परहित बर जी ले....
सत मारग धर ले,कारज कर ले,सही गलत ला,सोंच जरा।
कर काम भलाई, जग अच्छाई,फूँक फूँक रख,पाँव धरा।।
तब पाबे जग मा,सुख हर पग मा,मान मिले जी,सबो करा।
पर हित बर जी ले,दुख ला सहिले,राख जगत ला,हरा भरा।1।
नदियाँ कस पानी,हो जिनगानी,छोड़ किनारे,बीच बहै।
देखय ना पाछू,बोहय आघू,बीच भँवर ना,मोड़ कहै।।
नरवा का जानै,चिखला सानै,भाव भजन ला,दूर रहै।
गंगा मा मिलथे,पाप ह धुलथे,जे भवसागर,पीर सहै।2।
धीरज रख बाबू,खुद मा काबू,पाँव बढ़ा कर,काम भला।
तब मान ह मिलही,नाम ह चलही,तोर मोर झन,सोच चला।।
सुख के हे गहना,मिलके रहना,भाग जही सब,दूर बला।
जग मा उजियारी,कर सँगवारी,सत्य नाम के,जोत जला।3।
सादा के गमछा,लगथे अच्छा,बाँध मूड़ मा,मान मिले।
सत के ये चिनहा,भाथे मन हा,फूल कमल कस,देह खिले।।
पुरखा के थाती,सुमता बाती,राख बने तैं,नाम चले।
भागय अँधियारा,हो उजियारा,पाप मिटे सब,जोत जले।4।
छन्दकार - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बहुत बहुत धन्यवाद गुरुदेव!!छंद खजाना म मोर रचना ल जगह दिये बर।।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया, बहुत सन्देश परक रचना हे आदरणीय।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया छंद सृजन हे पात्रे भाई
ReplyDeleteबहुत बढ़िया बधाई हो पात्रे भईया जी
ReplyDeleteशानदार त्रिभंगी छंद लिखे हव भैया जी। सादर बधाई।
ReplyDeleteशानदार त्रिभंगी।हार्दिक बधाई पात्रे जी।
ReplyDeleteबहुत सुग्घर रचना सर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर छंद रचना सत्यबोध गुरुजी।वाहहहह
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर रचना
ReplyDeleteलाजवाब रचना गुरुजी.🙏🙏
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