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Saturday, February 5, 2022

बसन्त पंचमी विशेष छंदबद्ध कविता


 

वर दे माँ शारदे (सरसी छन्द)


दे अइसन वरदान शारदा, दे अइसन वरदान।

गुण गियान यश धन बल बाढ़ै,बाढ़ै झन अभिमान।


तोर कृपा नित होवत राहय, होय कलम अउ धार।

बने बात ला पढ़ लिख के मैं, बढ़ा सकौं संस्कार।

मरहम बने कलम हा मोरे, बने कभू झन बान।

दे अइसन वरदान शारदा, दे अइसन वरदान।।।


जेन बुराई ला लिख देवँव, ते हो जावय दूर।

नाम निशान रहे झन दुख के, सुख छाये भरपूर।

आशा अउ विस्वास जगावँव, छेड़ँव गुरतुर तान।

दे अइसन वरदान शारदा, दे अइसन वरदान।।।


मोर लेखनी मया बढ़ावै, पीरा के गल रेत।

झगड़ा झंझट अधम करइया, पढ़के होय सचेत।

कलम चले निर्माण करे बर, लाये नवा बिहान।

दे अइसन वरदान शारदा, दे अइसन वरदान।।।


अपन लेखनी के दम मा मैं, जोड़ सकौं संसार।

इरखा द्वेष दरद दुरिहाके, टार सकौं अँधियार।

जिया लमाके पढ़ै सबो झन, सुनै लगाके कान।

दे अइसन वरदान शारदा, दे अइसन वरदान।।।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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रितु बसंत 


गावय गीत बसंत, हवा मा नाचै डारा।

फगुवा राग सुनाय, मगन हे पारा पारा।

करे  पपीहा शोर, कोयली कुहकी पारे।

रितु बसंत जब आय, मया के दीया बारे।


बखरी बारी ओढ़, खड़े हे लुगरा हरियर।

नदिया नरवा नीर, दिखत हे फरियर फरियर।

बिहना जाड़ जनाय, बियापे मँझनी बेरा।

अमली बोइर आम, तरी लइकन के डेरा।


रंग रंग के साग, कढ़ाई मा ममहाये।

कौंरा ताते तात, अबड़ उपरहा खवाये।

धनिया मिरी पताल, नून बासी मिल जाये।

चिक्कन खाये चाँट, पेट का जिया अघाये।


हाँस हाँस के खेल, लोग लइकन मन खेलैं।

चना चिरौंजी चार, टोर के मनभर झेलैं।

झुलैं झूलना बाँध, आम अमली के डारा।

किसम किसम के फूल, फुलै महके घर पारा।


मेथी मटर मसूर, देख के मन मुसकावय।

खन खन करे रहेर, हवा सँग नाचय गावय।

हवे उतेरा खार, लाखड़ी सरसो अरसी।

घाम घरी बर देख, बने कुम्हरा घर करसी।


मुसुर मुसुर मुस्काय, लाल परसा हा फुलके।

सेम्हर हाथ हलाय, मगन हो मन भर झुलके।

पीयँर पीयँर पात, झरे पुरवा आये तब।

मगन जिया हो जाय, गीत पंछी गाये तब।


हाट बजार भराय, लुभावै लाड़ू मुर्रा।

डहर बाट मा छाय, गाँव के कुधरिल धुर्रा।

बर बिहाव के बात, चले नोनी बाबू के।

लोरी गावत रोज, हवा हा पंखा धूके।।


माँघ पंचमी होय, शारदा माँ के पूजा।

कहाँ पार पा पाय, महीना कोई दूजा।

ढोल नँगाड़ा झाँझ, आज ले बाजन लागे।

आगे मास बसन्त, सबे कोती सुख छागे।


जीतेंन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बाल्को कोरबा(छग)

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सार छंद गीत

ऋतु बसंती के आये ला,बउरागे अमराई।

मौसम हा मन भावन होगे,जन-जन बर सुखदाई।।


परसा फुलवा लाली लाली,सरसो फुलवा पिंवरा।

ममहावत हे चारो कोती,भावत हावय जिंवरा।।

रंग बिरंगा फुलवा मन के,नीक लगे मुस्काई।।

ऋतु बसंती के आये ला,बउरागे अमराई।।


कुहके कारी कोयलिया हा,मारत हावय ताना।

फूल फूल मा झूमे नाचे,भौंरा गावय गाना।।

तन मन ला हरसावय अब्बड़,फुरहुर ए पुरवाई।

ऋतु बसंती के आये ला,बउरागे अमराई।।


फागुन के आये के अब तो,होगे हे तइयारी।

गाँव गली मा ढ़ोल नँगारा,चलही जी पिचकारी।।

रंग लगाही हँसी खुशी ले,होही बड़ पहुनाई।।

ऋतु बंसती के आये ला,बउरागे अमराई।।


द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"

बायपास रोड़ कवर्धा 

छत्तीसगढ़

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बसन्त ऋतु-घनाक्षरी


अमरइया मा जाबों,कोयली के संग गाबो

चले सर सर सर,पुरवइया राग मा।।

अरसी हे घमाघम,चना गहूँ चमाचम

सरसो मँसूर धरे,मया ताग ताग मा।

अमली झूलत हवै,अमुवा फुलत हवै,

अरझ जावत हवै,जिवरा ह बाग मा।

रौंनिया म माड़ी मोड़,पापड़ चना ल फोड़

खाबों तीन परोसा गा,सेमी गोभी साग मा।


जब ले बसंत लगे,बगुला ह संत लगे

मछरी ल बिनत हे, कलेचुप धार मा।।

चिरई के बोली भाये, पुरवा जिया लुभाये

लाली रंग रंगत हे, परसा ह खार मा।।

खेत खार घर बन,लागे जैसे मधुबन

तरिया मा मुँह देखे,बर खड़े पार मा।।

बसंत सिंगार करे,खुशी दू ले चार करे

लइका कस धरती ह,हाँसे जीत हार मा।।


दोहा-


परसा सेम्हर फूल हा,अँगरा कस हे लाल।

आमा बाँधे मौर ला,माते मउहा डाल।1।


पुर्वाही सरसर चले,डोले पीपर पात।

बर पाना बर्रात हे,रोजे दिन अउ रात।2।


खिनवा पहिरे सोनहा,लुगरा हरियर पान।

चाँदी के पइरी सजा,बम्हरी छेड़े तान।3।


चना गहूँ माते हवै,नाचे सरसो खेत।

अरसी राहर लाखड़ी,हर लेथे सुध चेत।4।


नाचत गावत माँघ मा,आथे देख बसन्त।

दुल्हिन कस लगथे धरा,छाथे खुशी अनन्त।5।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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सरसी छंद गीत


दिखय कहाँ अब कोनो कोती,अमरइया के छाँव।

इहाँ कोइली कूक नँदागे,अउ कउआँ के काँव।।


बिछगे चारो-कोती संगी,कंक्रिटिंग के जाल।

बिन आगी के जरगे जंगल,जीव-जंतु बेहाल।।

फुलवारी खोजे नइ पाबे,शहर बने हे गाँव।

दिखय कहाँ अब कोनो कोती,अमरइया के छाँव।।


महुरा घोरे जइसे होगे,पुरवाई तो आज।

कोन बिगाड़त हावय संगी,ए धरती के साज।।

एमा काखर हाथ हवय गा,काखर लेवँव नाँव।।

दिखय कहाँ अब कोनो कोती,अमरइया के छाँव।।


पहली जइसे ए धरती मा,आवय कहाँ बसंत।

बड़हर मन जी कर दे हावँय,अब तो एखर अंत।।

रितु बसंत करलावत हावय,का दुख ला बतियाँव।

दिखय कहाँ अब कोनो कोती,अमरइया के छाँव।।


डी.पी.लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़।

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रितु राज बसंत


रितु राज बसंत बहार धरे जब आवय रंग बड़े बगरायय।

रुख मा पतिया फर फूल लगे सब रंग बिरंग दिखे ममहाय।

शुभ सुग्घर नेवरनीन लगे रुखवा सबके मन ला हरसाय।

कुहके कुक कोयलिया बइठे अमुवा मउरे मन ला बड़ भाय।


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार

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बसंत आय हे-मनहरण घनाक्षरी

(1)

उलहा डारा पाना हे,कोयली गावै गाना हे,

गमकत दमकत,बसंत हा आय हे।

मउँरे अमुवा डाल,परसा फूले हे लाल,

अंतस मारे हिलोर,खुशी बड़ छाय हे।।

बाँधय मया के डोरी,दाई सुनावय लोरी,

झूमत मन मँजूर,पाख फइलाय हे।

चना सरसों तिंवरा,देख जुड़ाय जिंवरा,

मउँहा मतौना बने,गंध बगराय हे।।


(2)

परसा सेम्हर डाल,अँगरा बरत लाल,

मुचमुच हाँसे गोंदा,बड़ बिजरात हे।

ताल मा खिले कमल,सुघर दल के दल,

मया रंग भर रति,रस बरसात हे।।

बोहाय मया के रंग,मन मा जागे उमंग,

पींयर पींयर पात,पुरवा झर्रात हे।

ताल तलैया के नीर,देख के भागय पीर,

ऋतु बसंत हा आय,खुशी बड़ छात हे।।

विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

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मनहरण घनाक्षरी:-

बसंत बहार आगे, चारो मुड़ा हरियागे,नवा जी उमंग लेके,ॠतुराज आत हे।

सरसों पिंयर फुले,आमा डार मौर झुले,प्रकृति दुल्हन कस,रूप दमकात हे।

परसा हा फुले लाल,लहसे महुँआ डाल,

महर महर देख,बड़ ममहात हे। 

पेड़ मा उल्होय पाना,कोयली गावय गाना,फूल फूल मा मगन,भौंरा मंडरात हे।।1


घपटे हे ओनहारी,आनी बानी तरकारी,भाँड़ी चढ़े सेमी नार,छछलत जात हे।

झूनला बँधाये डार, झूलै जम्मो संगी यार,अमली के फर देख,मन ललचात हे।

जाड़ अब कम होगे,मौसम सुगम होगे, बर बिहाव के घलो ,दिन लकठात हे।

मेला मड़ई भराही,देखे सब सकलाही, इही सेती ॠतुराज,बसंत कहात हे।।2


गुमान साहू

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[2/5, 9:43 AM] विजेन्द्र: बसंत आय हे-मनहरण घनाक्षरी

(1)

उलहा डारा पाना हे,कोयली गावै गाना हे,

गमकत दमकत,बसंत हा आय हे।

मउँरे अमुवा डाल,परसा फूले हे लाल,

अंतस मारे हिलोर,खुशी बड़ छाय हे।।

बाँधय मया के डोरी,दाई सुनावय लोरी,

झूमत मन मँजूर,पाख फइलाय हे।

चना सरसों तिंवरा,देख जुड़ाय जिंवरा,

मउँहा मतौना बने,गंध बगराय हे।।


(2)

परसा सेम्हर डाल,अँगरा बरत लाल,

मुचमुच हाँसे गोंदा,बड़ बिजरात हे।

ताल मा खिले कमल,सुघर दल के दल,

मया रंग भर रति,रस बरसात हे।।

बोहाय मया के रंग,मन मा जागे उमंग,

पींयर पींयर पात,पुरवा झर्रात हे।

ताल तलैया के नीर,देख के भागय पीर,

ऋतु बसंत हा आय,खुशी बड़ छात हे।।

विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

[2/5, 10:46 AM] अनुज छत्तीसगढ़ी 14: *हरिगीतिका छंद*

*आगे बसंती*

आगे बसंती झूम के अब, देख जोही बाग ला।

ये पेड़ के पतझड़ हवा हा, शोर देवत फाग ला।।

चंपा-चमेली रातरानी, मन बने भावत हवें।

अउ देख भौंरा मन मया के, गीत ला गावत हवें।।


*अनुज छत्तीसगढ़िया*

 *पाली जिला कोरबा*

[2/5, 12:01 PM] बोधन जी: *जल-हरन घनाक्षरी - ( बसन्त)*


मन मोर  झुमें  नाचे, पड़की  परेवा बाचे,

लागथे  लगन  अब, शोर   बगराय बर।

परसा के फूल लाली,गोरी होगे मतवाली,

कुहके कोयलिया हा,जिवरा जलाय बर।।

आमा मउँर महके, जिवरा  घलो  बहके,

सरसो  पिँयर  सोहे, मन  ललचाय  बर।

हरियर     रुखराई,    चलतहे     पुरवाई,

आस ला बँधावत हे,मया ला जगाय बर।।


*किरीट सवैया - (बसन्त)*


आय बसन्त फुले परसा गुँगवावत आगि लगावत हावय।

देख जरै जिवरा बिरही मन मा बहुँते अकुलावत हावय।।

कोकिल राग सुनावत हे महुआ मीठ फूल झरावत हावय।

रंग मया पुरवा बगरे चहुँ ओर इहाँ ममहावत हावय।।


*सुखी सवैया - (बसन्त)*


ऋतुराज बसन्त लुभावत हे,मन मा खुशियाँ अब छावन लागय।

अमुवा मउरे पिँउरावत हे,कुँहु कोकिल राग सुनावन लागय।।

सरसो अरसी महुआ महके,सब डाहर फूल सुहावन लागय।

मन मोर अगास उड़ै जस बादर गीत मया बरसावन लागय।।


छंदकार - बोधन राम निषादराज

सहसपुर लोहारा,जिला - कबीरधाम

(छत्तीसगढ़)

[2/5, 12:56 PM] अश्वनी कोसरे 9: *रोला छंद* 

 *बसंत आगे* -अश्वनी कोसरे


आइस राज बसंत, पेड़ उलहोवँय पाना।

तिवँरा चना मसूर, गहूँ के पाकँय दाना।। 

सुरुज मुखी के फूल, लागय घातेच पिवँरा।

सरसों पीयँर फूल, लुभोवत हे अब जिवँरा।।


फूलत हवय पलास, अमराइ बौरन लागे।

झूमत हवय कनेर, बसंती खुमार छागे।।

 मंद पवन के टोर, खुशी के बयार आगे।

सजगे खेती खार, बड़ा मनभावन लागे।।


फूले हवँय मँदार, सेमहर लाली लाली।

हाथ मुड़ी ला जोर, बजावय अरसी ताली।।

करिया करिया डार, करायत झनकत जावय।

धनहा डोली पार, राहेर खनकत हावय।।


होवत हवय बिहाव, गवन के आगे बेरा।

बाजत हवय निशान, मड़वा मा घुमँय फेरा।।

दुल्हा दुल्हन देख, बरतिया गावन लागे।

मन मा उठे उमंग, सखा के बसंत आगे।।


छंदकार

अश्वनी कोसरे

[2/5, 1:05 PM] आशा देशमुख: बसंत पंचमी मा माँ शारदे बर भाव पुष्प🙏🙏🙏💐💐💐


हरिगीतिका छंद


 माँ सरसती माँ सरसती, दिन रात करथंव प्रार्थना।

घेरे हवे अज्ञान हा,  हर दे सबो दुख वेदना।

कागज धरे बइठे हवंव, मन भाव सब करिया दिखे।

तोरे चरण मन बुद्धि ला, निर्मल कृपा तरिया दिखे।


धोवय समुन्दर  पाँव ला, पूजा करँय सब द्वीप मन।

मोती रतन अनगिन धरे ,कविता कला के सीप मन।।

आखर धरे ब्रम्हांड के, उजियार सूरुज देव के।

वरदान माँगय मातु से, शुभ शांति सुमता नेंव के।।


 स्वागत करय ऋतुराज हा, माला बसंती ला धरे।

ममहात पुरवाई चले, आमा घलो फूले फरे।।

मेधा प्रभा मन बुद्धि के ,माता तहीं हस स्वामिनी।

पाथें कृपा माँ जेन मन, वो मन हवें सबले धनी।।



आशा देशमुख

एनटीपीसी कोरबा


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[2/5, 1:10 PM] इजारदार: दुर्गा शंकर इजारदार के

 *गीतिका छंद*

सरसती वंदना

ज्ञान  देवी सरसती माँ,ज्ञान के भंडार दे ।

देश हित मँय लिख सकँव माँ ,अतक मोला प्यार दे ।

आय हाँवव तोर कोरा ,हाथ रख दे माथ ओ ।

राग दे माँ साज दे माँ , छंद दे अउ साथ ओ ।


हाथ वीणा वेद धर के ,कमल आसन तोर हे ।

हंस वाहन मा विराजे ,प्रार्थना कर जोर हे ।

मोर डोंगा बहत हावय ,'देख ना मँझधार मा ।

तोर छोड़े कोन थामे ,हाथ ला संसार मा ।


कोयली के कूक बानी ,बाँसुरी के राग ओ ।

वेद के तँय मंत्र दाई , साधु के बैराग ओ ।

करत हाँवन तोर वंदन , हाथ दूनो जोड़ के ।

संग मा तै राख दाई ,समझ धुर्रा गोड़ के ।


दुर्गा शंकर ईजारदार

सारंगढ़(मौहापाली)

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