*हेम के सार छंद (बेटी)*
बेटी जग बर वरदान हवे, समझव इखरो पीरा।
झन मारव संगी कोख म, अनमोल एक हीरा।।
लक्ष्मी दाई बनके सुघ्घर, घर मा आथे बेटी।
दया मया के गठरी बांधे, लाये सुख के पेटी।।
दादा दादी के सँगवारी, बनथे मीत मयारू।
दाई बाबू बर सुख दाता, बेटी होय जुझारू।।
पढ़े लिखे मा अव्वल रहिथे, खेल कूद मा आगू।
डॉक्टर सैनिक बने शिक्षिका, नइहे बेटी पाछू।।
दू ठन कुल ला रखें बाँध के, कतको झेल झमेला।
दाई बहनी भाभी पत्नी, बिन जिनगी न कटेला।।
कुल गौरव चरित्र निर्मात्री, बेटी बड़ संस्कारी।
जग हे जेकर बिना अधूरा, महिमा हावे भारी।।
-हेमलाल साहू
छंद साधक सत्र-1
ग्राम -गिधवा, जिला बेमेतरा
No comments:
Post a Comment