गीत(नवा बछर)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
नवा बछर मा नवा आस धर,नवा करे बर पड़ही।
द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।
साधे खातिर अटके बूता,डॅटके महिनत चाही।
भूलचूक ला ध्यान देय मा,डहर सुगम हो जाही।
चलना पड़ही नवा पाथ मा,सबके अँगरी धरके।
उजियारा फैलाना पड़ही, अँधियारी मा बरके।
गाँजेल पड़ही सबला मिलके,दया मया के खरही।
द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।
जुन्ना पाना डारा झर्रा, पेड़ नवा हो जाथे।
सुरुज नरायण घलो रोज के,नवा किरण बगराथे।
रतिहा चाँद सितारा मिलजुल,रिगबिग रिगबिग बरथे।
पुरवा पानी अपन काम ला,सुतत उठत नित करथे।
मानुष मन घलो अपन मुठा म,सत सुम्मत ला धरही।
द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।
गुरतुर बोली जियरा जोड़े,काँटे चाकू छूरी।
घर बन सँग मा देश राज के,संसो हवै जरूरी।
जीव जानवर पेड़ पकृति सँग,बँचही पुरवा पानी।
पर्यावरण ह बढ़िया रइही, तभे रही जिनगानी।
दया मया मा काया रचही,गुण अउ ज्ञान बगरही।
द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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