करतहौं दुरगा तोला,
करतहौं बिनती तुन्हार ओ।
गावत हँव तोर गुन ला दाई,
हमरो सुनले गोहार ओ।।
तर्ज :--
आ गे नौ दिन अउ नवरात ओ,
नौ नौ कलश सजावौं मँय हा आज ओ।
जम्मो देवता बिराजे तोर समाज ओ,
आ गे नौ दिन अउ नवरात ओ।
पहली कलश माता शैल पुत्री,
दूजा कलश ब्रम्ह्चारिणी।
तीजा कलश चंद्रघंटा बिराजे,
कलश सजावौं मँय हा आज ओ।
आ गे नौ दिन अउ नवरात ओ।
नौ नौ कलश सजावौ............
चउथा कलश माता कुषमाण्डा,
पांचवा कलश स्कंधमाता।
छठा बिराजे माता कात्यानी,
कलश सजावौं मँय हा आज ओ।
आ गे नौ दिन अउ नवरात ओ।
नौ नौ कलश सजावौ...........
सातवा कलश माता कालरात्रि,
महागौरी आठवा कलश मा,
नवम कलशा माता सिद्धिदात्री,
कलश सजावौं मँय हा आज ओ।
आ गे नौ दिन अउ नवरात ओ।
नौ नौ कलश सजावौ...............
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(28) देवी भजन -
दुर्गा मइया भवानी,
तोर दरस बर तरसे जिवरा ,
अम्बे महारानी।
1) ऊचाँ ऊचाँ परबत मइया,
ऊचाँ तोर अटारी।
दर्शन बर तोर निसदिन आवै,
लइका नर अउ नारी।।
दुर्गा मइया..............
2) लाल लाल तोर चुनरी मइया,
लाल ध्वजा लहरावै।
लाल लाल तोर माथ के बिंदिया,
लाली फूल चढ़ावै।।
दुर्गा मइया..............
3) दुर्गा काली विन्धवासनी,
बमलेश्वरी तँय मइया।
लोहारा के शीतला मइया,
सबके पार लगइया।।
दुर्गा मइया...............
4) हमरे लाज रखो तुम मइया,
आयेन शरण तुम्हारे।
भाव भगती हम कुछु नइ जानन,
खड़े हन हाथ पसारे।।
दुर्गा मइया..............
5) पाँच भगत मिल जस तोर गावै,
किरपा करहू हमारे।
बालकपन हँव कुछु नइ जानौं,
बंदौ चरण तुम्हारे।।
दुर्गा मइया..............
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(29) जय शीतला माई
मनभावन तोरे अँगना ओ,
महामाई शीतला माई।
मँय तोरेच आरती गावौं ओ,
तोला माथ नवावौ दाई।।
निमुवा के छइँहा मा बिराजे,
सब के दुःख हरइया।
मन्दिर बने तोर सुघ्घर लागे,
लोहारा के भुइँया।।
सेवा निस दिन करथे ओ,
सब मिलके बहिनी भाई।
मँय तोरेच.......तोला माथ........
ऊँच सिंहासन बइठे मइया,
लंगुरे चँवर डोलावै।
पंडा बाबा करे सवाँगा,
दियना जोत जलावै।।
रिगबिग-रिगबिग करे दियना,
सोला सिंगार कराई।
मँय तोरेच.........तोला माथ.......
चैत-कुँवार परब में दाई,
अँगना तोर भर जाथे।
तोर दर्शन के खातिर इहाँ,
मेला खूब भराथे।।
मनोकामना कलश सजे हे,
बोधन जोत जलाई।
मनु तोरेच........तोला माथ......
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(30) देवी सेवा गीत -
गावत हावै सेवा ला,झुपइया नाचे ना।
माता देवी के मंदिरवा मा शंख बाजे ना।
छम छम नाचत हावै,माई के लंगुरुवा।
डम डम बाजत हावै,भोले के डमरुवा।।
बाना गड़े लिम्बू खोंचे,धजा साजे ना।
माता देवी के................
चौसठ जोगनी अउ,पिसाचिन आवै।
भुतवा परेतवा मन ,भोले बाबा भावै।।
तिरसुल उठावै जब,पंडा जागे ना।
माता देवी के................
जै हो माता शक्ति सुघ्घर, रूप सिरजाये।
चोला साजे लाले लाल,सिन्दुर लगाये।।
सेवा करत बोधन राम ,आशीष पागे ना।
माता देवी के...................
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(31) देवी सेवा गीत -
झूला झुले निमुवा के डार,
भवानी मइया मोर अँगना।
छागे हे खुशी के बहार,
खनकन लगे मोर कँगना।।
गोबर मगायेंव खुँट अँगना लिपायेंव।
रिगबिग चुकचुक ले चउँके पुरायेंव।।
चन्दन पिढ़ा फुलवा के हार,
भवानी मइया मोर अँगना।
झूला झुले निमुवा के डार,.............
रेशम चुनरी अउ कलशा सजायेंव।
पाँव मा आलता बिंदियाँ लगायेंव।।
नौ दिन नौ राती करौं सिंगार,
भवानी मइया मोर अँगना।
झूला झुले निमुवा के डार,............
हँस हँस के सबो झुलना झुलायेंन।
सुख सौभाग्य के आशीष पायेन।।
बिनती निषाद के मया दे अपार,
भवानी मइया मोर अँगना।
झूला झुले निमुवा के डार,............
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(32) माता सेवा गीत -
फुले फूल बगिया ,तोरे रूप समाय।
जगजननी माया,फुलवा टोरन नइ भाय।।
चम्पा फूल शैलपुत्री,ब्रम्ह्चारिणी मोंगरा,
चन्द्रघंटा चमेली बसे,देवता मन लजाय।
जगजननी माया...............
कुष्मांडा दसमत मा,बेला मा स्कंधमाता,
गोंदा मा कात्यानी माता,दुनिया ममहाय।
जगजननी माया...............
रातरानी मा कालरात्रि,कमल महागौरी,
केशरिया मा सिद्धिदात्री,जिया हरसाय।
जगजननी माया..............
सबो नर-नारी मइया,तोर गुन ला गावय,
गुनत हे निषाद मइया,का फूल चढ़ाय।
जगजननी माया..............
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(33) सुरता आही तोर दाई -
सुरता आही तोर दाई,
जावत हस मोर माई।
सुन्ना होगे मोर घर के दुवार ओ।
आबे आगू बछर के तिहार ओ।।
निसदिन सेवा करेंव,दूनों हाथ जोड़ के।
मोला तँय हा तार देबे,गलती ला छोड़ के।।
हिरदे झनकत हे मोर,
बिदा करौं कइसे तोर,
मइया पारत हावौं तोर गोहार ओ।
आबे आगू बछर के तिहार ओ।।
रनभन रनभन झूमे मइया,लंगुर भवन मा।
सेवा जस गायेन मइया,जुर के अँगन मा।।
जगमग जोत जँवारा,
सोहे मंदिर तिहारा,
जल्दी आबे तँय हा सुन के पुकार ओ।
आबे आगू बछर के तिहार ओ।।
गंगा जमना कस,आँखी ले बोहावतहे धार।
कोरा छूँटत हे दाई,पायेंव मया अउ दुलार।।
भवन लागे सुन्ना तोर,
करबे अँगना अँजोर,
जोहत रहूँ मँय हाँ रद्दा ला निहार ओ।
आबे आगू बछर के तिहार ओ।
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(34) भजन संगीत -
मया के कोनो चिन्हारी नइ हे गा।
धरती-अगास के किनारी नइ हे गा।
शबरी श्री राम के,मया के नइ तो पार हे।
जनम-जनम ओखर,जिनगी के आधार हे।।
राम के किरपा ले,भिखारी नइ हे गा।
मया के कोनो.............
भगती अउ प्रेम दूनों,काया अउ माया हे।
किशन-सुदामा जइसे,गरीबी के छाया हे।।
एक दूसर बिना,बियारी नइ हे गा।
मया के कोनो ................
जसुमति मइया दे हे,कान्हा ला दुलार।
राम जी पाये,माता कौशिल्या के प्यार।।
दूनों माता हे महान,बिचारी नइ हे गा।
मया के कोनो.................
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(35) गोपी प्रेम गीत -
मोर तन मन मा श्याम,
मोर हिरदे मा श्याम।
मोला छोड़ के तँय कहाँ-कहाँ जाबे....
तोला बाँधे रइहौं अँचरा के छोर मा।
कन्हैया तोला बाँधे........
रास रचाये बृंदावन मा,
गोपियन सुध-बुध खोये।
मँय दीवानी राधा तोरे,
झर-झर नैना रोये।।
झन सताबे कान्हा रे,झन भुलाबे कान्हा रे,
तोला देखत रइहौं गली खोर मा..
कन्हैया तोला बाँधे......
मुरली बजाके तान सुनाके,
मधुबन मोला बलाये।
लुका-छिपी आँख मुँदौनी,
का-का खेल खेलाये।
मोरे पातर कनिहा,छोटे-छोटे बइहाँ,
टूट जाही पायलिया जोरा-जोर मा...
कन्हैया तोला बाँधे............
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(36) कान्हा के बँसरी
कान्हा के बँसरी हा,सुनावय मधुबन मा।
दौड़थे राधारानी, सुध भुलाके मन मा।।
डोंगरी पहाड़ मन मा, देख देख झूमत हे,
बन मा बनवारी नाचे,गोपी के मिलन मा।
कान्हा के बँसरी हा.............
जमुना के पानी घलो, देखिस निहार के,
कदम के डारा बइठे,लुकाए बालपन मा।
कान्हा के बँसरी हा,.............
नाचा करे गोपीयन,घनश्याम संग मा,
रास लीला देखावत,समाये तन मन मा।
कान्हा के बँसरी हा..............
गइया के रखवाला, गोपाला कहाये,
कमरा खुमरी सवाँगा,नखरा हे चलन मा।
कान्हा के बँसरी हा.............
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(37) गीत भजन -
महूँ होगेंव रे दीवानी,श्रीहरि नाम के।
बिंदियाँ लगायेव मँय,सुन्दर श्याम के।।
हरी हरी चुनरी, लाल फिता फुँदरी,
मँय तो जाऊँ बलिहारी ,राधेश्याम के।
महूँ होगेंव रे दीवानी.................
चँदा कस जोती हे ,लाल मुँगा मोती,
बनाऊँ मँय तो माला,बिहना शाम के।
महूँ होगेंव रे दीवानी................
गोकुल मा घुमूँ मँय ,बरसाना मा घुमूँ,
घुमूँ कोस चौरासी,बिरीज धाम के।
महूँ होगेंव रे दीवानी.................
राधारानी सखी बनूँ,नाचूँ अउ गाऊँ,
झूमें रे निषादराज,बिना बिश्राम के।
महूँ होगेंव रे दीवानी.................
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(38) राम भजन -
राम बड़े भाई अउ,
अवध के रघुराई।
सीता माई के खोजन बर,
जावत हे लखन भाई।।
बिलख-बिलख रोवय,
जगत के हँसइया।
लछमन रोवय देखय,
कहाँ सीता मइया।।
खोजत फिरत बने-बन,
भेंटिस शबरी दाई।
सीता माई के खोजन बर,
जावत हे लखन भाई।
केशरी नंदन हनुमंत,
बलसाली हे।
राजा राम संगी बने,
सुरुज खाये लाली हे।।
बानर सेना संग चलै,
लंका मा चढ़ाई।
सीता माई के खोजन बर,
जावत हे लखन भाई।
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(39) कान्हा भजन -
मुरली ला मुरली ला मुरली ला गा...2
तोर मुरली ला.......आ.....
तँय हाँ झन बजाबे कान्हा मुरली ला..
बही कस घूमत रहिथँव,सुध हा भुलागे।
काम बूता मा मोरो,मन हा नइ तो लागे।।
तोर मुरली ला......आ........
तँय हा झन बजाबे कान्हा मुरली ला....
सुरता भुलावय नहीं,निंदिया नइ आवय।
जमुना के तीरे तीर, मुरली हा सुनावय।।
तोर मुरली ला........आ........
तँय हा झन बजाबे कान्हा मुरली ला....
नैना कजरारे तोर,नैना मा समाये हँव।
मोर साँवरिया तोला,हिरदे बसाए हँव।।
तोर मुरली ला.........आ......
तँय हा झन बजाबे कान्हा मुरली ला....
मुरली ला मुरली ला मुरली ला गा....2
तोर मुरली ला.........आ.....
तँय हा झन बजाबे कान्हा मुरली ला...
हो हो हो.........आ आ आ..........
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(40) मोर कान्हा तरसाई डारे -
मोर कान्हा तँय जीव ला, तरसाई डारे।
बिन मारे मँय तो मर गेंव ,भुलाई डारे।।
मोर कान्हा तँय जीव ला............
ओ जमुना के तीर अउ,कदम के छइहाँ।
झुलना झुलाए डारे, जोरे दूनों बइहाँ।।
बही होगेंव का मोहनी ला ,खवाई डारे।
मोर कान्हा तँय जीव ला..............
आँखी मा मोरो तँय हा, कबके समाए।
सुरता मा मोला तँय हा ,गजबे रोवाए।।
हिरदे के कुरिया बइठे,बंसी बजाई डारे।
मोर कान्हा तँय हा जीव ला...........
कुँज गलियन मा, कान्हा बृंदाबन मा।
माखन चोर तँय हा,बसे तन-मन मा।।
मया बरसाई डारे ,रास ला रचाई डारे।
मोर कान्हा तँय हा जीव ला...........
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(41) मोहन के बाँसुरिया -
मोहन के बाँसुरिया,सुनावत हे बिहनिया।
कनिहा लचकावत आवत-जातहे, पानी भरेबर राधा पनिया।।
मोहन के.......
बेनी डोलत हावय, हँसी मुस्कावत हे।
जमुना के रस्ता मा,कइसे इतरावत हे।।
आभा मारे मोहना, बजाए मुरलिया।
मोहन के........
गघरी लुकाए अउ,अब्बड़ सतावत हे।
पनिया भरन बेरा,बड़ा वो तरसावत हे।।
मया मा फँसाए,दउड़त आवय रधिया।
मोहन के........
राधा के चुनरी उड़ावय, गली खोर मा।
बही बने घूमत हावय,बँधे मया डोर मा।।
मने मन मा गूनत,बितावत हवय रथिहा।
मोहन के.......
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(42) ब्रज के मुरारी -
ब्रज के मुरारी घनश्याम रे,
मोह डारे सखी आला।
माखन दही तँय लुटाय रे,
कान्हा नन्द जी के लाला।
जसोदा हे मइया तोर,
नन्द लाल जी के रनिया।
झूला झुलावै खिंचे डोर रे,
नटखट मुरली वाला।
कान्हा नन्द जी के लाला...
गइया चराए बन मा,
लीला तँय दिखाए।
बाँसुरी बजाए नाचे,
गोपियन ब्रज बाला।
कान्हा नन्द जी के लाला...
राधा गोरी नारी दिखय,
आँखी काजर काला।
हलधर के भाई तँय,
गर मा बैजन्ती माला।
कान्हा नन्द जी के लाला...
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(43) बाँसुरिया के तान -
बाँसुरिया के तान मा,नचावय कन्हैया।
राधा रानी घलो नाचै,बजावै पैजनियाँ।
बाँसुरिया के...........
माई जसोदा मोर,दही ला गँवाडारिस।
गोप गुवालीन मन, सुध ला भुला डारिस।।
रद्दा ला छोड़ कहाँ,जावत हे जवइया।
बाँसुरिया के...........
गइया चरावत सबो,खेले सब ग्वाला।
पनिया भरन छेड़े,दिखे भोला भाला।।
पनघट आय फोरे, पानी के गघरिया।
बाँसुरिया के............
चिरई चुरगुन घलो,धुन मा मोहाय हे।
तोर बँसरी राधा के,मन मा समाय हे।।
देख लीला कान्हा के,मन मा बसइया।
बाँसुरिया के...........
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(44) माटी के बंदना -
मोर भारत के माटी,गंगा पाँव ला पखारौं।
मया के दीया बारँव,तोर आरती उतारौं।।
मोर भारत के माटी.........
कतको बलिदानी होगे,तोर माटी मा खेले।
धुर्रा माथ लगाइ के,दुःख पीरा ला झेले।।
अइसन भुइँया के मँय,गुन ला बखानौं।
मोर भारत के माटी..........
गंगा जमुना सरस्वती,सिंधु अउ कावेरी।
हिमायल की बेटी,भुइँया करतहे घनेरी।।
सरग उतरगे इहाँ ,इही ला सब जोहारौं।
मोर भारत के माटी...........
बड़े बड़े ऋषि मुनि,जनम इहाँ धरिस हे।
एखर अन पानी खाए,पाँव सब परिस हे।।
मोर महतारी तोरे,कोरा ला गोहरावौं।
मोर भारत के माटी.........
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(45) दाई तोर अँचरा -
दाई तोर अँचरा मा,जिवरा मोर जुड़ावय।
सरग जइसे लागै ओ,सुग्घर मोला भावय।।
दाई तोर अँचरा मा........
सुत-उठ के पहिली मँय,चरन तोर पखारँव।
सेवा करँव मेवा पावव,दुख ला बिसरावँव।।
दुरगा,लछमी,शारद माई,सबो गुन गावय।
दाई तोर अँचरा मा..........
जनम दे हस धरती मा,दुनिया ला देखाए।
नान्हें ले बड़े करेस, अँगरी धर रेंगाए।।
तोर कोरा ला छोड़ कोनों,कहूँ नइ जावय।
दाई तोर अँचरा मा.........
तोर सहीं हितवा अउ,मितवा कहाँ पाही।
अइसन मया ला कोनों,छोड़ कहाँ जाही।।
अमरित कस बानी,तोर मुख ले बोहावय।
दाई तोर अँचरा मा..........
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(46) देवी गीत -
कइसे आवौं तोर दुवारी ओ बमलेश्वरी माई,
कइसे आवौं तोर दुवारी..........
कोंन जनम मँय का करी डारेंव,
भोगे के हावै पारी ओ बमलेश्वरी माई,
कइसे आवौ तोर दुवारी.............
रहितिस हाथ-पाँव मोर मइया,
दौउड़त मँय चले आतेंव।
माथा टेकत चरण पखारत,
मन मा मनौती मनातेंव ओ बमलेश्वरी माई, कइसे आवौं तोर दुवारी.......
मन मा गुनत रहिथौं मइया,
कब होही तोर दरसन?
जगमग-जगमग जोत जलाहूँ,
करहू इच्छा पूरन ओ बमलेश्वरी माई,
कइसे आवौ तोर दुवारी...........
विंध्यवासिनी ,शीतला मइया,
शारदा मैहर वाली।
मन मंदिर मा बइठे रहिबे ,
मइया जोता वाली ओ बमलेश्वरी माई, कइसे आवौ तोर दुवारी............
कोंन जनम मँय का करी डारेंव,
भोगे के हावै पारी ओ बमलेश्वरी माई,
कइसे आवौ तोर दुवारी.......
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(47) राजिम महानदी -
छत्तीसगढ़ के पावन भुइँया,
राजिम धाम पधारे ओ।
महानदी के सुघ्घर पानी,
पापी जीव ला तारे ओ।।
छत्तीसगढ़ के पावन भुइँया.....
पइरी अउ सोंढूर तोरे,
बहिनी कस बिराजे ओ।
संगे सँग मा मया बाँटे,
गंगा जमुना सहीं साजे ओ।।
साधु संत ज्ञानी मुनि,
सबो तहीं उबारे ओ।
छत्तीसगढ़ के पाबन भुइँया......
पापी मन के पाप धोये,
छाती तोर मइलाए हे
धरम के नाम मा इहाँ,
जहर ला बगराए।।
अमरित देके जहर पीए,
दुःख ला तँय बिसारे ओ।
छत्तीसगढ़ के पावन भुइँया.....
तोर कोरा मा बसे हावै,
इहाँ राजिम लोचन हा।
कुलेश्वर महादेव बइठे,
बइठे संकट मोचन हा।।
संझा बिहना तोर गुन गावै,
गंगा आरती उतारे ओ।
छत्तीसगढ़ के पावन भुइँया.....
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(48) चल माथ नवाबो -
चल माथ नवाबो........हो...
भोले के दरबार मा,चल माथ नवाबो।
दर्शन करके सुख ला पाबो गुन ला गाबो।।
भोले के दरबार मा.......
धोवा धोवा चाँउर,धरले अउ बेल पतिया।
पींयर केशर फूल ले,आए हे शिवरतिया।।
भाँग धथुरा गाँजा ला,सँग मा भोग लगाबो।
भोले के दरबार मा.........
हर हर बम बम बोल,जपले शिव के माला।
माँगव देखव मिलही,शिव हे भोला भाला।।
औघड़ दानी देवत हे,सुघ्घर फल ला पाबो।
भोले के दरबार मा.........
जटा जूट के मुकुट बने,गर मा साँप माला।
तन मा भभूती सोहे,अउ बाघाम्बर छाला।।
जाहर महुरा के पियइया,एखर गुन ला गाबो।
भोले के दरबार मा......
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(49) मातृ वंदना -
तोर गुन ला गावँव ओ,
मोला जनम देवइया..आ..
तोर गुन ला गावँव ओ।
ईश्वर के बरदान ला पाए,
कोंख मा तँय सिरजाए।
भूखन प्यासन लाँघन रहिके,
तँय अमरित ला पियाए।।
कतका तोर बखान करौं,
भवसागर ला देखइया...आ...
तोर गुन ला गावँव ओ।
नान्हें ले तँय बड़े कराए,
अँगरी धर तँय रेंगाए।
माँ के ममता पाठ पढ़ाए,
दुनिया ला तँय सिखाए।।
खेलेंव कूदेंव तोर अँगना मा,
सुघ्घर रद्दा बतइया...आ...
तोर गुन ला गावँव ओ।
तोर आसरा मा मँय दाई,
मँय हर नाम कमाहुँ।
दुनिया पाछू रही जाही ओ,
आगू बढ़ के दिखाहुँ।।
अपन चरन मा राखे रहिबे,
जिनगी पार लगइया...आ...
तोर गुन ला गावँव ओ।
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(50) कान्हा तोर बिना -
कान्हा तोर बिना,कान्हा तोर बिना।
मोला होरी खेलन नइ भाय रे।
कान्हा तोर बिना........
अपन ये मुरलिया मा,का जादू डारे तँय।
सुध ला भुलाडारेंव,नैना बान मारे तँय।।
कान्हा काबर मोला तँय मोहाय रे।
मोला होरी खेलन नइ भाय रे।
कान्हा तोर बिना........
पतली कमरिया तँय हा,धरके नचाए।
छुनुक छुनुक पायलिया,मोरे बजाए।।
लूट-लूट माखन दही खाय रे।
मोला होरी खेलन नइ भाय रे।
कान्हा तोर बिना.........
कदम के डारा मा रे,मया के झूलना।
हरु-हरु झूल लेबो,आबे झन भूलना।
मया मा मया ला झुलाय रे।
मोला होरी खेलन नइ भाय रे।
कान्हा तोर बिना.........
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(51) होरी गीत -
आजाबे राधा गोरी,आजाबे राधा गोरी।
सँग मा अबीर गुलाल ले,
चल खेलबोन ओ होरी।
श्याम रंग चुनरी ला,तोला मँय ओढ़ाहूँ।
दिखत हावै सादा जिनगानी,
बरसाना वाली छोरी।
सँग मा अबीर........
उलहा हे काया मोर,लठ ना चलइयो।
भले मार लेबे तँय पिचकारी,
झन करबे जोराजोरी।
सँग मा अबीर........
बाँसुरिया के धुन मा,तोला मँय नचाहूँ।
रास बिहारी मोर नाम हे,
बाजय पैजनियाँ तोरी।
सँग मा अबीर.......
लाल लाल गाल मा,रंगहूँ गुलाल ला।
कहाँ कहाँ जाबे तँय लुकाबे।
चुनरी नइ बाँचय कोरी।
सँग मा अबीर.......
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(52) तुलसी भजन -
जय हो मोर तुलसी मइया।
परत हँव मँय तोर पइँया।।
आरती उतारौ मँय हा ओ.....
पाँव तोर पखारौ मँय हा ओ...
बड़े बिहनिया सुत उठ के,
तोर दरशन ला पावँव।
सुघ्घर मँय हा नहा धोइ के,
फूल पतिया ला चढ़ावँव।।
रखबे घर ला सरग बरोबर,
गुन ला गावँव मँय हा ओ....
पाँव तोर पखारौ मँय हा ओ....
सदासुहागन मोला वर दे,
घर मा मोर बिराजे।
सदा रहै मोर घर खुशहाली,
हरियर घर मोर साजे।।
चूरी खिनवा तोला चढ़ावौं,
आशीष पावँव मँय हा ओ.....
पाँव तोर पखारौ मँय हा ओ....
तहीं दुरगा तहीं लछमी ओ,
मोर दुःख ला तँय हरबे।
मँय गरीबिन बेटी तोर ओ,
मोर कोठी तँय भरबे।।
जइसन मागँव तोला दाई,
फल ला पावँव मँय हा ओ.....
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(53) कृष्ण भक्ति -
तोर मुरली के तान ,बड़ा निक लागे रे घनश्याम।
मँय बही होगेंव तोर मया मा।
मोर आँखी हा तरसत हे,पानी हा बरसत हे।
मोर जिवरा लगे हे तोर पइँया मा।
मँय बही होगेंव तोर मया मा।
तोर मुरली............
निंदिया नइ आवै मोला,विरहा सतावै मोला।
मोला लेले बनवारी तोर बइहाँ मा।
मँय बही होगेंव तोर मया मा।
तोर मुरली...............
तन होगे सुख्खा रुखवा,आँखी सुख्खा तरिया।
अब जाहूँ मोहन तोरे छइहाँ मा।
मँय बही होगेंव तोर मया मा।
तोर मुरली...................
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(54) किशन कन्हैया -
किशन कन्हैया मुरली बजइया,
राधा के बनवारी।
मधुबन मा खेलत-कूदत नाचै,
मिलके संग-संगवारी।।
जेखर दर्शन बर तरसे,
ऋषि-मुनि अउ ज्ञानी।
ओखरे प्रेम मगन मा डूबे,
ब्रज के सब नर-नारी...
मधुबन मा .........
कमरा - खुमरी ओढ़े प्रभु जी,
मुरली सुघ्घर बजावै।
गइया चरावै धूम मचावै,
जग के पालनहारी....
मधुबन मा.......
गइया नाचै बछरू नाचै,
नाचै गोप गुवालीन।
राधा के संग रास रचावै,
बइहाँ मा बइहाँ जोरी....
मधुबन मा.....
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(55) मुख मुरली बजइया -
मुख मुरली ला बजावै राधा रसिया रे।
मोर हिरदय मा बसे हे मन बसिया रे।।
रात-दिन मोर वोहा सपना मा आवय।
श्याम सलोना कान्हा बँसरी बजावय।।
उठ भिनसरहा ले देखौ तोर छइँया रे।
मोर हिरदय मा...........
गइया के कोठा लगय मंदिर देवाला।
दर्शन ला पावँव मँय तोर मुरलीवाला।।
अँखियाँ मा बसे हे तोरे सुरतिया रे।
मोर हिरदय मा..........
जमुना के तीर मा कदम के रुखवा।
तोर बिना कोन हरय मोरे ए दुखवा।।
आगी बरत हवे धक-धक छतिया रे।
मोर हिरदय मा...........
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(56) वीणा के बजइया -
वीणा के बजइया दाई तोर ओ,
चरनन मा माथ ला नवावँव।
आशीष दे मोला तँय हा ज्ञान के,
निसदिन मँय तोर गुनला गावँव।।
वीणा के बजइया..........
निचट अज्ञानी दाई मँय ओ,
अनपढ़ गँवार सहीं रहिथँव।
हमरो ऊपर किरपा बरसाबे,
दुःख दारिद सबो ला सहिथँव।।
माई तँय ज्ञान दे जिनगी सँवार दे,
तोर कोरा मा बइठे मँय हावँव।
वीणा के बजइया......
शारदा भवानी सुनले बिनती,
मँय गरीब बालक नादान हँव।
तोर वीणा के तार ला बजादे,
मूरख मूढ़ जइसन इंसान हँव।।
सुर दे ताल दे मोला उपहार दे,
माता मँय हा ध्यान ला लगावँव।
वीणा के बजइया.......
आजा मोरो कंठ मा समा जा,
दुनिया मा सोर ला बगराहूँ।
मोर मन ला निरमल तँय करदे,
सादा उच्च बिचार मँय हा पाहूँ।।
मन के अँधियारी ला मिटाबे,
सत् के रस्ता मा मँय हा जावँव।
वीणा के बजइया.......
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(57) सोन के मिरगा खातिर -
माता काबर मन ला लगाए,
सोन के मिरगा खातिर,तँयहा मन ला लगाए।
साधु बन पापी रावन, ए कुटिया मा आए।।
माता काबर मन ला लगाए ....
छलिया ए मारिच रचे,कइसे तँय मोहागे।
माया मिरगा के पाछू,राम हा कइसे भागे।।
बिधाता अइसे का खेल रचाए।
माता काबर मन ला लगाए.......
बन मा खोजत फिरत,मिरगा कहाँ लुकागे।
बान लगे चिल्लाए सीता,सीता सुध भुलागे।
राम बचन कस भाखा भाए।
माता काबर मन ला लगाए........
लछिमन सोचै भइया,राम ला बिपदा परगे।
लछिमन के रेखा लाँघय,माता रावन हरगे।।
हाय रे पापी तँय साधु बनके आए।
माता काबर मन ला लगाए.......
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(58) कोइली बोलथे-सेवा गीत -
कोइली बोलथे आमा डार,
भवानी मइया तोर अँगना।
उड़े फर फर चुनरी तुम्हार,
भवानी मइया तोर अँगना।।
कोइली......................
मैना मँजूर चुन चुन फ़ुलवा,
मोंगरा केकती लावय।
गूँथे सुघ्घर गर के हार,
भवानी मइया तोर अँगना।
कोइली......................
माता के चरन तीर बइठे,
लँगूर चँवर डोलावय।
धूप-दीप आरती उतार,
भवानी मइया तोर अँगना।
कोयली.....................
नव तोर कलसा ला साजे,
नव ज्योति मँय जलावँव।
नित संझा बिहना तियार,
भवानी मइया तोर अँगना।
कोयली.....................
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(59) माई आवत होही -
दाई आवत होही ओ,माई आवत होही ओ।मोर बर आशीष लेके,लावत होही ओ।।
दाई आवत होही ओ........................
चल बहिनी ठउर ला,चिक्कन हम करबो।
माता के अगोरा मा, कलसा ला भरबो।।
नव दिन बर नव बहिनी,आवत होही ओ।
दाई आवत होही ओ.......................
नव पिढ़ली मा माँ के,आसन मँय लगाहूँ।
लाली लाली चुनरी ला,माई ला ओढाहूँ।।
छुनुर छुनुर पइरी ला,बजावत होही ओ।
दाई आवत होही ओ......................
चन्दन अउ बंदन के,तिलक माथ लगाहूँ।
माता के चरन मा ओ, आलता सजाहूँ।।
दाई मोरो बर ए दे,सोरियावत होही ओ।
दाई आवत होही ओ....................
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(60) हे दुर्गा भवानी -
हे दुर्गा भवानी ओ,मँय तोरे गुन ला गावँव।
तोरे गुन ला गावँव,चरनों में माथ नवावँव।।
हे दुर्गा भवानी ओ..................
चैत नवराती मा दाई,ज्योति तोर बरतहे।
जगमग जगमग माँ,भुवन तोर करत हे।।
तोर रूप मोहनी के मँय,दरशन ला पावँव।
हे दुर्गा भवानी ओ..................
झिलमिल-झिलमिल,लाली चुनरिया माँ।
करधन सुघ्घर साजे,तोर कमरिया माँ।।
करँव सेवा तोर दाई,फूल मँय चढ़ावँव।
हे दुर्गा भवानी ओ.................
तोर दरशन खातिर,आसा लेके आएँव।
बने मोर भाग दाई,बने फल ला पाएँव।।
तोरे आसरा हे मोला, तुहीं ला मनावँव।
हे दुर्गा भवानी ओ................
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(61) पइरी बजावत आबे -
पइरी ला बजावत आबे ओ,
फूल जइसे हाँसत आबे ओ।
महिना तोर चइत आगे ओ,
मोला गोहरावत आबे ओ।।
पइरी ला......................
करत हँव अगोरा डेहरी बइठे,
तोर पाँव के धुर्रा ला उठावँव।
गंगा जल चरु मा निकालँव,
फूल जइसे पाँव ला पखारँव।।
बघवा मा बइठे सुघ्घर माई,
धजा ला लहरावत आबे ओ।
पइरी ला........................
रोज रोज नवा नवा रूप माँ,
दरशन ला मोला तँय कराबे।
नव दिन नव राती दाई तैंहा,
आशीष दे दुःख ला हराबे।।
तोर कोरा मा मैंहा बइठे रइहूँ,
मया तँय बरसावत आबे ओ।
पइरी ला........................
हलुवा-पूड़ी-मेवा मोर माता,
नव कन्या भोग मँय लगावँव।
तोर नाँव के जोत अउ जँवारा,
फुलवारी ला सुघ्घर सजावँव।।
सबो बहिनी अँगना खेलावँव,
मुच-मुच हँसावत आबे ओ।
पइरी ला.........................
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(62) माँ की चौपाई -
मइया ला चुनरी ओढ़ाबो।
आशीष हमन ओखर पाबो।।
माता रानी दया दिखाथे।
जे नर नारी गुन ला गा थे।।
पापी मन ला मार गिराए।
जग ले अतियाचार मिटाए।।
भक्ति शक्ति के जोत जलाए।
सेवा करके फल ला पाए।।
माता दुरगा तँय कल्यानी।
आदि शक्ति हे मात भवानी।।
हिंगलाज जगदम्बे माता।
दुखिया के तँय भाग्य बिधाता।।
तोर चरन के रज मँय पावौं।
राख भभूती माथ लगावौं।।
हे मइया कंकालिन काली।
नइया पार लगाने वाली।।
जोत जँवारा सुघ्घर साजे।
ढोल नँगारा मांदर बाजे।।
नव दिन नव राती के मेला।
मंदिर जगमग रेलम पेला।।
रूप सजे हे सुन्दर मुखड़ा।
हरबे दाई मोरो दुखड़ा।।
मँय निरबल हँव सुनले दाई।
मोरो डाहर गुनले माई।।
लाली चुनरी फीता लाली।
शेर सवारी शेरो वाली।।
जय जय जय जगदम्बे रानी।
माई शारद आदि भवानी।।
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(63) गोपी विरह -
मोर संग-संग के संगवारी,
मँय राधा तँय बनवारी,पिया आ जाबे रे।
जमुना के तीर सुघ्घर,बँसरी बजा जाबे रे।।
सरग जइसे मधुबन के भुइँया,
कुहुँ-कुहुँ बोले कोयली चिरइया।
सुघ्घर नीक लागे,इहाँ के फुलवारी,
पिया आ जाबे रे.......जमुना के तीर......
हीरा-मोती मोला थोरको नइ भावै,
का करँव मोला कुछु नइ सुहावै।
जब ले छिंचे तँय रंग पिचकारी,
पिया आ जाबे रे.......जमुना के तीर......
बन-बन मँय तोला खोजत फिरँव,
नइ पावँव अउ अपटौं गिरँव।
थोरकुन बिनती ला सुनले मुरारी,
पिया आ जाबे रे......जमुना के तीर.....
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(64) पापी मनवा -
हे पापी मनवा कइसे तँय भुलाये हरी भजन ला।
मोर-मोर कहिके तँय मरगे,बाँधके गठरी धन ला।।
हे पापी मनवा................
लइका पन में खेलेस-कूदेस आइस तोर जवानी।
कतको तँय जतन करले रे ...हो....
नइ सुधारे चाल-चलन ला।।
हे पापी मनवा.............
कौड़ी-कौड़ी के खातिर रे मन ला तँय भरमाये।
भुल-भुलैया में भटके रे...हो.....
छोड़ के राम लखन ला।।
हे पापी मनवा..................
सत-संगत नइ जाने कुछु तँय निंदा चारी बखाने।
दू घड़ी तोला का होगे मूरख...हो..
समझाले अपन मन ला।।
हे पापी मनवा
आये बुढ़ापा कुछु नइ जाने कइसे दिन पहागे।
अब पछताके तँय का करबे...हो....
हे पापी मनवा..................
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(65) भजन -
तोर मन मा बसे हे भगवान,
खोजे ला तँय हा कहा जाबे गा ।
झाँक ले अपन हिरदय भीतरी,
हरि ला पाबे गा....$...।।
राम नाम के अमृत पी ले,
तर जाही तोर चोला।
राम के ईश्वर रामेश्वर अउ,
खुश हो जाही भोला।।
सत् संगती बने तँय करले,
झन भुलाबे गा.....$......।
खोजे ला तँय हा.........
राम-श्याम दूनों हे अवतारी,
सच्चा सुख मिल जाही।
धरम-करम के पाठ पढ़ाके,
सत् मारग देखाही।।
मिलजुल के मया प्रेम,
अउ तँय दया बरसाबे गा.....$....।
खोजे ला तँय हा...............
भाव-भगती से जप ले प्रानी,
मिथ्या ढोंग हटाके।
मनवा सधुवा कस तँय जी ले,
राम मा मन ला लगाके।।
नइ आवै जिनगी दुबारा,
अइसन कहाँ पाबे गा.....$.....।
खोजे ला तँय हा कहाँ जाबे गा...
झाँक ले अपन हिरदय भीतरी,
हरि ला पाबे गा.................
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(66) चोला तर जाही गा -
राम सुमिर ले श्याम सुमिर ले,
मुक्ति के मारग मिल जाही।
चोला तर जाही गा,चोला तर जाही।
राम भजन मा मन तँय लगा ले।
श्याम ला अपन तन अपना ले।
दूनों मा मन हा भुला जाही।
चोला तर जाही गा..........
भाव-भगती बिन नइ हे ठिकाना।
ये संसार काजर के समाना।
कतको बचाबे दाग लग जाही।
चोला तर जाही गा...........
हरि नाम कीर्तन गंगा बराबर।
डुबकी लगा ले तँय हा मन भर।
निरमल मन तोर हो जाही।
चोला तर जाही गा............
मानुष जनम नइ मिलही दुबारा।
हे मन मुरख राम दुलारा।
धरम के गगरी भर जाही।
चोला तर जाही गा........
मुक्ति के मारग मिल जाही।
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(67) शबरी दाई -
भाग जागे ओ दाई तोर,
भाग जागे ओ।
शबरी दाई तोर कुटिया ,
श्री राम आगे ओ।
राम जपन मा मन ला लगाये।
सियाराम के दर्शन पाये।।
तोर हिरदे के मंदिर मा,
हरि समागे ओ।
शबरी दाई.................
भाव भगती मा करे भरोसा।
बितगे उमर करे नइ कोसा।।
चुन-चुन फुलवा के,
हार साजे ओ।
शबरी दाई................
मीठ-मीठ जुठा बोइर खवाए।
राम - लखन के गुन तँय गाए।।
नवधा भगती के दाई,
दान पा गे ओ।
शबरी दाई...............
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(68) जय हो शबरी दाई -
जय हो शबरी दाई तोर,
राम-लखन गुन गाये।
रद्दा देखत-देखत तँय हा,
बन मा उमर बिताये।।
पर्ण कुटी मा रही के दाई,
जपे तँय राम के माला।
रात-दिन हरि नाम रटे,
राजा दशरथ के लाला।।
फूल पाती धूप चन्दन ले,
घर-अँगना सिरजाये।
जय हो शबरी दाई..........
सुत-उठ के उगती बेरा,
नहा के निरमल जल मा।
सुरुज देव के करे आरती,
राम निहारे पल-पल मा।।
कब आही मोर सियाराम, गलियन मा फूल बरसाये।
जय हो शबरी दाई..........
बरसे आँसू नयनन के,
श्री राम हा आये कुटिया।
मीठ बोइर तँय ओला खवाये,
सिया-राम ,लखन भैया।।
धन्य निषादराज हे दाई,
हरि चरन मा समाये।
जय हो शबरी दाई............
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(69) तुलसी दाई -
तुलसी दाई ओ,जग के माई ओ....ओ....
सुत-उठ के बड़े बिहनिया,तोरे दर्शन पावौं।
नहा-खोर जल लोटा लेके,चौरा तोर चढ़ावौं।।
धूप-दीप फूल माला लेके , निसदिन अँगना आई।
तुलसी दाई ओ,जग के माई ओ।
मँय अभागिन बने सुहागिन ,तोरे महिमा भारी।
मोरे अँगना खुड़-गाढ़ के ,करथस तँय रखवारी।।
सदा बिराजे हरियर-हरियर,घर हा मोर हरियाई।
तुलसी दाई ओ,जग के माई ओ।
वृन्दापति जालंधर अतियाचारी,दानव आइस।
मनखे मन के नाश करेबर, हाहाकार मचाइस।।
धरती के रक्षा के खातिर,हरि तोरे तीर आई।
तुलसी दाई ओ,जग के माई ओ।
सालिग राम बने हे बिष्णु तोरे छइहाँ रहिथे।
पति बरोबर सेवा मा लगे ,सुख अउ दुःख ला सहिथे।।
पतिवरता के मुरती तँय हा,जग तोरे गुन गाई।
तुलसी दाई ओ,जग के माई ओ।
संझा-बिहनिया दियना बारौं,आरती तोर उतारौं।
घर-घर सुख-शांति बगराबे , मैया पाँव पखारौं।।
बड़भागिन हँव मँय महतारी तोरे गुन ला गाई।
तुलसी दाई ओ,जग के माई ओ।
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(70) भजन-
कहाँ जाबे मथुरा-काशी,इहें तिरथ धाम हे।
माता पिता के सेवा ले, बढ़ के का काम हे।।
कहाँ जाबे मथुरा-काशी........
पिता राम माता सीता,जइसे भगवान हे।
दरस कर तँय निसदिन,चरनो मा एखर मान हे।।
माता-पिता के कारन,जग मा तोरे नाम हे।
कहाँ जाबे मथुरा-काशी.........
जेखर कोरा जनम धरे,उही धरती माता हे।
पिता के मयारू तँय हा,तोरे भाग्य बिधाता हे।।
कदम रखे दुनिया मा,देखे काखर दाम हे।
कहाँ जाबे मथुरा-काशी........
सेवा करबे, मेवा पाबे,बिधि के बिधान हे।
आगू के आगू,पाछू के पाछू, कहे सब सियान हे।।
गुन ले तँय जान ले,बात सरे आम हे।
कहाँ जाबे मथुरा-काशी.......
सारी उमर के कमाई,तोरे अंग लगाईस।
गंगा-जमुना धार बहे,आँखी हा भर आईस।।
देवी-देवता के जइसे,राम अउ बलराम हे।
कहाँ जाबे मथुरा-काशी.........
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(71) माता रानी -
ऊँचा-ऊँचा हे पहाड़,माता रानी के दरबार।
भक्तो देखौ रे, माँ की महिमा अपरम्पार।।
ऊँचा-ऊँचा हे.........
माँ तोर दर की शोभा ,होथे ओ निराली।
आथे ओ चघाथे फूल,बनके तोर सवाली।।
सब झोली भरके जाथे,मिलथे तोरे दुलार।
ऊँचा-ऊँचा हे..........
आये चैत अउ कुँवार,करे देवी के तियारी।
जगमग करथे दुवारी,जम्मो झूमे नर-नारी।
सेवा करे दिन-रात,पावै अन-धन के भंडार।
ऊँचा-ऊँचा हे........
पइया लागौं माता मोर,दया मया बरसइया।
निस-दिन सेवा ला गावौं, बमलाई मइया।।
करत हावै सबो मिल, सोला ओ सिंगार।
ऊँचा-ऊँचा हे.........
बघवा के सवारी करे ,बइठे आसन मा।
पंडा आरती उतारै,लाँगुर नाचै आँगन मा।
बोधन आरती गावै, दूनों हाथे ला पसार।
ऊँचा-ऊँचा हे..........
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(72) जय माता रानी -
तँय सुनले माता ओ,तँय सुनले माता ओ।
मँय दीन दुखियारी ओ,मँय आयेंव तोर दुवारी।
तँय सुनले माता ओ...........
तँय जननी लइका मँय तोरे,करबे किरपा महतारी।
मँय सेवक तँय दानी माता,बघवा हवय सवारी।।
तँय सुनले माता ओ..............
बड़े बड़े दानव ला मारे,धरती के पाप उतारी।
तोरे निसदिन सेवा गावौं,लइका नर अउ नारी।।
तँय सुनले माता ओ...............
जगदम्बा भवानी मइया,जग के तँय हितकारी।
पार लगादे मोरो मइया,सबके पालनहारी।
तँय सुनले माता ओ................
शीतला तँय लोहारा वाली,बोधन के महतारी।
मन इच्छा फल के देवइया,हरले संकट भारी।।
तँय सुनले माता ओ...............
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ (73) सुनौ राम के कहानी -
सुनौ सुनौ सुनौ भैया, राम के कहानी।
अवधपति राजा राम,सीता महारानी।।
सुनौ सुनौ सुनौ................
जनम धरे अवध मा,राम भारत भाई।
माता हे कौशिल्या,अउ कैकेयी दाई।।
सुघ्घर मिठास हे,तुलसी जी के बानी।
सुनौ सुनौ सुनौ................
छोटे रानी दशरथ के, सुमित्रा माँ ए ।
लखन शत्रुहन दूनों,सुग्घर बेटा आए।।
अवधपुरी सरग लागे,सरयू बहे पानी।
सुनौ सुनौ सुनौ................
राज धरम मर्यादा,दुनिया ला सिखाए।
भाई भाई नाता सैना,सब ला बताए।।
प्रेम भक्ति शबरी दाई, इँहे रे बखानी।
सुनौ सुनौ सुनौ...............
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(74) सकरायत -
पहली परब हे नवा बछर के,
मकर संक्रांति कहावत हे।
दक्षिणायन छोड़ के,
उत्तरायन मा आवत हे।।
का ले जाही का दे जाही,
कखरो समझ नइ आवय जी।
मानत हावय पुरखा हमर ,
संगम मा ओ नहावय जी।।
सुत उठ दर्शन सुरुज देव ला,
लोटा पानी चढ़ावत हे।
दक्षिणायन छोड़ के,
उत्तरायन मा आवत हे।
दान पून के मुहरत हावय,
शुभ दिन सकरायत होथे।
तीली गुड़ के लड़ुवा बाँटय,
पतंग उड़ाय मया बोथे।।
सुग्घर लाली सुरुज देव हा,
बिहना ले बगरावत हे।
दक्षिणायन छोड़ के,
उत्तरायन मा आवत हे।
लहर लहर लहरावत हावै,
चारो खुँट अँजोर हे।
मकर डहर ले कर्क डहर,
बगरत देखव सोर हे।।
मीठ मीठ लागे जाड़ा हा,
लोहड़ी सँग मुस्कावत हे।
दक्षिणायन छोड़ के,
उत्तरायन मा आवत हे।
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(75) भजन-मन लागे मेरो -
मन लागे मेरो हरि दर्शन मा।
महुँ माथ नवावँव चरनन मा।।
मन लागे मेरो........
जानत हँव मँय तोरे प्रभुताई।
करबे मोरो तहीं हा सहाई।।
मँय दीन हीन बसौ नयनन मा।
मन लागे मेरो.......
हे प्रभु आवव मन मा बिराजौ।
राम नाम धून बनके बाजौ।।
नित उठ मुँख देखौं दरपन मा।
मन लागे मेरो.......
संझा बिहनिया आरती पूजा।
मन मा मोरो नइ हे दूजा।।
साँस चलत हे तोरे साँसन मा।
मन लागे मेरो........
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(76) होरी खेलय नन्दलाल -
होरी हे.....
होरी खेलय रे नन्दलाल,
बिरीज मा धूम मचावय।
धूम मचावय रास रचावय,
गोपियन सँग हे गोपाल।
बिरीज मा धूम मचावय।
होरी खेलय.........
श्याम रंग रंगे ब्रज नर-नारी,
राधा के चुनरिया उड़े लाल।
बिरीज मा धूम मचावय।
होरी खेलय...........
जसोदा लाला ए रे गोपाला,
गर मा बैजन्ती मुकुट भाल।
बिरीज मा धूम मचावय।
होरी खेलय ............
कान्हा नाचय राधा नाचय,
छींचय अबीर अउ गुलाल।
बिरीज मा धूम मचावय।
होरी खेलय............
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(77) जिनगी के चार दिन -
जिनगी के चार दिन,हँस के बिताई ले।
नइहे भरोसा तन के,राम नाम गाई ले।।
जिनगी के चार दिन..........
कब का होही संगी,कोनों नइ जानत हे।
पग-पग काल घूमय,एहू ला जी मानत हे।।
कोन जाने संगी इहाँ,जग ले बिदाई ले।
जिनगी के चार दिन.........
आवौ जी सत् के,रसता पाँव धर लव।
अपन धरम के जी,गठरी ला भर लव।।
हरि के चरन मा,ए जीव ला चढ़ाई ले।
जिनगी के चार दिन.........
दुनिया तो मेला हे,आना अउ जाना हे।
दुःख मा सुख ले,जिनगी ला बिताना हे।।
जग मा आए तँय,नाम ला कमाई ले।
जिनगी के चार दिन........
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(78) राम जनम -
आवव रे .......गीत गावव रे.......
झूमव रे........प्रीत बाँटव रे........
आवव गीत गावव रे,
झूमव प्रीत बाँटव रे।
खुशियाँ के दिन आगे रे,
अवधपति राम आगे रे।
चइत नवराती के नवमी तिथि आए।
धरती अगास मा अँजोर बगराए।।
माता कौशिल्या के भाग जागे रे।
अवधपति राम आगे रे।
आवव रे..................
राम लखन दूनों के जोड़ी मनभावन।
अँगना मा खेलत हे दिखय सुहावन।।
राज महल मा संगी खुशी छागे रे।
अवधपति राम आगे रे।
आवव रे..................
मुच-मुच हाँसय मुस्कावत हे ललना।
दाई माई सबो झुलावत हे पलना।।
राजा दशरथ के हिरदे समागे रे।
अवधपति राम आगे रे।
आवव रे..................
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रचनाकार:-
बोधन राम निषादराज "विनायक"
व्याख्याता वाणिज्य विभाग
शास.उच्च.मा.विद्यालय सिंघनगढ़
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम (छ.ग.)
मोबाइल - 9893293764
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