Followers

Sunday, June 26, 2022

श्री राम महिमा) (प्रेरणा स्रोत-श्री राम चरित मानस)


 

(श्री राम महिमा)

(प्रेरणा स्रोत-श्री राम चरित मानस)

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

       -- दोहा--

आ के माता शारदा, गर मा बस जा मोर ।

गणपति मोला ज्ञान दे,बिनय करत हँव तोर।।


चौपाई--

राम नाम सुमिरन कर प्रानी । तर  जाही तोरे   जिनगानी।।

सुफल होत हे जीवन नइया । रामसिया ला सुमिरव भइया।।


काम सबो बिगड़े बन जाही । हनुमत जी के जे गुन गा ही।।

डुबती  नइया पार  करइया। जन-जन के वो कष्ट हरइया।।


बिपदा बेरा देख बुलाके। करथे सेवा सुधी भुलाके ।।

कतको  धरमी-पापी तारे। अपन चरन मा राम   उबारे ।।


तर जाही सब जन के चोला। राम सिया के मन हे भोला।।

हवै राम के  एक  कहानी । रामायन तुलसी  के  बानी ।।


जनम अवध मा चारों  भइया । देवय जम्मों  देव बधइया।।

राजा दशरथ हे बड़भागी । माता कौशिल्या अनुरागी।।


दोहा-

किलकारी अब होत हे,राम लखन अवतार।

भरत-शत्रुहन   संग  मा, उतरे  पालनहार।।


चौपाई-

भर  ममता   कैकेई   माता । भाग सुमित्रा के सुख दाता ।।

ऋषि-मुनि के वो काज सँवारे। दानव दल ला छिन मा मारे।।


पथरा होय अहिल्या नारी । जग के वो हा पालनहारी।।

रहे    गुरू  के   आज्ञाकारी । सीता मइया बन सँगवारी ।।


चउदह बछर राम बन जावै । दानव मन ला मार भगावै।।

पापी रावन छल  के आए। सीता मइया हर  ले जाए।।


बन अशोक मा  पहरादारी । सीता संग पिसाचिन नारी ।।

धरे रूप बहु भिन्न बनाइस। रावन सीता बहुत डराइस।।


थर-थर काँपे  रावन   भइया। तिनका हाथ उठाइस  मइया ।।

बानर कहिके रावन बोलिस । फरिया पूँछ तेल मा बोरिस ।।


दोहा-

आग लगादव पूँछ मा,रावण कहे बुलाय।

जर-बर देखै राम हा,सीता सोच भुलाय।।


चौपाई-

भर-भर-भर-भर लंका जरगे।छोड़ विभीषण सब घर बरगे ।।

उड़त-उड़त वो झटकुन आवै। सागर कूदय आग  बुझावै।।


आ के सीता ला समझावै। राम काज ला सबो बतावै।।

हनुमत महिमा रघुबर गाए। लंका   रावन  मार गिराए ।।


राज विभीषण लंका देके। आय अयोध्या  सीता लेके।।

हाँसत कुलकत हे नर-नारी। घर-घर  दियना अउ देवारी।।


सिंहासन मा राम बिराजे । तीन लोक मा डंका बाजे।।

उही समय जी बिजली गिरगे। सीता   ऊपर   बिपदा  परगे।।


फिर बन के   होगे   बैदेही । राम-लखन के परम सनेही।।

मुनि बाल्मिक देखौ कइसे। पोसिस-पालिस   बेटी जइसे।।

 

दोहा-

बेटी  जस  परिवार  मा, सीता  के  रहवास।

कुटिया एक बनाय के,राम भजन के आस।


चौपाई-

लव-कुश दू झन बेटा जाए। ननपन  ले   गुरुदेव  पढ़ाये।।

शिक्षा गुरु ले बढ़िया पाइस। राम कथा के सार सुनाइस।।


इक दुखिया नारी के पीरा। काबर छोड़ दिये रघुबीरा।।

सुकुमारी के महिमा  भारी। जनकसुता हे राज दुलारी।।


बन में भटकत समय पहाथे। ओखर भाग कहाँ सुख आथे।।

राम अवध के   राजा   भइया। ले गिस सीता  धरती   मइया।।


लव-कुश दूनों   राम पियारे। माता अब तो लोक सिधारे।।

इक-इक करके सरयू मइया। पाँव  पखारे पार  लगइया।।


चलदिस अपन लोक हे रामा। साथ देव जम्मों  बलधामा ।।

अतके मरम  निषाद बतावै। मोरो   पुरखा  पार   लगावै।।


                  -- दोहा--


राम लखन ला मान ले,तन अउ प्रान समान।

जप ले माला राम के, मनुवा साँझ-बिहान।।

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

रचनाकार--

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,कबीरधाम(छ.ग.)

2 comments: