(1)
झन भूल के बरबाद कर,पानी हवै अमरित सहीं
सुन्ना रही दुनिया सरी, पानी बिना जिनगी नहीं ।
बिन झाड़ जंगल के कहाँ, बादर घुमड़ही तैं बता
सूरुज सदा तपते रही, बरसात होही लापता।
(2)
झन काट जंगल झाड़ ला, तज आज के तैं फायदा
देही प्रकृति हर डाँड़ जी, तोड़े कहूँ जे कायदा।
जब बाँचही पीढ़ी नहीं, पुरखा बलाही कोन जी
कतको इहाँ तैं जोर ले, नइ काम आही सोन जी।
(3)
रहि रहि इशारा हे करत, भूकम्प अउ अंकाल मन
हल्का समझ के बात ला, तैं काल ऊपर टाल झन ।
पानी बचा पौधा लगा, खुरपी कुदारी साज ले
पीढ़ी बचाये के जतन, तैं कर शुरू बस आज ले ।।
रचनाकार - अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग, छत्तीसगढ़
झन भूल के बरबाद कर,पानी हवै अमरित सहीं
सुन्ना रही दुनिया सरी, पानी बिना जिनगी नहीं ।
बिन झाड़ जंगल के कहाँ, बादर घुमड़ही तैं बता
सूरुज सदा तपते रही, बरसात होही लापता।
(2)
झन काट जंगल झाड़ ला, तज आज के तैं फायदा
देही प्रकृति हर डाँड़ जी, तोड़े कहूँ जे कायदा।
जब बाँचही पीढ़ी नहीं, पुरखा बलाही कोन जी
कतको इहाँ तैं जोर ले, नइ काम आही सोन जी।
(3)
रहि रहि इशारा हे करत, भूकम्प अउ अंकाल मन
हल्का समझ के बात ला, तैं काल ऊपर टाल झन ।
पानी बचा पौधा लगा, खुरपी कुदारी साज ले
पीढ़ी बचाये के जतन, तैं कर शुरू बस आज ले ।।
रचनाकार - अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग, छत्तीसगढ़
जय जोहार गुरुजी बढ़िया भाव वाला छन्द
ReplyDeleteवाह गुरुदेव बहुत सुन्दर हरिगीतिका छंद
ReplyDeleteपानी के महत्तम बतावत पर्यावरण बचाय के सुग्घर मुहिम गुरुदेव हरिगीतिका छंद के माध्यम ले
ReplyDeleteपानी के महत्तम बतावत पर्यावरण बचाय के सुग्घर मुहिम गुरुदेव हरिगीतिका छंद के माध्यम ले
ReplyDeleteपानी के महत्ता के साथ पेड़ अउ पर्यावरण के संरक्षण बर सुघ्घर रचना
ReplyDeleteपानी के महत्ता के साथ पेड़ अउ पर्यावरण के संरक्षण बर सुघ्घर रचना
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ReplyDeleteअब देश हो सबले बडे, नभ देश मा ध्वज ला धरौ
ReplyDeleteपर देश मा रह लव भले, निज देश के सुरता करौ।
नव यान ले नव गान ले, नव ग्यान ले कोठी भरौ
परि आवरण अनुदान ले, सुन देश के दुख ला हरौ।
बहुत सुघ्घर गुरुदेव..
ReplyDeleteबहुते सुघ्घर सृजन भाव हे गुरुदेव।
ReplyDeleteसादर नमन
वाह वाह लाजवाब हरिगीतिका छंद हे गुरुदेव। सादर प्रणाम।
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर हरिगीतिका छंद लिखे हव गुरुदेव सादर पायलगी।
ReplyDeleteपानी जंगल ला बचा, बचही तोर परान।
ReplyDeleteगुरू बचन बिरथा नहीं, इही आज के ग्यान।।
पानी जंगल ला बचा, बचही तोर परान।
ReplyDeleteगुरू बचन बिरथा नहीं, इही आज के ग्यान।।
बड़ सुघ्घर रचना गुरूदेव... सुग्घर संदेश
ReplyDelete🙏🙏🙏
सही बात लिखेव गुरुदेव । पानी ला बचाना बहुत जरूरी हे ।
ReplyDeleteसुंदर रचना बहुत बहुत बधाई
वाह्ह्ह् वाह्ह्ह् गुरुदेव।लाजवाब सृजन।सादर बधाई
ReplyDeleteवाह्ह्ह् वाह्ह्ह् गुरुदेव।लाजवाब सृजन।सादर बधाई
ReplyDeleteअनुपम अउ अनुकरणीय हरिगीतिका छंद के सृजन करे हव,गुरुदेव। सादर नमन।
ReplyDeleteअद्वितीय गुरुदेव
ReplyDeleteपानी बिन झाडी कहाँ,बिन झाडी पानी कहाँ।
ReplyDeleteसुग्घर छंद गुरुदेव।