मनहरण घनाक्षरी
""बसंत बहार""
बसंती बहार आगे, जाड़ घलो दुरिहागे ।
रुख राई धीर लगे, पाना ल झर्रात हे ।
परसा ह फूले माते, सरसों ह बेनी गाॅथे ।
आमा ह मॅउर बाॅधे, मॅउहा गर्रात हे ।
गाॅव बस्ती झूमे पारा, हरियागे लीम डारा ।
पुरवाही बहे न्यारा, गस्ती बिजरात हे ।
बड़ माते गउॅहारी, चना खेत सॅगवारी।
घुघरू के धुन भारी, आरो बगरात हे ।
नॅगारा के ताल मा जी, अबीर गुलाल मा जी
फगुवा के तान मा जी, फागुन सर्रात हे।
प्रेम रॅग घोरे हवे, सब ला चिभोरे हवे ।
जवानी के कला कबे, बुढवा रिझात हे।
पॅड़की परेवा मैना,सुआ बोले मीठ बैना ।
नदिया पहाड़ सॅग , डोंगरी लुभात हे ।
कोइली ह राग धरे, मन मा उमंग भरे ।
छंद नवा गीत राग, कवि सिरजात हे ।
राजकुमार चौधरी "रौना"
टेड़ेसरा राजनादगाॅव🙏
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