जिनगी पहावत जात हे
दुख ला धरे सुख ला धरे,जिनगी पहावत जात हे।
कखरो अवइया साँझ हे,कखरो पहाती रात हे।
कोन्हो जगावैं जाग के,कोनो उँघावत हें इँहा।
आखिर मना थक हार के,चूल्हा जलावत हे इँहा।
कोनो कुलुप अँधियार मा,दीया जलावत जात हें।
भटकँय न कोनो राह मा,रस्ता दिखावत जात हें।
होवय कहूँ त्यौहार ता,कोन्हो मनावँय गम इँहा।
सुख मा हँसत हे आँख हा,दुख मा नयन हे नम इँहा।
कोनो परे परपंच मा,अंतस अपन भरमात हें।
कोनो शबद साबुन धरे,मन मइल ला उजरात हें।
अरजी हवै परमातमा,अँगुरी दसो ठन जोर के।
रस्ता धराहौ हे पिता,जिनगी ल सुग्घर भोर के।
रचनाकार-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर,कवर्धा छत्तीसगढ़
बहुत बहुत आभार गुरुदेव।छंद खजाना म मोर रचना ल स्थान दिये हव।सादर प्रणाम...
ReplyDeleteएमा आभार के का बात हे ? ये ब्लॉग आपेमन के आय। मँय संकलनकर्ता आँव। मोर खुद के रचना इहाँ नगण्य पोस्ट होथे।
Deleteप्रणाम गुरुदेव...
Deleteवाहःहः अद्वितीय अनुपम कालजयी
ReplyDeleteसर्वप्रिय रचना।
बहुत बहुत बधाई हो भाई
सादर आभार प्रणाम दीदी।
Deleteअनुपम कृति सर
ReplyDeleteसादर आभार सर।
Deleteअनुपम कृति सर
ReplyDeleteबहुत बढ़िया हरिगीतिका छंद सुखदेव भाई जी।बधाई!!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया हरिगीतिका छंद सुखदेव भाई जी।बधाई!!
ReplyDeleteसादर आभार सर
Deleteजबरदस्त रचना सरजी।बधाई।
ReplyDeleteसादर आभार सर
Deleteजबरदस्त सिरजन भाई बधाई आप ला
ReplyDeleteसादर आभार सर
Deleteबहुत बढ़िया रचना भइया जी।
ReplyDeleteसादर आभार दीदी
Deleteअड़बड़ सुघ्घर रचना हे अहिलेश्वर भाई जी जबरदस्त
ReplyDeleteसादर आभार सर
Deleteलाजवाब रचना सर
ReplyDeleteसादर आभार सर
DeleteBahut umda rachna sirg.
ReplyDeleteसादर आभार सर
DeleteDevesh Kumar Sahu
ReplyDeleteवाह वाह शानदार हरिगीतिका।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteवाह वाह शानदार हरिगीतिका।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteशानदार अउ जानदार दोनों हे आदरणीय।
ReplyDeleteबहुत सुग्घर बधाई हो
ReplyDeleteअनुकरणीय हरिगीतिका हे गुरुदेव
ReplyDeleteबधाई हो
सुग्घर हरिगीतिका छंद गुरुदेव जी
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