प्रेम के पीरा
(1)
पुरखा बनाये रीत ला ,बिधना धराये मीत ला |
खाई बड़े छोटे अबड़,कइसे निभाये प्रीत ला |
बोली भुलागे मान ला ,मनखे भुलागे दान ला |
चारो डहर स्वारथ भरे ,कुचलत हवे सम्मान ला |
(2)
बेड़ी बँधाए जात के ,अंतस पुकारत हे मया |
कइसे छुड़ावव गांठ ला ,करदे विधाता तैँ दया |
पीरा सुनावव कोन ला ,बदनाम दुनियाँ हा करे |
गहरा अबड़ हे घाव हा ,सब झन जहर महुरा धरे |
(3)
रद्दा कठिन हे प्रेम के ,कांटा गड़े हे पाँव मा |
रोवत हवे अंतस घलो ,नइहे ठिकाना छाँव मा |
नइहे मया बर ठौर अब ,छाये गरब के राज हे |
बोली तको अब ठाड़ हे ,जइसे गिराये गाज हे |
(4)
ताना कसे संसार हा ,जिनगी लगे हे पाप कस |
एके सबो मनखे हवे ,ये जात बनगे श्राप कस |
कोनो बता दे आज गा ,हावय धरम का भात के |
का रंग के हावय हवा ,पानी हवय का जात के |
(5)
दिन रात सिसके हे मया ,बोली मिले अपमान के |
जाबे चिरैया तैं कहाँ ,भूखा हवय जग प्रान के |
आँसू भरे आंखी हवय ,दिन रात जोहय मीत ला |
बैरी बने जग प्रेम के ,कइसे बचावव प्रीत ला |
(6)
चारो डहर अँधियार हे ,उगलत हवय हर झन धुआँ |
रद्दा घलो सूझय नही ,खाई हवे या हे कुआँ |
भीतर झँकैया कोन हे ,चारो मुड़ा बीरान हे |
बस मन निहारे प्रीत ला ,एके लगन के ध्यान हे |
(7)
मन हा पुकारे मोहना ,बंशी बजादे प्रीत के |
हर गाँव वृन्दावन बने ,बोली ठिठोली गीत के |
तोरे रचे संसार हे ,रखदे मया के मान ला |
बस एक तोरे आसरा ,अब का कहव भगवान ला |
रचनाकार - श्रीमती आशा देशमुख
एन टी पी सी जमनीपाली
कोरबा, छत्तीसगढ़
(1)
पुरखा बनाये रीत ला ,बिधना धराये मीत ला |
खाई बड़े छोटे अबड़,कइसे निभाये प्रीत ला |
बोली भुलागे मान ला ,मनखे भुलागे दान ला |
चारो डहर स्वारथ भरे ,कुचलत हवे सम्मान ला |
(2)
बेड़ी बँधाए जात के ,अंतस पुकारत हे मया |
कइसे छुड़ावव गांठ ला ,करदे विधाता तैँ दया |
पीरा सुनावव कोन ला ,बदनाम दुनियाँ हा करे |
गहरा अबड़ हे घाव हा ,सब झन जहर महुरा धरे |
(3)
रद्दा कठिन हे प्रेम के ,कांटा गड़े हे पाँव मा |
रोवत हवे अंतस घलो ,नइहे ठिकाना छाँव मा |
नइहे मया बर ठौर अब ,छाये गरब के राज हे |
बोली तको अब ठाड़ हे ,जइसे गिराये गाज हे |
(4)
ताना कसे संसार हा ,जिनगी लगे हे पाप कस |
एके सबो मनखे हवे ,ये जात बनगे श्राप कस |
कोनो बता दे आज गा ,हावय धरम का भात के |
का रंग के हावय हवा ,पानी हवय का जात के |
(5)
दिन रात सिसके हे मया ,बोली मिले अपमान के |
जाबे चिरैया तैं कहाँ ,भूखा हवय जग प्रान के |
आँसू भरे आंखी हवय ,दिन रात जोहय मीत ला |
बैरी बने जग प्रेम के ,कइसे बचावव प्रीत ला |
(6)
चारो डहर अँधियार हे ,उगलत हवय हर झन धुआँ |
रद्दा घलो सूझय नही ,खाई हवे या हे कुआँ |
भीतर झँकैया कोन हे ,चारो मुड़ा बीरान हे |
बस मन निहारे प्रीत ला ,एके लगन के ध्यान हे |
(7)
मन हा पुकारे मोहना ,बंशी बजादे प्रीत के |
हर गाँव वृन्दावन बने ,बोली ठिठोली गीत के |
तोरे रचे संसार हे ,रखदे मया के मान ला |
बस एक तोरे आसरा ,अब का कहव भगवान ला |
रचनाकार - श्रीमती आशा देशमुख
एन टी पी सी जमनीपाली
कोरबा, छत्तीसगढ़
बहुत सुघ्घर छंद दीदी जी
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
सादर आभार भाई महेंद्र
Deleteजब - जानथे मनखे तभे, उद्धार के मग - दीखथे
ReplyDeleteसब सोच के सच जान के, पहिचान के मन सीखथे।
धर धीर तयँ अब मान ले, निज देश के धुन पाग रे
पथ पा बने अब ग्यान के, सम भाव के बन राग रे।
सादर आभार नमन दीदी जी
Deleteवाह वाह बहुत ही शानदार हरिगीतिका के सृजन करे हव आशा देशमुख बहिनी जी। हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसादर आभार नमन भैया जी
Deleteवाहहहह मधुर भाव, श्रृंगार रस मा सुन्दर हरिगितिका छंद
ReplyDeleteसादर आभार नमन भैया जी
Deleteकालजयी हरिगीतिका आशा दीदी
ReplyDeleteसादर आभार भाई अजय
Deleteकालजयी हरिगीतिका आशा दीदी
ReplyDeleteवाह वाह दीदी अद्भुत,बेहतरीन
ReplyDeleteसादर आभार भाई जितेंन्द्र
Deleteबहुत सुघ्घर दीदी जी
ReplyDeleteसादर आभार भाई आसकरण
Deleteहरिगीतिका छंद मा सुघ्घर लेखनी आशा बहिनी बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteसादर आभार दीदी
Deleteबेहतरीन हरिगीतिका छंद में रचना दीदी।सादर बधाई
Deleteबेहतरीन हरिगीतिका छंद में रचना दीदी।सादर बधाई
Deleteसादर आभार भाई ज्ञानु
Deleteप्रेम के पीरा के बेहतरीन वर्णन हरिगीतिका छंद मा करे हव ,दीदी। बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteसादर आभार भाई मोहन
Deleteसादर आभार मोहन भाई
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