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Sunday, January 30, 2022

हरिगीतिका छंद* 2212 2212, 2212 2212 *हमर गँवई गाँव*

 *हरिगीतिका छंद*

2212 2212, 2212 2212

*हमर गँवई गाँव*


सुख हा बरसथे गाँव मा,सुग्घर पवन चलथे इहाँ।

संझा दुवारी घर सबो, दीया बने जलथे इहाँ।।

अँगना लिपाथे गाय के,गोबर लगै पबरित इहाँ।

चुक-चुक गली अउ खोर हा,बोली बचन अमरित इहाँ।।


करथे सियानी ला बने,बइठे बबा ले हाथ मा।

करथे सबो माई पिला,जेवन घलो जी साथ मा।।

सब रीत नाता मानथे,मिलके परोसी गाँव मा।

सुख दुःख ला सब बाँटथे,बइठे इहाँ बर छाँव मा।।


गगरी बहुरिया मन धरे,मिलके हँसत गाथे सबो।।

नरवा घठौंदा घाट मा,पनिया भरन जाथे सबो।।

मधुबन सहीं बखरी रथे,हरियर इहाँ सब खार जी।

खेती किसानी संग मा,करथे बने व्यवहार जी।।

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छंदकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

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