रितु बसंत -
गावय गीत बसंत,हवा मा नाचे डारा।
फगुवा राग सुनाय,मगन हे पारा पारा।
करे पपीहा शोर,कोयली कुहकी पारे।
रितु बसंत जब आय,मया के दीया बारे।
बखरी बारी ओढ़,खड़े हे लुगरा हरियर।
नँदिया नरवा नीर,दिखत हे फरियर फरियर।
बिहना जाड़ जनाय,बियापे मँझनी बेरा।
अमली बोइर जाम,तीर लइका के डेरा।
रंग रंग के साग,कढ़ाई मा ममहाये।
दार भात हे तात,बने उपरहा खवाये।
धनिया मिरी पताल,नून बासी मिल जाये।
खावय अँगरी चाँट,जिया जाँ घलो अघाये।
हाँस हाँस के खेल,लोग लइका सब खेले।
मटर चिरौंजी चार,टोर के मनभर झेले।
आमा बिरवा डार, बाँध के झूला झूलय।
किसम किसम के फूल,बाग बारी मा फूलय।
धनिया चना मसूर,देख के मन भर जावय।
खन खन करे रहेर,हवा सँग नाचय गावय।
हवे उतेरा खार, लाखड़ी सरसो अरसी।
घाम घरी बर देख,बने कुम्हरा घर करसी।
मुसुर मुसुर मुस्काय,लाल परसा हा फुलके।
सेम्हर हाथ हलाय,मगन हो मन भर झुलके।
पीयँर पीयँर पात,झरे पुरवा जब आये।
तन मन बड़ हर्षाय,गीत पंछी जब गाये।
रचनाकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा) छत्तीसगढ़
गावय गीत बसंत,हवा मा नाचे डारा।
फगुवा राग सुनाय,मगन हे पारा पारा।
करे पपीहा शोर,कोयली कुहकी पारे।
रितु बसंत जब आय,मया के दीया बारे।
बखरी बारी ओढ़,खड़े हे लुगरा हरियर।
नँदिया नरवा नीर,दिखत हे फरियर फरियर।
बिहना जाड़ जनाय,बियापे मँझनी बेरा।
अमली बोइर जाम,तीर लइका के डेरा।
रंग रंग के साग,कढ़ाई मा ममहाये।
दार भात हे तात,बने उपरहा खवाये।
धनिया मिरी पताल,नून बासी मिल जाये।
खावय अँगरी चाँट,जिया जाँ घलो अघाये।
हाँस हाँस के खेल,लोग लइका सब खेले।
मटर चिरौंजी चार,टोर के मनभर झेले।
आमा बिरवा डार, बाँध के झूला झूलय।
किसम किसम के फूल,बाग बारी मा फूलय।
धनिया चना मसूर,देख के मन भर जावय।
खन खन करे रहेर,हवा सँग नाचय गावय।
हवे उतेरा खार, लाखड़ी सरसो अरसी।
घाम घरी बर देख,बने कुम्हरा घर करसी।
मुसुर मुसुर मुस्काय,लाल परसा हा फुलके।
सेम्हर हाथ हलाय,मगन हो मन भर झुलके।
पीयँर पीयँर पात,झरे पुरवा जब आये।
तन मन बड़ हर्षाय,गीत पंछी जब गाये।
रचनाकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा) छत्तीसगढ़
रोला सुग्हर छंद, गोप - गोपी मन गाथें
ReplyDeleteआथे बड आनंद, लेवना - मन भर खाथें।
मुरली बाजय रोज, जमो झन सकला जाथें
नवा राग के खोज, सबो झन खुशी मनाथें।
सादर पायलागी दीदी,,
Deleteबहुत बढ़िया रोला भईया जी
ReplyDeleteधन्यवाद भैया
Deleteबहुत बढ़िया रोला भईया जी
ReplyDeleteधन्यवाद भैया जी
Deleteवाहःहः भाई जितेंन्द्र सुघ्घर रोला छंद
ReplyDeleteसादर नमन दीदी
Deleteवाह वाह अति सुंदर।जितेंद्र जी के मनभावन रोला।हार्दिकबधाई।
ReplyDeleteपायलागी गुरुदेव
Deleteसुघ्घर रोला छंद लिखे हव जितेन्द्र भाई अइसे लागत हावय बसंत हवा मा डारा पाना नाचत हावय बहुत बढ़ियाँ
ReplyDeleteसादर नमन दीदी
Deleteआप सबो के पँउरी म बारम्बार प्रणाम
ReplyDeleteशानदार ऋतु वर्णन जितेंद्र भाई लाजवाब
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteशानदार ऋतु वर्णन जितेंद्र भाई लाजवाब
ReplyDeleteबहुत बढ़िया जितेंद्र भाई
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी
Deleteबहुत सुग्घर रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteसधन्यवाद
Deleteबहुत सुग्घर,रोला छंद हे,भैया जी।बधाई अउ शुभकामनाएं।
ReplyDeleteधन्यवाद भैया
Deleteशानदार सृजन सर।सादर बधाई
ReplyDeleteशानदार सृजन सर।सादर बधाई
ReplyDeleteसधन्यवाद सर जी
Deleteलाजवाब सृजन सर जी।
ReplyDeleteसधन्यवाद सर जी
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