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Thursday, August 23, 2018

जलहरण घनाक्षरी - श्री दिलीप कुमार वर्मा

1
करत बिकास देश,बदलत हावे भेष,
आनी बानी मिले क्लेश,देख ले सबो डहर।
बड़े बड़े कारखाना,धुवें धुँवा आनाजाना,
तभो सुख बतलाना,तन मा भरे जहर। 
बड़े बड़े हे अटारी,कहाँ मिले कोलाबारी,
गाँव ह गंवागे संगी, चारो कोती हे शहर।
घर मा लुकाये रथे, जिनगी उही ल कथे,
गरमी सताये रथे, साँझ हो या दुपहर। 

2
रुख राई कटा गे हे, नदी नाला पटा गे हे,
तरिया ह अँटा गे हे, मनखे के हे कहर।
पहाड़ी ल खाँच डारे,भाँठा सब बाँट डारे,
खेत खार चाँट डारे,जाके बस गे शहर।
करिहौं विकास कहे,जन जन आस रहे,
 हवा जाने काय बहे, चारोकोति हे जहर।
अब तो मरन होगे,सुख सब के गा खोगे,
करनी अपन भोगे,दुख हे चारो डहर।

छन्दकार - श्री दिलीप कुमार वर्मा
बलौदा बाज़ार, छत्तीसगढ़

23 comments:

  1. बहुत सुग्घर रचना सर। बहुत बहुत बधाई

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  2. बहुत बढ़िया भइया जी बधाई हो

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  3. बढ़िया छंद लिखे हवय, भाई हमर दिलीप
    मोती चमकत हे कहाँ, देखव खोजव सीप।

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    1. देखव खोजव सीप, पकड़ के ओला लानव।
      दीदी के हर बात,सबोझन आशिष मानव।
      भाग अपन सहराँव,भले हँव मँय हा अढ़िया।
      दीदी करिन दुलार,कहिन जे मोला बढ़िया।
      दीदी प्रणाम

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  4. बढ़िया छंद लिखे हवय, भाई हमर दिलीप
    मोती चमकत हे कहाँ, देखव खोजव सीप।

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  5. वाह बहुत सुन्दर गुरुदेव जी

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  6. वाह वाह सुग्घर सृजन।हार्दिक बधाई दिलीप भाई जी।

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  7. शानदार सृजन गुरुदेव। सादर बधाई

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  8. बहुत सुग्घर छंद सिरजे हावय भइया जी, बधाई

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  9. बहुत ही बढ़िया जलहरण है घनाक्षरी गुरुजी

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  10. बहुत बढ़िया जलहरन घनाक्षरी हे आदरणीय।

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  11. वाहःहः भाई जी बहुत सुघ्घर सृजन

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  12. बहुत सुंदर भईया जी

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  13. वाह वाह सर जी,बेहतरीन

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