बइठव बिरवा छाँव मा,पावव सुग्घर ज्ञान।
बाँटत हे गुरुदेव हा,आवव सबो सुजान।।1।।
आवव सबो सुजान मन,सिखलव रचना छंद।
बिना ज्ञान के देख लव,छंद लिखइ हे बंद।।2।।
छंद लिखइ हे बंद जे,तेला चला उठाव।
साधव बढ़िया छंद ला,साहित पोठ बनाव।।3।।
साहित पोठ बनाय बर,करबो सबझन काम।
भाखा होही पोठ जी,हमरो होही नाम।।4।।
हमरो होही नाम जब,देबो मोती सार।
कचरा मन सब जर जही,सार रहे भरमार।।5।।
सार रहे भरमार तब,पढ़ही लोगन जान।
नियम बद्ध अउ ब्याकरण,कसे रही सब मान।।6।।
कसे रही सब मान ले,बनही ओ इतिहास।
चीर समे लोगन पढ़े,हमला हाबय आस।।7।।
हमला हाबय आस जी,रहिथे सच गा बात।
कचरा मन सब जर जथे,लबरा खाथे लात।।8।।
लबरा खाथे लात ला,नइ पावय ओ मान।
सच्चा साहित सिख सखा,सोना येला जान।।9।।
सोना येला जान ले,जरे आँच नइ आय।
अंतकाल तक ये रहे,सब के मन ला भाय।।10।।
रचना कार--श्री दिलीप कुमार वर्मा
बलौदा बाज़ार,छत्तीसगढ़
बाँटत हे गुरुदेव हा,आवव सबो सुजान।।1।।
आवव सबो सुजान मन,सिखलव रचना छंद।
बिना ज्ञान के देख लव,छंद लिखइ हे बंद।।2।।
छंद लिखइ हे बंद जे,तेला चला उठाव।
साधव बढ़िया छंद ला,साहित पोठ बनाव।।3।।
साहित पोठ बनाय बर,करबो सबझन काम।
भाखा होही पोठ जी,हमरो होही नाम।।4।।
हमरो होही नाम जब,देबो मोती सार।
कचरा मन सब जर जही,सार रहे भरमार।।5।।
सार रहे भरमार तब,पढ़ही लोगन जान।
नियम बद्ध अउ ब्याकरण,कसे रही सब मान।।6।।
कसे रही सब मान ले,बनही ओ इतिहास।
चीर समे लोगन पढ़े,हमला हाबय आस।।7।।
हमला हाबय आस जी,रहिथे सच गा बात।
कचरा मन सब जर जथे,लबरा खाथे लात।।8।।
लबरा खाथे लात ला,नइ पावय ओ मान।
सच्चा साहित सिख सखा,सोना येला जान।।9।।
सोना येला जान ले,जरे आँच नइ आय।
अंतकाल तक ये रहे,सब के मन ला भाय।।10।।
रचना कार--श्री दिलीप कुमार वर्मा
बलौदा बाज़ार,छत्तीसगढ़
वाह्ह वाह्ह सर आनंद आगे।
ReplyDeleteआभार सरजी।
Deleteबहुत बढ़िया भईया जी बधाई हो
ReplyDeleteबहुत बढ़िया भईया जी बधाई हो
ReplyDeleteधन्यवाद भाई जी।
Deleteशानदार सिंहावलोकनी दोहा सर जी बधाई
ReplyDeleteशानदार सिंहावलोकनी दोहा सर जी बधाई
ReplyDeleteआभार साहूजी।
Deleteगजब के प्रस्तुति भाई के...
ReplyDeleteसादर अनेकानेक बधाई भाई ल
आभार गुप्ता भइया।
Deleteवाह वाह शानदार सिहावलोकनी दोहा सिरजे हव दिलीप वर्मा जी।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteधन्यवाद बादल भइया।
Deleteदिलीप भाई जी
ReplyDeleteशानदार सिंहवलोकनी दोहा
बहुत बहुत बधाई।उत्कृष्ट सृजन हेतु।
दिलीप भाई जी
ReplyDeleteशानदार सिंहवलोकनी दोहा
बहुत बहुत बधाई।उत्कृष्ट सृजन हेतु।
मात्रा मा बड - दोष हे, भाई बने - सुधार
ReplyDeleteसीख शब्द ला जान ले, जान शब्द के मार।
अनुपम रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteअनुपम रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर छंद रचना गुरुदेव जी,बधाई हो
ReplyDeleteबधाई हो दिलीप भाई सुघ्घर सिहांवली दोहा लिखे हव
ReplyDeleteबहुत सुग्घर अउ लाजवाब सिहांवलोकनी दोहा छंद हे,गुरुदेव दिलीप वर्मा जी। बधाई अउ शुभकामना।
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