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Friday, January 14, 2022

मकर संक्रांति (सकरायत)* (आल्हा छंद)


 *मकर संक्रांति (सकरायत)*

(आल्हा छंद)

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पौष मास मा सुरुज देव हा,करथे सुग्घर मकर प्रवेश।

तभे मनाथे सकरायत ला,पूजन करथे लोग दिनेश।।


उठके बिहना नहाखोर के,लाली फुलवा धर के हाथ।

लोटा मा पानी ला देथे,चन्दन अक्षत ले के साथ।।


नहाखोर के दान पुण्य ले,होथे मनखे के कल्याण।

परब रथे सुग्घर बेरा के, शुद्ध होत हे सबके प्राण।।


भगवत गीता पाठ करे जे,अउ कम्बल तिल घी के दान।

अइसन करथे जउन भक्त मन,खुश हो जाथे श्री भगवान।।


ये दिन खिचड़ी खास रथे जी,बने बनाथे मनखे लोग।

सुरुज देव के पूजा करके, सबो लगाथे सुग्घर  भोग।।


सुरुज देव शनि पुत्र अपन ले,मिलथे पा के सुग्घर पर्व।

शुभ होथे सबके कारज हा,मन मा होथे भारी गर्व।।


कहूँ कुंडली सुरुज देव हे,या होवे शनि जी के वास।

ये दिन पूजन हवन कर्म से,मिट जाथे मिलथे फल खास।।


सुरुज उत्तरायण सकरायत,कहिथे एला  वेद पुराण।

उपासना जे मनखे करथे,ओखर हो जाथे कल्याण।।


नवा फसल के बेरा होथे,खुशी मनाथे सबो किसान।

तिल गुड़ के सब बाँटे लड्डू,लइका चाहे होय सियान।।


परम्परा ये हमर देश के,लइका सबो पतंग  उड़ाय।

गाँव-गाँव अउ शहर-शहर मा,जुरमिल के सब खुशी मनाय।।

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छंदकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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मकर संक्रांति परब मा मोर रचना


गीतिका छंद


जान लव संक्राति महिमा ,आव सब झन जी सुनव।

ये अबड़ पबरित परब हे, ध्यान से मन मा गुनव।।

हे जुड़े कतको कहानी, धर्म अउ विज्ञान हे।

चक्र ग्रह नक्षत्र के भी, तर्क अनुसंधान हे।।


जब भगीरथ लाय गंगा,  वंश के उद्धार बर।

मुक्ति के रद्दा बनाये , गोत्र कुल परिवार बर।

भाग्य बड़ राजा सगर के, वो महासागर बने।

घर जिहाँ गंगा बनाये, भक्ति श्रद्धा से सने।।


उत्तरायण के डहर जब ,जाय सूरुज देवता।

हे कथा शनिदेव के भी, दे धरम सुख नेवता।।

शुभ मकर संक्रांति के दिन, भीष्म त्यागे प्राण ला।

मातु गंगा अउ सुरुज के, जग करय गुणगान ला।



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा




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