गीतिका छंद:-
मनखे के ईमान-
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आ अपन अब देश के जी,डोर थाम्हौ हाथ मा।
अब ठिकाना नइ दिखत हे,जोर कंधा साथ मा।।
लूट माते देख भइया,वो अपन झोली भरै।
आज मनखे वोट खातिर,जान के बोली करै।।
डोल थे ईमान अब तो,का भरोसा आस के।
आन कहिथे आन करथे,नइ हवे बिसवास के।।
राज बर हे जंग अब तो,कोन देखय आज ला।
नइ इहाँ अब लोक सैना,जौन देखय काज ला।।
आदमी मन बीक जाथे,देख पइसा पाय के।
बल गरजथे जेब भरथे,मंद मा बउराय के।।
लोग लइका नइ चिन्है गा,घर दुवारी आत हे।
का बतावौं भेद इँखरो,देश अब बेचात हे।।
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बोधन राम निषादराज"विनायक"
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