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Wednesday, February 28, 2018

सर्वगामी सवैया -श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"

                     पुराना भये रीत
                            (०१)

सोंचे बिचारे बिना संगवारी धरे टंगिया दूसरो ला धराये।
काटे हरा पेंड़ होले बढ़ाये पुराना भये रीत आजो निभाये।
टोरे उही पेंड़ के जीव साँसा ल जे पेंड़ हा तोर संसा चलाये।
माते परे मंद पी के तहाँ कोन का हे कहाँ हे कहाँ सोरियाये।

                              (०२)

रेंगौ चुनौ रीत रद्दा बने जेन रद्दा सबो के बनौका बनावै।
सोचौ बिचारौ तभे पाँव धारौ करे आज के काल के रीत आवै।
चाहौ त अच्छा हवै एक रद्दा जँचै ता करौ नीव आजे धरावै।
कूड़ा उठा रोज होले म डारौ ग होले बढ़ै औ गली खर्हरावै।

रचनाकार:-         श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"
                        गोरखपुर,कवर्धा

12 comments:

  1. बहुत बढ़िया सर्वगामी सवैया सर जी... बधाई हो

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    1. सादर धन्यवाद जोगी सर जी।

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  2. वाह्ह्ह् वाह्ह्ह् सरजी बहुत सुग्घर सर्वगामी सवैया।सादर बधाई

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  3. वाह्ह्ह् वाह्ह्ह् सरजी बहुत सुग्घर सर्वगामी सवैया।सादर बधाई

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  4. साभार प्रणाम गुरुदेव।

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  5. बहुतेच बढिया छंद रचे हस ग, सुखदेव ।

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  6. सुग्घर संदेश अहिलेश्वर जी

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  7. सुग्घर संदेश अहिलेश्वर जी

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  8. वाहःहः भाई सुखदेव
    बहुते सुघ्घर सृजम

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  9. बहुत बढ़िया अहिलेश्वर जी

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  10. बहुत बढ़िया सुखदेव भैया

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