मन के पीरा
नाँव हवय जगदीश मोर जी, खोलत हावँव राज।
देख जगत के पीरा ला मँय, बोलत हावँव आज।।1।।
घर के भीतर कुकुर बँधाये, बाहिर घूमे गाय।
का होही ये देश-राज के, कुछु समझ नहीं आय।।2।।
रोवत बइठे दाई बाबू, दुख ला कोन मिटाय।
धरके बाई होटल जावय, आनी-बानी खाय।।3।।
कठल-कठल के रोवय लइका, तभो तरस नइ आय।
भरके बोतल दूध पियाये, घर मा रोग बलाय।।4।।
भाई होगे बैरी देखव, मुँह देखन नइ भाय।
बनगे हितवा आज परोसी, मन के बात बताय।।5।।
मंदिर मा लगगे हे तारा, दूध गली बोहाय।
दारू खातिर भीड़ लगे हे, पीके बड़ इतराय।।6।।
संस्कृति हर गा कहाँ नँदागे, देख आज के काम।
कपड़ा-लत्ता छोटे होगे, नख होगे हे लाम।।7।।
राम-राम बोले मा काबर, लगथे अड़बड़ लाज।
हाय-हलो मा सबो भुलाये, बिगड़त हवय समाज।।8।।
रचनाकार - श्री जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा)
छत्तीसगढ़
नाँव हवय जगदीश मोर जी, खोलत हावँव राज।
देख जगत के पीरा ला मँय, बोलत हावँव आज।।1।।
घर के भीतर कुकुर बँधाये, बाहिर घूमे गाय।
का होही ये देश-राज के, कुछु समझ नहीं आय।।2।।
रोवत बइठे दाई बाबू, दुख ला कोन मिटाय।
धरके बाई होटल जावय, आनी-बानी खाय।।3।।
कठल-कठल के रोवय लइका, तभो तरस नइ आय।
भरके बोतल दूध पियाये, घर मा रोग बलाय।।4।।
भाई होगे बैरी देखव, मुँह देखन नइ भाय।
बनगे हितवा आज परोसी, मन के बात बताय।।5।।
मंदिर मा लगगे हे तारा, दूध गली बोहाय।
दारू खातिर भीड़ लगे हे, पीके बड़ इतराय।।6।।
संस्कृति हर गा कहाँ नँदागे, देख आज के काम।
कपड़ा-लत्ता छोटे होगे, नख होगे हे लाम।।7।।
राम-राम बोले मा काबर, लगथे अड़बड़ लाज।
हाय-हलो मा सबो भुलाये, बिगड़त हवय समाज।।8।।
रचनाकार - श्री जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा)
छत्तीसगढ़
बहुत बढ़िया रचना बधाई हो साहू जी
ReplyDeleteधन्यवाद माटी जी
Deleteबहुत बढ़िया सृजन हे भाई
ReplyDeleteसुग्घर सरसी छंद,जगदीश भाई।बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteअइसने मया मिलत रहय भइया
Deleteसुग्घर भाई ....अइसने लिखत रहव
ReplyDeleteआपके साथ अइसने मिलत रहय
Deleteसुग्घर भाई ....अइसने लिखत रहव
ReplyDeleteछत्तीसगढिया सबले - बढिया, हीरा बाँधय गाय
ReplyDeleteगोबर के खातू बन जाही, गोरस बिकट मिठाय।
दीदी के आशीष ले, मिलय गजब आनंद।
Deleteकलम चलय सरलग सदा, लिखथँव सरसी छंद।।
दीदी के आशीष ले, मिलय गजब आनंद।
Deleteकलम चलय सरलग सदा, लिखथँव सरसी छंद।।
बहुत बढ़िया सरसी सर जी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सरसी सर जी
ReplyDeleteधन्यवाद भाई जी
Deleteवाह वाह सुग्घर सरसी छंद।
ReplyDeleteधन्यवाद गुरूजी
Deleteवाह्ह्ह् वाह्ह्ह् बहुत सुग्घर।सादर बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद ज्ञानु भईया
Deleteवाह्ह्ह् वाह्ह्ह् बहुत सुग्घर।सादर बधाई
ReplyDeleteवाह वाह बहुत बढ़िया भैया
ReplyDeleteधन्यवाद भइया जी
Deleteजुग के जान प्रभाव इहाँ जी, मति तो गय हेराय।
ReplyDeleteगलत आचरण मा बूड़े हें, कोन बात समझाय।।
बहुत बढ़िया भाईईईई... सादर बधाई
प्रणाम गुरुदेव जी
Deleteवाह! जगदीश भाई
ReplyDeleteजतका तारीफ करे जाय कम हे।
सुग्घर रचना संजोय बर गाड़ा गाड़ा बधाई
धन्यवाद मथुरा भाई
Deleteधन्यवाद मथुरा भाई
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