लड़ाई मैना के
बड़े बाहरा उगती बेरा,हो जावै सूरज सँग लाल।
अँधियारी रतिहा घपटे तब,डेरा डारे बइठे काल।
घरर घरर बड़ चले बँरोड़ा,डारा पाना धूल उड़ाय।
दल के दल मा रेंगय चाँटी,चाबे त लहू आ जाय।
घुघवा घू घू करे रात भर,सुनके जिवरा जावै काँप।
झुँझकुर झाड़ी कचरा काड़ी,इती उती बड़ घूमय साँप।
बनबिलवा नरियावत भागै,करै कोलिहा हाँवे हाँव।
मनखे मनके आरो नइहे,नइहे तीर तखार म गाँव।
डाढ़ा टाँग टेड़गी रेंगय,घिरिया डर डर मुड़ी हलाय।
ऊद भेकवा भागे पल्ला,भूँ भूँ के रट कुकुर लगाय।
खुसरा रहि रहि पाँख हलावै,गिधवा देखै आँखी टेंड़।
जुन्ना हावय बोइर बँभरी,मउहा कउहा पीपर पेड़।
आसमान मा डारा पाना,जड़ हा धँसे हवे पाताल।
पानी बरसे रझरझ रझरझ,भीगें ना कतको डंगाल।
उही डाल मा मैना बइठे,गावै मया प्रीत के गीत।
हवै खोंधरा जुग जोड़ी के,कुछ दिन जावै सुख मा बीत।
दू ठन पिलवा सुघ्घर होगे, मया ददा दाई के पाय।
चारा चरे ददा अउ दाई,छोड़ खोंधरा दुरिहा जाय।
सुख मा बीतै जिनगी सुघ्घर , आये नहीं काल ला रास।
अब्बड़ बिखहर बिरबिट करिया,नाँग साँप हा पहुँचे पास।
जाने नहीं उड़े बर पिलवा,पारै डर मा बड़ गोहार।
इती उती बस सपटन लागे,मारे बिकट साँप फुस्कार।
उही बेर मा मादा मैना ,अपन खोंधरा तीरन आय।
देख हाल ला लइका मनके,छाती दू फाँकी हो जाय।
तरवा मा रिस चढ़गे ओखर,आँखी होगे लाले लाल।
मोर जियत ले का कर सकबे,कहिके गरजे बइठे डाल।
पाँख हले ता चले बँड़ोड़ा,चमके बड़ बिजुरी कस नैन।
माते लड़ई दूनो के बड़,आसमान ले बरसे रैन।
चाकू छूरी बरछी भाला,खागे नख के आघू मात।
बड़े बाहरा के सब प्राणी,देखे झगड़ा बाँधे हाथ।
पड़े चोंच के मार साँप ला,तरतर तरतर लहू बहाय।
लइका मन ला महतारी हा,झन रोवौ कहि धीर बँधाय।
उड़ा उड़ा के चोंच गड़ाये,फँस फँस नख मा माँस चिथाय।
टपके लहू पेड़ उप्पर ले, जीव तरी के घलो अघाय।
मादा मैना के आघू मा, बिखहर डोमीं माने हार।
पहिली बेरा अइसन होइस,खाय रिहिस कतको वो गार।
जान बचाके भागे बइरी,मैना रण मा बढ़ चढ़ धाय।
पिलवा मन ला गला लगाके,फेर खुसी दिन रात पहाय।
रचनाकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
बड़े बाहरा उगती बेरा,हो जावै सूरज सँग लाल।
अँधियारी रतिहा घपटे तब,डेरा डारे बइठे काल।
घरर घरर बड़ चले बँरोड़ा,डारा पाना धूल उड़ाय।
दल के दल मा रेंगय चाँटी,चाबे त लहू आ जाय।
घुघवा घू घू करे रात भर,सुनके जिवरा जावै काँप।
झुँझकुर झाड़ी कचरा काड़ी,इती उती बड़ घूमय साँप।
बनबिलवा नरियावत भागै,करै कोलिहा हाँवे हाँव।
मनखे मनके आरो नइहे,नइहे तीर तखार म गाँव।
डाढ़ा टाँग टेड़गी रेंगय,घिरिया डर डर मुड़ी हलाय।
ऊद भेकवा भागे पल्ला,भूँ भूँ के रट कुकुर लगाय।
खुसरा रहि रहि पाँख हलावै,गिधवा देखै आँखी टेंड़।
जुन्ना हावय बोइर बँभरी,मउहा कउहा पीपर पेड़।
आसमान मा डारा पाना,जड़ हा धँसे हवे पाताल।
पानी बरसे रझरझ रझरझ,भीगें ना कतको डंगाल।
उही डाल मा मैना बइठे,गावै मया प्रीत के गीत।
हवै खोंधरा जुग जोड़ी के,कुछ दिन जावै सुख मा बीत।
दू ठन पिलवा सुघ्घर होगे, मया ददा दाई के पाय।
चारा चरे ददा अउ दाई,छोड़ खोंधरा दुरिहा जाय।
सुख मा बीतै जिनगी सुघ्घर , आये नहीं काल ला रास।
अब्बड़ बिखहर बिरबिट करिया,नाँग साँप हा पहुँचे पास।
जाने नहीं उड़े बर पिलवा,पारै डर मा बड़ गोहार।
इती उती बस सपटन लागे,मारे बिकट साँप फुस्कार।
उही बेर मा मादा मैना ,अपन खोंधरा तीरन आय।
देख हाल ला लइका मनके,छाती दू फाँकी हो जाय।
तरवा मा रिस चढ़गे ओखर,आँखी होगे लाले लाल।
मोर जियत ले का कर सकबे,कहिके गरजे बइठे डाल।
पाँख हले ता चले बँड़ोड़ा,चमके बड़ बिजुरी कस नैन।
माते लड़ई दूनो के बड़,आसमान ले बरसे रैन।
चाकू छूरी बरछी भाला,खागे नख के आघू मात।
बड़े बाहरा के सब प्राणी,देखे झगड़ा बाँधे हाथ।
पड़े चोंच के मार साँप ला,तरतर तरतर लहू बहाय।
लइका मन ला महतारी हा,झन रोवौ कहि धीर बँधाय।
उड़ा उड़ा के चोंच गड़ाये,फँस फँस नख मा माँस चिथाय।
टपके लहू पेड़ उप्पर ले, जीव तरी के घलो अघाय।
मादा मैना के आघू मा, बिखहर डोमीं माने हार।
पहिली बेरा अइसन होइस,खाय रिहिस कतको वो गार।
जान बचाके भागे बइरी,मैना रण मा बढ़ चढ़ धाय।
पिलवा मन ला गला लगाके,फेर खुसी दिन रात पहाय।
रचनाकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
वाह वाह,बेहतरीन आल्हा छंद,जीतेन्द्र भैया। साँप अउ मैना के लड़ाई के गजब सुग्घर चित्रण।बधाई अउ शुभकामनाएं।
ReplyDeleteधन्यवाद, भैया
Deleteबहुत सुघ्घर बहुत ही बढ़ियाँ आल्हा छंद जितेन्द्र भाई लिखे हव मैना अउ साँप के लढ़ाई के अतेक सुघ्घर चित्रण हवा पानी के संग गजब के रचना वाह्ह्हह्ह्ह्ह पढ़के मजा आगे भाई बहुत बहुत बधाई हो भाईज जी
ReplyDeleteधन्यवाद दीदी,पायलागी
Deleteबहुत बढ़िया आल्हा बर बधाई हो जितेन्द्र भईया जी
ReplyDeleteधन्यवाद जोगी जी
Deleteबहुत बढ़िया आल्हा बर बधाई हो जितेन्द्र भईया जी
ReplyDeleteसादर पायलागी,सधन्यवाद
ReplyDeleteशानदार आल्हा जितेंद्र भाई
ReplyDeleteशानदार आल्हा जितेंद्र भाई
ReplyDeleteसधन्यवाद भैया
Deleteवाहःहः भाई बेहतरीन आल्हा छंद
ReplyDeleteसधन्यवाद दीदी
Deleteबहुत बढ़िया आल्हा भइया जी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया आल्हा भइया जी
ReplyDeleteधन्यवाद भैया
Deleteकथा गीत के सुग्हर कोशिश, आज अनुज हर करिस प्रयास
ReplyDeleteजन - प्रिय विधा छंद मा गाइस,छंद खलखलाइस हे खास।
सादर पायलागी दीदी
Deleteलाजवाब आल्हा छंद मा रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteलाजवाब आल्हा छंद मा रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद भैया
Deleteवाह्ह् लाजवाब छंद रचना सर जी।
ReplyDeleteलड़के बैरी सँग तो मैना,लइकन के कस प्रान बचाय।
ReplyDeleteभाई अहिलेश्वर के आल्हा, ऋतु बरनन बढ़िया कर जाय।।
बहुत बहुत बहुत बधाई भाईईईई..