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Saturday, August 11, 2018

विशेषांक - हरेली तिहार













 (1) सार छंद आधारित गीत - हरेली

हरियर  लुगरा पहिर ओढ़ के,आये हवै हरेली।
खुशी छाय हे सबो मुड़ा मा,बढ़े मया बरपेली।

रिचरिच रिचरिच बाजे गेंड़ी,फुगड़ी खो खो माते।
खुडुवा  खेले  फेंके  नरियर,होय  मया  के  बाते।
भिरभिर भिरभिर भागत हावय,बैंहा जोर सहेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,आये हवै हरेली----।

सावन मास अमावस के दिन,बइगा मंतर मारे।
नीम डार मुँहटा मा खोंचे,दया  मया मिल गारे।
घंटी  बाजै  शंख सुनावय,कुटिया  लगे हवेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,आये हवै हरेली-।

चन्दन बन्दन पान सुपारी,धरके माई पीला।
रापा  गैंती नाँगर पूजय,भोग लगाके चीला।
हवै  थाल  मा खीर कलेवा,दूध म भरे कसेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,आये हवै हरेली-।

गहूँ पिसान ल सान मिलाये,नून अरंडी पाना।
लोंदी  खाये  बइला  बछरू,राउत पाये दाना।
लाल चिरैंया सेत मोंगरा,महकै फूल  चमेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,आये हवै हरेली।

बेर बियासी के फदके हे,रंग म हवै किसानी।
भोले बाबा आस पुरावय,बरसै बढ़िया पानी।
धान पान सब नाँचे मनभर,पवन करे अटखेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,आये हवै हरेली---।

छन्दकार - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

(2) सरसी छंद - हरेली तिहार

हरियर हरियर डारा पाना, हरियर दिखथे खार।
आगय आगय हमर हरेली, पहली आज तिहार।1।

नोनी बाबू अउ सियान मन, होंगे गा तैयार।
कोरे गाँथे बड़ चुकचुक ले, बइठे तरिया पार।2।

लीपे पोते घर अँगना ला, साफ बहार बटोर।
लाही घर मा हमर हरेली, सुघ्घर नव अंजोर।3।

नागर अउ बइला ला धोये, धोये सब औजार।
नवा नान के माटी बढ़िया, पूजा करे अपार।4।

भोग लगाये गुड़हा चीला, नरियर बेला फोर।
लइका मन हा गेड़ी चढ़हे, गाँव गली अउ खोर।5।

डारा खोंचय नीम घरों घर, राउत आज हमार।
चौखट मा खीला ठोकय, घर घर मा सोनार।6।

सबो गाय गरुमन ला लाके, लोदी बना खवाय।
फूँक झार के मंतर मारय, रोग कभू झन आय।7।

जादू टोना दूर रथे जी, बइगा बाँधय गाँव।
बर पीपर के पूजा करथे, मिले सदा जी छाँव।8।

नरियर भेला फेक खेलथे, अउ खेले छू छुवाल।
खुशी खुशी ले देख हरेली, सब मनाय हर साल।9।

छन्दकार - हेमलाल साहू

(3) घनाक्षरी - हरेली

1
हरेली तिहार आये,हरियाली जग छाये,
खेत खार भाठा डोली,देख मुसकात हे।
तरिया हे टीप टीप, नदिया उछाल मारे,
बाँधा भरे लबालब,पानी ह बोहात हे।
बूता काम सिरा गेहे,किसानी ह थिरा गेहे,
रपली कुदारी राँपा,नाँगर धोवात हे।
किसानी के काम आये,अवजार नहलाये,
सबो ला सकेल बने,आज पूजे जात हे।1।

2
घर खोंचे लीम डारा, जाय सबो पारा पारा,
हरेली तिहार आये,हरियाली छाय जी।
कांदा दशमूल लाथे, बन गोंदली सुहाथे,
गाय गरु मनखे के,दवा बन जाय जी।
गरुवा गोठान भरे,जाय सबो लोंदी धरे,
छांद बाँध गरुवा ला,लोंदी ल खवाय जी।
गरुवा भागन लागे,कतको ह पकड़ागे,
कतको उचाट मारे,देख मजा आय जी।2।

3
बबा बाँस काट लावै, गेंड़ी बने सम्हरावै,
नरियर बुच डोरी,गेंड़ी म कसाय हे।
राजू गेंड़ी चढ़ जावै, रच रच ओ बजावै,
सब गेंड़ी धर लावै, संगी सकलाय हे।
छोटे बड़े आनी बानी,गेंड़ी के हवे कहानी,
चिखला म रेंगे सबो,दौड़ भी लगाय हे।
हरेली तिहार आये,मन बड़ा हरसाये,
तन मा उमंग छाये,सब इतराय हे।3।

छन्दकार - दिलीप कुमार वर्मा

(4) सार छन्द - हरेली

रेंग रेंग अब कहाँ खियाथे, देखौ ककरो एड़ी।
गाँव म दिखथे चढ़थें लइकन, सहर कहाँ अब गेंड़ी।।

कहाँ लीम के डारा पाना, आके कउनो खोचैं।
बन के रहि जाथे बस हाना, एला चिटिकुन सोचैं।।

तंतर मंतर भले भुलावौ, अँधबिसवास बढ़ाथे।
मगर लीम के डारा पाना, रोग संग लड़ जाथे।।

आवौ आज हरेली आगै, सब झन इही मनावन।
दुखिया के दुख हरै प्रभूजी, बीतै सुंदर सावन।।

रूख राइ झन काट उजारौ, अब जंगल बरपेली।
जघा जघा हरियाली लावौ, आय तिहार हरेली।।

 छन्दकार - सूर्यकांत गुप्ता

(5) लावणी छंद

आय हरेली तिहार पहिली,चारो मूड़ा खुशहाली।
नदिया नरवा हवै लबालब,खेतखार हा हरियाली।1

बड़े बिहनिया ले सुत उठके,लोंदी बबा बनावत हे।
सकलाये दैहान सबो,लोंदी गाय खवावत हे।2

नाँगर जूड़ा रापा गैती,धोवत हे कुदरी हँसिया।
नरियर पान सुपारी चीला,बबा चढ़ावत हे घसिया। 3

राउत भइया खोचत जावय,डारा लीम घरोघर जी।
देवत असीस रहिहौ सब झन,हँसी खुसी मा सुग्घर जी।4

हूम धूप ला बइगा देवय,भेजत हवय नेवता  ला।
गाँव रहय खुशहाली कहिके,जम्मो सुमर देवता ला।5

गेड़ी चढ़के लइकामन खुश,घूमत हे संगी साथी।
खेलय खो खो दउँड़ कबड्डी,कतको बने ऊँट हाथी ।6

 छन्दकार - ज्ञानुदास मानिकपुरी

(6)आल्हा छंद - हरेली तिहार

सावन मास अमावस के जी,परब  हरेली  हमर तिहार।
धरती लागे बड़ा सुहावन,देखव संगी आँख निहार।1।

प्यास बुझाये धरती दाई,सहिके गरमी के बड़ घाम।
बरखा  रानी  रूप  सँवारे,कहिके  पड़े  हरेली नाम।2।

धान बियासी होगे भइया,नाँगर बइला अब सुरताय।
मान किसान हवे अन्नदाता,परब हरेली सबो मनाय।3।

आज गाय गरुवा सकलाये,राउत धरे चले दइहान।
गाय बइल बर गेहूँ लोंदी,संग खम्हार रखे बड़ पान।4।

चले किसान धरे जी थाली,खड़ा नून अउ चाउर दार।
लोंदी ला गरुवा मन खावय,बाकी राउत बर उपहार।5।

दसमूल कंद राउत बाँटय,घर घर खोंचय पत्ता लीम।
दूर बिमारी घर से राखय,कतका सुग्घर करे उदीम।6।

बइगा तको  घरो  घर बाँटय,रखे भेलवा केई पान।
आस लगाये करे प्रार्थना,राहय भरे खेतखलिहान।7।

थाल  सजाये  फूल नारियर,हाथ  रखे चिरईँया हार।
पूजा करे किसान सबो जी,बैल किसानी के औजार।8।

रच रच रच रच गेड़ी बाजय,गाँव गली मा बड़ मन भाय।
हमर नँदागे  दिन अब भाई,सोंच  सोंच के मन  पछताय।9।

खेलन गेड़ी  दौड़, टिटंगी,आँख बँधौली  नरियर फेक।
बइठ सबो सुख दुख ला बाँटन,रोथे नैना पर अब देख।10।

गजानन्द पात्रे "सत्यबोध"

(7)
आल्हा छंद - हरेली
परब हरेली आज मनत हे, अबड़े निक लागत हे गाँव।
गइया मन खावत हें लोंदी, ठाढ़े हाबँय पीपर छाँव।1।

लोंदी सँग-सँग बन काँदा के, काढ़ा पीयत हाबँय झार।
नइ जावँय गा कोनो बरदी, ढिल्ला चरहीं जाके खार।2।

हाबय नाँगर जुड़ा रखाये, छकछक ले जम्मो धोवाय।
झार कुदारी राँपा गैंती, हँसिया टँगिया घलो रखाय।3।

लइका मन हा चढ़के गेंड़ी, करत हवँय गा नँगते शोर।
हे तेलई चढ़े घर-घर मा, ममहावत हे पारा खोर।4।

होवत हाबय नाँगर पूजा,दे के हाँथा तिलक लगाँय।
नरियर भेला फूल चढ़ाके, चीला भजिया ला जेंवाँय।5।

राउत भइया लिमवा डारा, खोंचय चौखट घर-घर जाय।
बइगा बाबा घलो असीसै, अन्न दान सूपा भर पाय।6।

कतको झन मन खेलत हाबँय, बेला गिन के नरियर फेंक।
दाँव लगत हे नँगते नरियर, नइये भइया कोनो छेंक।7।

हवय कबड्डी माते देखव, नोनी मन के खोखो खेल।
झूमत हाबँय सबो खुशी मा, फगनी ठगनी भकला ढेल।8।

छन्दकार - मनीराम साहू 'मितान"

(8) छन्न पकैया - हरेली तिहार

छन्न पकैया छन्न पकैया , सावन हे मनभावन ।
भोले बाबा के पूजा सँग, मनय हरेली पावन।।

छन्न पकैया छन्न पकैया , गरुवा लोंदी खाथे ।
अंडी पाना नून बँधाये ,राउत बने खवाथे ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया , नइ तो धरय बिमारी ।
हे दसमूल दवाई बढ़िया , खावव सब सँगवारी।।

छन्न पकैया छन्न पकैया , चाउँर देवय मइया ।
घर मुहाँटी लीम डार ला , खोंचय बइगा भइया ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया , कारीगर हा आथे।
खीला ठोंक बाँध के घर ला , मान गउन ला पाथे ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया , मनै तिहार हरेली ।
भाँठा मा जब खो खो मातय , खेलयँ सबो सहेली ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया , खुडुवा हा मन भावय।
फेंकत नरियर बेला भर के, कोनो दाँव लगावय ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया , बोरा दउँड़ टिटंगी ।
नव जवान मन डोर इँचौला , खेलयँ जम के संगी ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया , खेल जमाये पासा ।
सकलायें सब गुड़ी सियनहाँ , नइये कहूँ हतासा ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया , रच रच बाजै गेंड़ी ।
नँगत मचैं जब लइका मन जी ,उठा उठा के एँड़ी ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया , गेंड़ी महिमा भारी ।
द्वापर युग मा पांडव मन हा , चढ़े रहिन सँगवारी ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया , हे रिवाज जी सुग्घर ।
हँसी खुशी सब मना हरेली , चीला खावँन मन भर।।

छन्दकार -  चोवा राम " बादल "

(9)  छन्न पकैया -

छन्न पकैया छन्न पकैया, सावन आ गे भइया ।
हरियर हरियर चारों कोती, चरे घास ला गइया ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,  कर ले नाँगर पूजा ।
मया प्रेम ला राखे रहिबे, झन करबे तैं दूजा ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,  लइका चढ़थे गेड़ी ।
रिच्चिक रिच्चिक बाजत हावय , मचय उठा के एड़ी ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,  घर घर खोंचय डारा ।
बइगा मन हा घूमत संगी , ए पारा वो पारा ।।

छन्दकार - महेन्द्र देवांगन "माटी"

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आलेख  लोक परब~हरेली
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"सावन के रिमझिम फोहार,
हरियर हमर हरेली तिहार।"

हमर छत्तीसगढ़ राज मा बछर के पहिली तिहार हरेली ला माने गे हे। खेती किसानी के गढ़ , धान के कटोरा छत्तीसगढ़ मा माटी ले जुरे ये हरेली तिहार ला लोक परब के बड़का दरजा मिले हे। सावन के पबरित महीना मा भक्ति, अराधना, आस्था अउ बिसवास के झड़ी लगथे। तीज-तिहार के रेलम-पेल हो जाथे। इही सावन महीना मा  छत्तीसगढ़ के पहिलाँवत तिहार हरेली तिहार ला मनाय जाथे। ये हरियर -हरियर हरेली तिहार हा भुँइयाँ के चारों खूँट बगरे सँवरे हरियर-हरियर हरियाली के संग खुसहाली के तिहार हरय। ये हरेली तिहार हा जतका खुसी, उछाह, नवा उरजा अउ नवा जोस के तिहार हरय वोतका आस्था, बिसवास, परंपरा अउ अंधबिसवास के तिहार घलाव हरय। वइसे तिहार हा मूल रुप मा मनखे के खुसी अउ उछाह ला देखाय के माधियम हरय।
                      जेठ के जउँहर घाम ले सबो परानी के तन अउ मन हा झँउहाय रथे, बुझाय परे रथे। बरसा के चउमासा लगे ले असाढ़ अउ सावन समाथे। असाढ़ -सावन के जुड़ पुरवाही अउ फुर-फुर पानी के फोहार हा जेठ के जरे बइठे परानी मन ला नवा जिनगानी देथे। धरती अउ धरती के जम्मों परानी मन के पियास अउ थकास ला असाढ़ सावन हा बुझाथे। चारों खूँट पानीच पानी भर जाथे, भुँइयाँ हरिया जाथे। आँखी मा हरियर रंग के चसमा चढ़गे तइसे लागथे। सबले जादा सावन के अगोरा हमर माटी के मितान अनदाता किसान ला रथे। बिन पानी अबिरथा जिनगानी। हमर जिनगी के रखवार सावन हा होथे। सावन के संग मा सरी खुशी के रंग भरे रथे।
                                            सावन के सबले पबरित महीना मा जब धरती दाई के अँचरा हा हरियाथे ता सावन अमावसिया के दिन सुग्घर हरेली तिहार ला मनाथन। ए हरेली तिहार हा पुरखा के परमपरा ला पोठ करे के खाँटी देशी तिहार हरय। असाढ़ अउ सावन के आये ले जाँगर टोर कमइया किसान भाई मन बर खाय पीये के घलाव फुरसत नइ मिलय, बेरा कुबेरा खवई-पियई चलथे। सावन के अधियात ले खेती किसानी के बुता, बोवँई-सियासी हा सिरा जाथे या फेर सिराय ला धर लेथे। अपन जाँगर अउ नाँगर संग सहमत देवइया सहजोगी मन के मान अउ आदर करे बर ये तिहार ला सिरजाय गे हावय अइसे लागथे। किसानी मा काम अवइया जम्मों अउजार मन के  संगे संग भँइसा, बइला अउ गाय-गरुवा मन ला धो माँज के, नहा धोवा के पूजा पाठ करे के परमपरा हरेली के दिन हावय। ऊँच अउ सुख्खा जघा मा जम्मों किसानी के हथियार ला सुग्घर धो पोंछ सफा करके, गुलाल, बंदन, चंदन-चोवा लगा ,नरियर फोर के सदा सहायता करहू कहीके आसीस माँगे जाथे। हुम धूप, अगरबत्ती जलाके गुरहा चीला चघाके चाँउर पिसान के हाँथा दे जाथे। किसान के किसानी के सहजोगी पसुधन मन के मान गउन इही दिन सरद्धा ले होथे। अपन पसुधन ला बिहनिया ले नहा धोवा के कोठा मा बाँध दे जाथे। राउत भाई मन जंगल ले जरी बुटी के रुप मा बगरंडा, कांदा अउ नून  के खिचरी माल-मत्ता मन ला खवाथे। चउमास मा पानी ले होवइया बेमारी ले बचाय खातिर मनखे अउ माल-मत्ता बर दसमूल कांदा, बन गोंदली अउ गहूँ पिसान के लोंदी संग खम्हार पान अउ अण्डा पान, बगरंडा अउ नून संग खवाय जाथे। एखर ले बछर भर रोग माँदी झन सँचरय मवेसी मन ला अइसन सोंचे जाथे। खिचरी खवाके चोबीस घंटा कोठा मा बाँध के राखे जाथे। किसान के हाँथ पाँव इही मन हा होथे तभे एखर सुरक्छा सबले आगू करे के बेवसथा ये पहिली तिहार मा कर दे जाथे।
                                हरियर-हरियर हरेली तिहार के रंग छत्तीसगढ़ के रग रग मा रग रग ले बसे हावय। हमर गँवई गाँव मा हरेली तिहार के आतमा हा बसे हावय। गाँव-गँवई मा रहइया सिधवा खेती-किसानी करइया, जाँगर टोर कमइया किसान भाई मन बर ये तिहार हा बड़ हाँसी-खुसी, उछाह, सरद्धा अउ बिसवास जताय के परब हरय।  ए दिन दिनभर कोनो दूसर कारज करे के मनाही रथे, सिरिफ हाँसी-खुसी ले दिनभर तिहार मनाय के उदिम होथे। जम्मों जीव जगत के अन पानी के अधार किसानी हा हरय। ये तिहार किसानीच के हरय। ये दिन किसान किसानी के सरी समान नाँगर, बक्खर, कोपर, रापा, कुदारी, चतवार, हँसिया, टँगिया, बसुला, बिंधना, साबर, पटासी, काँवर अउ वो सबो जीनिस जौन किसानी के काम अवइया जीनिस होथे तेन मन ला हियाव करके मान-गउन करे जाथे। ये दिन घर मा गुर अउ चाँउर पिसान के चीला, चौसेला, बोबरा, खीर तसमई, दूधफरा, भजिया, सोंहारी अउ आनी-बानी के रोठी-पीठा बनथे। ये दिन कोठा,गोर्रा मन मा कुकरी अउ बोकरा के बलि दे के घलाव चलागत हावय। अइसन सरी उदिम कोनो प्रकार के अलहन ले बाँचे के उपाय पुरखा मन हा मानत आवत हें।
                                   हरेली मा पूजा पाठ के पाछू लइकामन बर बाँस के गेंड़ी खापे जाथे। एखरे सेती ये तिहार मा लइकामन सबले जादा खुश रहिथें। गेंड़ी चढ़हे बर लइकामन हा तालाबेली देवत रथें। वइसे गेंड़ी के चलन हा सावन भादो के चिखला ले बाँचे बर बनाय गीस फेर अब ये हा लइकामन के सबले बढ़िया सँउख अउ खेल के जीनिस हो गीस। नवा बछर के पहिली तिहार होय ले हरेली के दिन दिनभर रंग-रंग खेल होथे। लइका, जवान अउ सियान सब झन उछाह ले भरे रथें। गेंड़ी दँउड़, नरियर फेंक, गिल्ली डंड़ा, कबड्डी, खो-खो, फुगड़ी,  कुश्ती, खुरसी दँउड़ , डोरी दँउड़, बोरा दँउड़ जइसन खेल  बाजी लगाके खेले जाथे। संगे-संग लोहार भाई मन घर के मुँहाटी मा खीला ठेंसके लीम के डारा खोंचथें। केवट भाई मन घरो-घर सौंखी मा लइकामन ला ढाँकथें। अलहन ले बचे के उदिम के रुप मा ये सब हा पुरखा के चलाय हरय। एखर बदला मा ये यन ला चाँउर, दार, दार, साग-भाजी अउ उचित के ईनाम मिलथे। ये सब तिहार के खुशहाली हरय।
                                     हरेली के दिन हमर गँवई-गाँव मा सबले पहिली बड़े फजर ले गाँव के देवी-देवता मन के सुमरनी करे जाथे। ठाकुर देवता, महामाई, सीतला दाई मन के मान-मनउव्ल, पूजा-पाठ गाँव के बईगा बबा हा बिधि-बिधान ले करथे। गाँव भर के जान माल ला कोनो प्रकार के अलहन, रोग-माँदी अउ परसानी ले बचाय खातिर अइसन करे के प्रथा हावय। सावन के महीना मा हरेली आय के आगू कोनो प्रकार के अलहन ले अपन घर परवार ला बाचाय खातिर घर के कोठ मा , कोठा मा गोबर ले हाथ के अँगरी मन ले सोज-सोज डाँड़ खींचे जाथे। ये सोज डाँड़ खींचई हा एक प्रकार के सुरक्छा घेरा माने जाथे। गोबर ले सोज डाँड़ के सँग मनखे, गाय, बइला, शेर अउ आनी बानी के परतीक चिन्हा ला कोठ मन मा लिखे जाथे। अइसन घर परवार अउ पसुधन ला कोनो नसकानी ले बचाय के उदिम हरय।
                             गवँई गाँव के नस-नस मा लहू-रकत बरोबर समाय ये हरेली तिहार हा आस्था अउ बिसवास के संगे-संग अंधबिसवास के घलो चिन्हउटा हरय। ये तिहार  संग जतका मनखे के आस्था अउ बिसवास जुरे हे ओतके टोटका, जादू-टोना अउ, तंतर-मंतर के अंधबिसवास घलाव भरे परे हावय। सावन अमावसिया, भादो अमावसिया, कुवाँर अमावसिया अउ कारतिक अमावसिया के दिन हा जंदर-मंतर अउ तंतर बर बड़ शुभ माने गे हे। इही मा सावन अमावसिया (हरेली) के दिन हा सबले सिद्ध, सुफल अउ शुभफलदायी माने जाथे। सावन अमावसिया के रतिहा हा अपन सिद्ध अउ उपासना बर सबले जादा महत्तम होथे। हरेली के दिन हाँसी-खुशी अउ खेल तमाशा मा बीत जाथे फेर रतिहा बेरा जंतर-मंतर के अनैतिक खेल हा शुरु होथे। हरेली के रतिहा हा बइद, बइगा, जदुहा-टोनहा, टोनही जइसन साधना करइया मन बर बरदानी रतिहा माने गे हावय। इही दिन कई ठन गवँई-गाँव मा नगमत साधना घलो करे जाथे जौन हा साँप के काटे ले संबंधित होथे। अइसन गोठ के कोनो अधार नइ रहय। जिहाँ असिक्छा अउ अग्यान के अँधियारी घपटे रथे उहें अंधबिसवास के के नार हा छलछलथे। गयान के अँजोर ले भरम अउ अंधबिसवास के अँधियारी पल्ला भागथे।
                               हरेली हा धरती मा हरियर-हरियर बगरे हरियाली अउ खुशहाली के तिहार हरय। अपन हरियर खेती-खार , धनहा-डोली मा धान के हरियर नान्हे बिरवा ला देख के मन हा हरसाथे। परकीति मा सँचरे हरियर रंग हा सबके मन मा हरियाली भर देथे। इही हरियर रंग के सुघराई के सेती ये तिहार के नाँव हरेली परे हावय। हमर खेती-किसानी वाल राज मा हरेली के परब हा जन-जन के जिनगी मा रचे-सबे हावय एखर सेती हरेली हा लोक परब के दर्जा पाय हे। गाँव-गवँई के आत्मा मा हरेली बसे हावय। फेर आज हरेली के तिहार हा सुन्ना अउ उख्खड़ परत जावत हे। हरेली खुशहाली ले जादा मंद-मउँहा पी खा के झगरा मताय के तिहार होवत हावय। गाँव-गवँई मा येला अब छोटे होरी के नाँव ले सोरियाथें।  नंदावत हरेली के परंपरा ला आज फेर पोठ करे के जरुरत हावय। आधुनिकता के भेंट चढ़त हमर आस्था अउ बिसवास ला बचाय के उदिम अवइया नवा पीढ़ी बर हमन ला जुरमिल के करना चाही। बछर के पहिलाँवत तिहार ला हाँसी-खुशी अउ बड़ उछाह ले मनाना चाही। खुशहाली के हरियाली मा अग्यान अउ अंधबिसवास के होरी जला देना चाही। अंधबिसवास अउ भरम हा समाज बर अमरबेल जइसन होथे। हरेली तिहार हरियर-हरियर , सुग्घर-सुग्घर रीति-नीति ला पुरखा के परंपरा मान के येला पोठ करे के सयी उदिम हमर समाज ला करना चाही। हरेली तिहार कखरो सुवारथ साधे के , कोनो के अहित करे के, कोनो ला दुख-पीरा दे के तिहार बिल्कुल नो हे। टोनहा-टोनही, ठुआ-टोटका अउ जादू-मंतर मन हा सिरिफ मन के भरम भर आय अउ कुछु नो हे। असिक्छा, अग्यान अउ ओखर ले उपजे अंधबिसवास हा कोनो देश अउ समाज बर हितवा नइच हो सकय। हरेली ला इही संदेश देथे के हाँसी-खुशी मन मा हे ता सरी दिन हरियाली होथे। मनखे के मन भितरी गयान के हरियाली हा असल हरेली कहाथे। अंतस के हरेली हा जिनगी ला जगमगाथे।

लेखन - कन्हैया साहू "अमित"**




23 comments:

  1. छन्द खजाना मा छंद के छ परिवार के शानदार हरेली विशेषांक।
    सादर प्रणाम गुरुदेव।

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  2. अइसन कऊन जघा हम पाबो पबरित मया दया के।
    देवइया ए ज्ञान पेड़ जस मानौ बोध गया के।।
    हम सबो के परम सौभाग्य आय के श्रद्धेय अरुण निगम भैया कस हमला गुरु मिलिन जिंकर सरलग मार्गदर्शन मा हमर परिवार एक के एक्कईस होवत हे...
    जम्मो झन ल सादर प्रणाम सहित हरेली तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाईजी.....

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  3. सब झन बढिया लिखे हव, फेर हमर मन से एक भी गलती नहीं होना चाहिए, ए बात के ध्यान रखना हे।

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  4. वाहःहः एक से बढ़के एक हरेली विशेषांक
    रचना हवय।
    सबो भाई मन ला गाड़ा गाड़ा बधाई

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  5. गुरूजी ला सादर नमन

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  6. हरेली के शानदार विशेषांक गुरूदेव। जम्मो रचनाकार मन ला हार्दिक बधाई

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  7. हरेली के शानदार विशेषांक गुरूदेव। जम्मो रचनाकार मन ला हार्दिक बधाई

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  8. वाह गुरुदेव सुग्घर हरेली विशषांक, सादर प्रणाम

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  9. गुरुजी के चरण वंदन, आप सबो ल हरेली तिहार के बधाई,

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  10. हरेली विशेषांक के रचना मन ला पढ़ेंव ।सिरतोन मा मन हरियर होगे। हमर छत्तीसगढ़ के पहिली तिहार हरेली उपर छंद के छ परिवार के यशस्वी छंदकार मन के छंद अउ आलेख मन ला मोहत हे। ये सुखद बेला मा प्रणम्य गुरुदेव निगम जी संग जम्मो छंदकार मन ला हरेली तिहार के बधाई अउ शुभकामना देवत सादर प्रणाम। नमन।

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  11. हरेली विशेषांक मा सुग्घर रचना। सादर प्रणाम गुरुदेव

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  12. हरेली विशेषांक मा सुग्घर रचना। सादर प्रणाम गुरुदेव

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  13. आप सब के सुग्घर हरेली संग्रह के आनंद मिलिस

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  14. आप सब के सुग्घर हरेली संग्रह के आनंद मिलिस

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  15. हरेली विशेषांक बर गुरुदेव ला कोटि-कोटि नमन।
    आप सबो छंद साधक दीदी-भैया मन ला लोक परब हरेली के नँगत बधाई।

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  16. बहुत बढ़िया भईया जी

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  17. बहुत बढ़िया गुरुदेव।

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  18. बहुत बढ़िया सुघ्घर हरेली विशेषांक

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  19. हरेली विशेषांक ल पढ़ के मन हरियर होगे। अइसन विशेषांक हमर 'छन्द के छ' परिवार के जीवन्तता के परिचायक आय।

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  20. बहुत बढ़िया रचना गुरुदेव जी

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  21. बहुत बढ़िया रचना गुरुदेव जी

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  22. बहुत सुग्ग्घर आयोजन है गुरुदेव ल सत सत प्रणाम । एइसे विशेषंक प्रकशित होते रहना चाही

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