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Thursday, February 15, 2018

आल्हा छन्द - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

लड़ाई मैना के

बड़े बाहरा उगती बेरा,हो जावै सूरज  सँग लाल।
अँधियारी रतिहा घपटे तब,डेरा डारे बइठे काल।

घरर घरर बड़ चले बँरोड़ा,डारा पाना धूल उड़ाय।
दल के दल मा रेंगय चाँटी,चाबे  त  लहू आ जाय।

घुघवा  घू  घू  करे  रात  भर,सुनके  जिवरा जावै काँप।
झुँझकुर झाड़ी कचरा काड़ी,इती उती बड़ घूमय साँप।

बनबिलवा नरियावत भागै,करै कोलिहा हाँवे हाँव।
मनखे  मनके आरो नइहे,नइहे तीर तखार म गाँव।

डाढ़ा टाँग टेड़गी रेंगय,घिरिया डर डर मुड़ी हलाय।
ऊद भेकवा भागे पल्ला,भूँ भूँ के रट कुकुर लगाय।

खुसरा रहि रहि पाँख हलावै,गिधवा देखै आँखी टेंड़।
जुन्ना  हावय  बोइर  बँभरी,मउहा कउहा पीपर पेड़।

आसमान  मा  डारा पाना,जड़ हा धँसे हवे पाताल।
पानी बरसे रझरझ रझरझ,भीगें ना कतको डंगाल।

उही  डाल  मा  मैना  बइठे,गावै   मया  प्रीत   के  गीत।
हवै खोंधरा जुग जोड़ी के,कुछ दिन जावै सुख मा बीत।

दू ठन पिलवा सुघ्घर होगे, मया ददा दाई के पाय।
चारा चरे ददा अउ दाई,छोड़ खोंधरा दुरिहा जाय।

सुख  मा  बीतै  जिनगी  सुघ्घर , आये नहीं काल ला रास।
अब्बड़ बिखहर बिरबिट करिया,नाँग साँप हा पहुँचे पास।

जाने  नहीं  उड़े  बर पिलवा,पारै  डर  मा बड़ गोहार।
इती उती बस सपटन लागे,मारे बिकट साँप फुस्कार।

उही  बेर  मा  मादा मैना ,अपन खोंधरा तीरन आय।
देख हाल ला लइका मनके,छाती दू फाँकी हो जाय।

तरवा  मा  रिस  चढ़गे ओखर,आँखी  होगे लाले लाल।
मोर जियत ले का कर सकबे,कहिके गरजे बइठे डाल।

पाँख हले ता चले बँड़ोड़ा,चमके बड़ बिजुरी कस नैन।
माते   लड़ई   दूनो  के   बड़,आसमान   ले  बरसे  रैन।

चाकू छूरी बरछी भाला,खागे नख के आघू मात।
बड़े बाहरा के सब प्राणी,देखे झगड़ा बाँधे हाथ।

पड़े  चोंच  के  मार साँप  ला,तरतर तरतर लहू बहाय।
लइका मन ला महतारी हा,झन रोवौ कहि धीर बँधाय।

उड़ा उड़ा के चोंच गड़ाये,फँस फँस नख मा माँस चिथाय।
टपके   लहू  पेड़   उप्पर  ले, जीव तरी  के  घलो  अघाय।

मादा   मैना   के  आघू  मा, बिखहर   डोमीं   माने  हार।
पहिली बेरा अइसन होइस,खाय रिहिस कतको वो गार।

जान  बचाके  भागे  बइरी,मैना  रण  मा  बढ़ चढ़ धाय।
पिलवा मन ला गला लगाके,फेर खुसी दिन रात पहाय।

रचनाकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

23 comments:

  1. वाह वाह,बेहतरीन आल्हा छंद,जीतेन्द्र भैया। साँप अउ मैना के लड़ाई के गजब सुग्घर चित्रण।बधाई अउ शुभकामनाएं।

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  2. बहुत सुघ्घर बहुत ही बढ़ियाँ आल्हा छंद जितेन्द्र भाई लिखे हव मैना अउ साँप के लढ़ाई के अतेक सुघ्घर चित्रण हवा पानी के संग गजब के रचना वाह्ह्हह्ह्ह्ह पढ़के मजा आगे भाई बहुत बहुत बधाई हो भाईज जी

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  3. बहुत बढ़िया आल्हा बर बधाई हो जितेन्द्र भईया जी

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  4. बहुत बढ़िया आल्हा बर बधाई हो जितेन्द्र भईया जी

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  5. सादर पायलागी,सधन्यवाद

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  6. शानदार आल्हा जितेंद्र भाई

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  7. शानदार आल्हा जितेंद्र भाई

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  8. वाहःहः भाई बेहतरीन आल्हा छंद

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  9. बहुत बढ़िया आल्हा भइया जी

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  10. बहुत बढ़िया आल्हा भइया जी

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  11. कथा गीत के सुग्हर कोशिश, आज अनुज हर करिस प्रयास
    जन - प्रिय विधा छंद मा गाइस,छंद खलखलाइस हे खास।

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  12. लाजवाब आल्हा छंद मा रचना सर।सादर बधाई

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  13. लाजवाब आल्हा छंद मा रचना सर।सादर बधाई

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  14. वाह्ह् लाजवाब छंद रचना सर जी।

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  15. लड़के बैरी सँग तो मैना,लइकन के कस प्रान बचाय।
    भाई अहिलेश्वर के आल्हा, ऋतु बरनन बढ़िया कर जाय।।
    बहुत बहुत बहुत बधाई भाईईईई..

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