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Tuesday, February 1, 2022

मुक मजदूर (रूपमाला छन्द)


 राजभासा आयोग सम्मेलन- राजिम


मुक मजदूर (रूपमाला छन्द)


जाड़ अब कुछ दिन जनाही, पूस गे हे पूर।

एक महिना माँघ जाही, आ धमकही धूर।

एक ठन कम्बल लपेटे, सोय मुक मजदूर।

मन न बोधय तव करै का,‌ आदमी मजबूर।


वोट के बेरा बखत मा, हो जथे कुछ चेत।

तेखरो ऊपर धरम अउ, जातिवादी केत।

दू कुवाटर झन अँकावय, आज ले औकात।

आसमाने के तरी मा, हे कटत दिन रात।


दू समोसा खाय हावय, लंच टाइम आज।

चार कप अमसुर कढ़ी हा, बड़ रखे हे लाज।

दू पहर लटपट पहाइस, बइठ आगी ताप।

नींद झपकी आय लागिस, चोर कस चुप-चाप।


जाड़ मा निमगा जुड़ागे, आज आठो अंग।

हार झन जावय बिचारा, जिन्दगी के जंग।

ओंठ डोलय गोड़ काँपय, किटकिटावय दाँत।

चेत गे हे पेट कोती, भात खोजय आँत।


हाथ जुरगे हे दुनोठन, सच म अपने आप।

भोरहा मा झन समझहू, प्रार्थना व्रत जाप।

खाँध मा जेखर खड़े हे, लाख नव निर्माण।

जीवलेवा जाड़ हा पल-पल हरत हे प्राण।


हे विधाता ये जगत के, तँय कहाथस बाप।

तोर इन लइकन ल आखिर, कोन दे हे श्राप।

बड़ नपइया तँय कहाथस, छाय हे परताप।

खेद हे इनकर दरद दुख, नइ सके हस नाप।


रचना-सुखदेव सिंह "अहिलेश्वर"

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

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