रहव जी साव चेत
(1)
गिरथे असाड़ पानी, आथे कीरा आनी-बानी, होय चाहे कोनो बेरा, रहव जी सावचेत।
ठँव-ठँव बिच्छू-आरु, रेंगथे गा साँप-डेरु, खोर गली रद्दा बाट,परिया जी खार खेत।
बिला तरी दँद पाथें, उप्पर मा झट आथें, एती-ओती बइठे जी, रइथें वो हवा लेत।
होथें उँन बिखहर,जाथें घर मा खुसर, गिर जाथें खाना पानी, कर देथें अनहेत।
(2)
आल-जाल टार रखौ, रात दीया बार रखौ, कोंटा-कान्टा रहि जाथें, दिखै नही अँधियार।
रहै झन घर बिला, खोज सब माई-पिला, मुँद दव छाब ओला, माटी पखरा ला डार।
बाट चलौ देख-ताक, कर लौठी ठुक-ठाक, पहिरव पनही गा, जाव जब खेत खार।
दिखै साँप कोनो मेर, चौज झन करौ घेर, खेलौली मड़ावा झन, करौ झन मार-धार।
(3)
होय कभू अलहन, देरी तुम करौ झन, लेगव गा अस्पताल, झटपट दे धियान ।
गँवखरा गा दवई, दय कोनो हँथवई, खवावा ना बिना जाने, कर देही नसकान।
करावा ना फूँक झार, बइगा के उपचार, परव ना चक्कर मा, होथें उन अनजान।
जीव हे त जग हाबै, खुशी पग-पग हाबै, सावधानी हे जरूरी, हे कहत गा 'मितान'।
रचनाकार- मनीराम साहू 'मितान' कचलोन ( सिमगा) छत्तीसगढ़
गुरुदेव सादर प्रणाम। आप बहुत सुग्घर ढंग ले रचना ला
ReplyDeleteब्लाग मा ठउर दे हव सँगे संग फोटू ला घलो ठउर दे हव। आप ला बहुत-बहुत धन्यवाद, आभार।
बहुत बढ़िया आदरणीय।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteवाह सुग्घर सृजन।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteगज़ब मितान जी
ReplyDeleteगज़ब मितान जी
ReplyDeleteवाह्ह्ह् निचट सुग्घर भइया जी
ReplyDeleteवाहःहः भाई बहुते सुघ्घर सृजन
ReplyDeleteबहुत बढ़िया भैया,,
ReplyDeleteशानदार रचना भैया आपला बहुत बधाई
ReplyDeleteवाह मितान भैया। घनाक्षरी छंद मा बेहतरीन रचना। सादर प्रणाम अउ बधाई।
ReplyDeleteसुघ्घर संदेश देवत सुघ्घर रचना बड़े भइया
ReplyDeleteगजब सुग्घर सर
ReplyDeleteगजब सुग्घर सर
ReplyDeleteबड़े भैयाजी बड़ सुग्घर सिरजन।
ReplyDeleteवाहहह बड़ सुन्दर रचना सर जी
ReplyDeleteआप सब ला बहुत बहुत धन्यवाद आभार
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