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Sunday, January 16, 2022

हरिगीतिका छंद - गरीबी*

 *हरिगीतिका छंद - गरीबी*

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जाही गरीबी देश ले,कइसे सखा कुछ हे पता।

बाढ़त गजब संख्या इहाँ,मनखे करै अब का बता।।

सरकार चाउँर देत हे, सुन एक रुपया दाम मा।।

फूँकत हवै जी नोट ला, बनके शराबी नाम मा।।


करथे अलाली घर बइठ,बिन काम के झगरा करै।

दाई ददा के चीज ला, सब बेंच पी खा के मरै।।

बनके  गरीबी  हाथ मा, अपने गँवाये होश ला।

मन काम मा नइ होय जी,ठंडा करै सब जोश ला।।


थक हारथे कर काम ला,दाई ददा मन गाँव मा।

जाँगर पेरावत खेत मा,सुरतात बम्हरी छाँव मा।।

दिन रात महिनत सब करै,रोटी मिलै दू रोज के।

जावै गरीबी नइ सखा,बूता करै सब खोज के।।

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छंदकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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