*लावणी छंद*
महतारी भाखा के सपना
सपना साजे भाषा कहिथे, ए भुइँया के सेवाबर।
बर पीपर आमा बनजाहँव, तन रुखुवा के छइँहा धर।।
राज देश के चिनहारी हँव, दया मया के बोली बर।
तरपन बर पानी बन जाहँव, जाति धरम के सुमता कर।।
बादर बनके भरिहँव तरिया, नदियाँ मा बोहँव कल कल।
खेत खार धनहा डोली मा, सिरजन बर हँव अन धनबल।।
सबके चोला मा बस जाहँव, सुरुजनरायन के कण बन।
लहरावँव हरियाली बनके, बाग बगइचा वन उपवन।।
सबके मन ला पबरित करिहँव,संत गुरू के बानी बन।
दुख पीरा हर लेहँव तनके, मगन खुशी मा नाचँय जन।।
छंदकार
अश्वनी कोसरे
कवर्धा कबीरधाम
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