गीतिका छन्द
2122 2122 2122 212
आज कल चारो डहर छाये नशा भरमार जी।
हर गली चौबार मा सजगे नशा बाजार जी।
तेखरे सेती इहाँ अब होत अत्याचार हे।
देखथे कोंदा बरोबर राज के सरकार हे।।(1)
बड़ कलह लाथे नशा हा देख लौ परिवार मा।
बोरथे जिनगी सबो के लेगथे अँधियार मा।
ये नशा हर आदमी के तन करय बीमार जी।
ठान लेवव छोड़ देवव हे नशा बेकार जी।।(2)
लूट लेथे ये नशा जम्मो खुशी भंडार ला।
खेत डोली लेगथे अउ लेगथे घर-द्वार ला ।।
राख देथे ये बदल के आदमी व्यवहार जी।
आदमी ला ये बनाथे खोखला लाचार जी।।(3)
जे नशा मा चूर हे वो आदमी खूंखार हे।
जे नशा के लत लगाये आज बंठाधार हे।
मान कुछ पावे नहीं जी देख ले संसार मा।
नाँव आथे फेर ओखर देश के गद्दार मा।।(4)
द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"
कवर्धा छत्तीसगढ़
बहुत बहुत धन्यवाद गुरूदेव
ReplyDeleteजबरदस्त सर जी
ReplyDelete