*बसंत ऋतु आधारित रचना -*
*रोला छंद -*
देखौ छाय बहार, आय हे गावत गाना।
मन होगे खुश आज,देख के परसा पाना।।
फूले परसा लाल, कोयली बोलय बानी।
गुरतुर लागे बोल,करौं का मँय अब रानी।।
*त्रिभंगी छंद -*
परसा हा फुलगे,सेम्हर झुलगे,पवन बसंती,आय हवै।
आमा मउरागे,मन हरियागे,सरसो पिँवरी,छाय हवै।।
भुइयाँ बड़ सुग्घर,लागै उज्जर,खींचत मन के,डोर हवै।
करिया कस बादर,आँखी काजर,बाँध मया के,लोर हवै।।
ऋतु बड़ मनभावन,सुघर सुहावन,मन हर्षित चहुँ,ओर लगै।
पाना हरियावत,खार लुभावत,सबो डोंगरी,छोर लगै।।
परसा के लाली,गेहूँ बाली,अरसी सरसो,फूल फभे।
अमुआ के डारा,लहसे झारा,मउर आम के,झूल फभे।।
कोयल के बोली,हँसी ठिठोली,गुरतुर सुग्घर,बास करै।
भँवरा मँडरावय,तितली गावय,फूल-फूल मा,रास करै।।
नदिया के पानी,कहै कहानी,कल-कल-कल-कल,धार बहै।
भुइयाँ हरियाली,मन खुशहाली,मया पिरित के,लार बहै।।
*अमृतध्वनि छंद -*
हरियाली चारों डहर, आथे माघ बसंत।
सुघर मनाथे पंचमी, होय जूड़ के अंत।।
होय जूड़ के , अंत तहाँ ले, घाम जनाथे।
मातु शारदा,जनम परब ला,सबो मनाथे।।
लइका होली, डाँड़ गड़ा के, बड़ खुशहाली।
दिखथे भुइयाँ,सरग बरोबर,औ हरियाली।।
*छप्पय छंद -*
देखौ आमा डार, लोर गे हरियर पाना।
झूम-झूम के देख, कोयली गावय गाना।।
आमा मउरे भाय, सबो के मन ललचावै।
देखत जिवरा मोर,खुशी मा नाचय गावै।।
लदलद ले हे मउर हा,भँवरा झूलय डार मा।
आय बसंती देख तो,नाचत हावय खार मा।
*कुण्डलिया छंद -*
मन हा नाचय झूम के,बढ़िया चलय बयार।
डारा लहसे जात हे,देखौ छाय बहार।।
देखव छाय बहार, आय हे गावत गाना।
मन होगे खुश आज,देख के परसा पाना।।
मैना मारय जोर, कोयली कुहु कुहु बाचय।
महर महर ममहाय,झूम के मन हा नाचय।।
छंदकार:-
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
No comments:
Post a Comment