(०१)
गड्ढा खने जे धरे ईरखा द्वेष बेरा कुबेरा खुदे गीर जाही।
धोखाधड़ी काखरो ले करैया ह आही समे घोर धोखा ल पाही।
बूड़े हवै जौन निंदा म प्रानी इँहे दूहरी मार बाँटा म आही।
जे छींचही बीज जैसे धरा मा पके बाद बीजा उही काट खाही।
(०२)
पापी कुचाली करे दृष्टि छोटे त जीते म आँखी इँहे फूट जाही।
दंभी घमंडी उड़े पाँख पा के समे एक दिना धरा मा गिराही।
होही इँहे न्याय के संग न्याये त अन्याय के दंड होही गवाही।
पौधा लगा बंबरी के इँहा छाँय आमा सरीखा कहाँ कोन पाही।
(०३)
सोंचे बिचारे बिना संगवारी धरे टंगिया दूसरो ला धराये।
काटे हरा पेंड़ होले बढ़ाये पुराना भये रीत आजो निभाये।
टोरे उही पेंड़ के जीव साँसा ल जे पेंड़ हा तोर संसा चलाये।
माते परे मंद पी के तहाँ कोन का हे कहाँ हे कहाँ सोरियाये।
(०४)
रेंगौ चुनौ रीत रद्दा बने जेन रद्दा सबो के बनौका बनावै।
सोचौ बिचारौ तभे पाँव धारौ करे आज के काल के रीत आवै।
चाहौ त अच्छा हवै एक रद्दा जँचै ता करौ नीव आजे धरावै।
कूड़ा उठा रोज होले म डारौ ग होले बढ़ै औ गली खर्हरावै।
(०५)
पानी बिना जिन्दगानी अधूरा ग पानी बिना आज सुक्खा किसानी।
का के भरोसा तनै गोठियावै ग कामा चलै जोर बोली सियानी।
मेला मड़ाई न छट्ठी न शादी कहाँ नेवतावै कहूँ लागमानी।जुच्छा परे हे बिना अन्न कोठी करे काय ज्ञानी बिना हाथ पानी।
रचनाकार- श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर,कवर्धा
छत्तीसगढ़
अब्बड़ सुग्घर शिक्छा अउ सन्देश ले भरे सर्वगामि सुवैया छंद भइया बधाई हो
ReplyDeleteसादर धन्यवाद मोहन भाई।
Deleteबहुत बढिया रचना, सुखदेव भाई। बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteसराहना बर सादर आभार दीदी।
Deleteवाह वाह भैया जी ।लाजवाब सर्वगामी सवैया के सृजन करे हव। बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteसादर आभार मोहन सर जी।
Deleteबहुत बढ़िया सवैया सुखदेव भाई
ReplyDeleteसादर आभार "अमृताँशु" सर।
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteसादर धन्यवाद वर्मा जी।
Deleteसुंदर सर्वगामी सवैया भईया जी
ReplyDeleteसादर धन्यवाद जोगी जी।
Deleteवाहःहः सुखदेव भाई
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर सवैया
सादर आभार दीदी।
Deleteबहुत बढ़िया भाई जी
ReplyDeleteसादर आभार सर।
Deleteउत्कृष्ट सवैया सर।सादर बधाई
ReplyDeleteसादर आभार सर।धन्यवाद।
Deleteउत्कृष्ट सवैया सर।सादर बधाई
ReplyDeleteबड़ कठिन सवैया जी...
ReplyDeleteअच्छा लिखे हव भाईईईई बधाई आपला...