*हरिगीतिका छंद-*
(1) नसा झन करव-
झन आज तँय झन काल तँय,सब छोड़ ये जंजाल ला।
तन देख ले अब जान ले,तँय सोंच ले जी काल ला।।
रख साफ सुथरा अंग ला,झन तोर तन हा नास हो।
मत मोह कर तँय मानले,अब छोड़ दे झन आस हो।।
(2)
बरबाद ये कर जात हे,घर द्वार सब हलकान जी।
तँय मान जा झन कर नसा,सुख दुःख सब ला जान जी।।
परिवार सुख अउ गाँव खुश,धन बाँचही जी मान ले।
सब धर्म अउ सब कर्म ला,तँय देख ले अउ जान ले।।
(3)
झन कर नशा अब सोंच ले,बइरी नसा के जात हे।
घर लोग लइका भोग थे,फिर खात अउ पछतात हे।।
बन आज तँय हुशियार गा,कर काम सोंच बिचार के।
घरबार मा सुख नेह के,बरसात होही प्यार के।।
छंदकार:-
बोधन राम निषादराज✍️
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