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Sunday, February 20, 2022

मनहरण घनाक्षरी ""बसंत बहार""

 

मनहरण घनाक्षरी

     ""बसंत बहार""


बसंती बहार आगे, जाड़ घलो दुरिहागे ।

रुख राई धीर लगे, पाना ल झर्रात हे ।

परसा ह फूले माते, सरसों ह बेनी गाॅथे ।

आमा ह मॅउर बाॅधे, मॅउहा गर्रात हे ।

गाॅव बस्ती झूमे पारा, हरियागे लीम डारा ।

पुरवाही बहे न्यारा, गस्ती बिजरात हे ।

बड़ माते गउॅहारी, चना खेत सॅगवारी।

घुघरू के धुन भारी, आरो बगरात हे ।

नॅगारा के ताल मा जी, अबीर गुलाल मा जी

फगुवा के तान मा जी, फागुन सर्रात हे।

प्रेम रॅग घोरे हवे, सब ला चिभोरे हवे ।

जवानी के कला कबे, बुढवा रिझात हे।

पॅड़की परेवा मैना,सुआ बोले मीठ बैना ।

नदिया पहाड़ सॅग , डोंगरी लुभात हे ।

कोइली ह राग धरे, मन मा उमंग भरे ।

छंद नवा गीत राग, कवि सिरजात हे ।


राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनादगाॅव🙏

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