सरसी छंद - श्री चोवा राम "बादल "
राखी तिहार मा
1 बहिनी के वचन
तिलक सार भैया के माथा , राखी ला पहिनाय ।
साज आरती करिहँव सुग्घर ,भाग अपन सँहराय।।
डार मिठाई मुँह भैया के , रोटी खीर खवाय।
हाँस हाँस इँतराहूँ गउकिन , अब्बड़ मया जताय ।।
सदा सुखी राहय भइया हा , मन मा भर के भाव ।
देव मनाहूँ हाथ जोर के, छोंड़े भेद दुराव ।।
नता हवय भाई बहिनी के , सब रिश्ता ले सार ।
दउँड़त आथे किशन सहीं वो ,सुन के मोर पुकार ।।
पाँव गड़ै झन काँटा कभ्भू ,सुखी रहै परिवार ।
मइके मा बोहावत राहय ,दया मया के धार।।
मोर दुलरवा भइया रखही , ए राखी के लाज ।
रक्षा खातिर ठाढ़े रइही , बीर सँवागा साज ।।
2 भाई के वचन
बहिनी मोर भरोसा रखबे ,तैं हच प्राण अधार ।
मोर रहत ले तोर दुवारी , नइ आवय अँधियार ।।
सब दुख ला तोरे हर लेहूँ , देहूँ अँचरा फूल ।
तीज तिहार लिहे बर आहूँ ,नइ जाववँ मैं भूल ।।
मातु पिता के आच दुलौरिन ,मइके के तैं शान ।
जेन माँग ले वो सब मिलही , लहुटय नहीं जुबान ।।
भाँचा भाँची अउ दमाँद के , हवय इहाँ अधिकार ।
हिरदे भितरी रथौ समाये , मोर सबो परिवार ।।
रक्षा बंधन बाँधे हच तैं ,तेकर अबड़ प्रताप ।
तोरो रक्षा होही बहिनी ,हर संकट ला नाप ।।
तोर मोर में का अंतर हे ,नस नस एके धार ।
भले हवन छछले दू शाखा , हावय एके नार ।।
3 शिष्य के वचन
पिता तुल्य तैं हे गुरुवर जी , पूरा करबे आस ।
मन भितरी के मइल हटा के , भर दे सुघर उजास ।।
ए दुनिया दारी के चक्कर , मन हावय बउराय ।
रक्षा धागा बाँध कलाई , लेबे नाथ बँचाय ।।
देव ब्रिहस्पति कस बन जाबे , मैं हावँव मतिमंद ।
झन पावँव मैं तोर हृदय के , दरवाजा ला बंद ।।
जिनगी डोंगा डगमगात हे, बूड़ जही मँझधार ।
तहीं डोंगहा बनके आके , लेबे आज उबार ।।
मन डोरी ला तोर चरण मा , बाँध रखौं थिरबाँव ।
दे असीस सिर ऊपर छाहित , राहय किरपा छाँव ।।
मोरो राखी के तिहार मा ,हावय अतके आस ।
छंद बंध मा मैं बँध जावँव , दुख के होवय नास ।।
छन्दकार - श्री चोवाराम "बादल"
छन्नपकैया छंद - आशा देशमुख
छन्नपकैया छन्नपकैया ,किसम किसम के राखी।
भाई बहिनी मन चहकत हे ,जइसे चहके पाखी।1।
छन्नपकैया छन्नपकैया,भैया देखय रस्ता।
अबड़ मोल राखी के बँधना, झन जानव गा सस्ता।2।
छन्नपकैया छन्नपकैया ,मन पहुना लुलवाथे।
ननपन के सब मान मनौवा ,अब्बड़ सुरता आथे।3।
छन्नपकैया छन्नपकैया ,भठरी मन सब आवै।
पहिली के सब रीत चलन अब ,जाने कहाँ नँदावै।4।
छन्नपकैया छन्नपकैया ,में बहिनी मति भोरी।
देखत हँव भाई के रद्दा ,धरके मया अँजोरी।5।
छन्नपकैया छन्नपकैया,घर घर बने मिठाई।
माथ सजे हे मंगल टीका, राखी सजे कलाई।
बरवै छंद - आशा देशमुख: आशा देशमुख
किसम किसम के राखी ,सजे दुकान।
ये डोरी के होवय ,बड़ सम्मान।1।
बहिनी मन सज धज के,देखय बाट।
भैया बर खोले हे ,द्वार कपाट।2।
सुघ्घर राखी लानय ,थाल सजाय।
खीर मिठाई जेवन ,बने बनाय।3।
भाई बहिनी कुलके ,दूनो आज।
ये तिहार ला मानय ,सबो समाज।4।
भाई बर बहिनी के ,मया दुलार।
पबरित डोरी बाँधय,ये संसार।5।
सजे कलाई राखी ,माथ गुलाल।
ये तिहार ला मानय,जग हर साल।6।
हमर देश के पबरित ,आय तिहार।
सुघ्घर लागय संस्कृति ,अउ संस्कार।7
छन्दकार - आशा देशमुख, NTPC कोरबा
इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध" के रोला छंद
*राखी*
मया पिरित के डोर,हवय ये बंधन राखी।
भाई के विश्वास,उड़य बहिनी धर पाखी।।
करम लिखाये जान,जगत मा मिलथे बहिनी।
महकावय दू द्वार, फूल ये खिलके टहनी।1।
देख जगत के हाल,गोहरावत हे बहिनी।
खड़े दुसासन खोर,गली दुर्योधन शकुनी।।
कोन बचाही लाज,खड़े हे हवस पुजारी।
इज्जत राखे मोर,फेर नइ आय मुरारी।2।
बनके आग दहेज,जलावत हौ बेटी ला।
जरके होहू राख,सकेले धन पेटी ला।।
आज हवे दिन तोर,समय आघू पछताबे।
सुरता आही बात,गोद जब बेटी पाबे।3।
बेटा के रख चाह,कोंख करथौ हत्या ला।
देख भला इतिहास,सवित्री अउ सत्या ला।।
बेटी से संसार,बात मानव जी भाई।
राखी बाँधै कोन,हमर जी हाथ कलाई।4।
देवत शुभ संस्कार,पढ़ावव बेटी बेटा।
गढ़ही नेक समाज,दूर अँधियारी मेटा।।
माँगव रक्षा आज,सबो बहिनी भाई से।
राखी के उपहार,बँधे हाथ कलाई से।5।
छन्दकार - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
ताटंक छंद - श्री मनीराम साहू 'मितान'
देखत होही रस्ता मोरे, बिहना ले गड़िया आँखी।
दीदी घर मैं जाहू दाई, बँधवा के आहूं राखी।1।
बारा महिना होगे हाबय, नइ देखे अँव ओला वो।
रहि-रहि के बड़ आवत रइथे, ओकर सुरता मोला वो।2।
सजा-धजा के राखे होही, मिठई राखी ला थारी।
तरपँवरी खजवावत हाबय, मोर करत होही चारी।3।
बने जोर दे रोठी-पीठा, अरसा खुरमी सोंहारी।
खाहीं सुग्घर भाँची भाँचा, खुश ओमन होहीं भारी।4।
भाँटो ला तो भाथे दाई,गँहू चना के होरा वो।
ओकर बर मैं लेके जाहूं, झटकुन करदे जोरा वो।5।
छन्दकार- श्री मनीराम साहू 'मितान'
कचलोन(सिमगा) जिला- बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़
*राखी* - छन्नपकैया छन्द - श्री अजय अमृतांशु
छन्न पकैया छन्न पकैया,पक्का हम अपनाबो।
नइ लेवन अब चीनी राखी,देशी राखी लाबो।1
छन्न पकैया छन्न पकैया,बहिनी आँसों आबे।
हमर देश के रेशम डोरी,सुग्घर तैं पहिराबे।2
छन्न पकैया छन्न पकैया, सावन आय महीना।
हमर देश के राखी ले के,पहिरव ताने सीना।
छन्न पकैया छन्न पकैया,चलन विदेशी छोड़ी।
किसन सुभद्रा जइसे भैया,राहय सब के जोड़ी।
छन्न पकैया छन्न पकैया,राखी कीमत जानौ।
मया बँधाये बहिनी मन के,येला तुम पहिचानव।5
छन्न पकैया छन्न पकैया,बहिनी भेजे राखी।
सरहद मा भाई मन पहिरे,देवत हे सब साखी।6
छन्न पकैया छन्न पकैया,ये तिहार हे पावन।
बहिनी जब पहिरावय राखी,लागय जी मनभावन।7
छन्दकार - श्री अजय अमृतांशु, भाटापारा
भोजली दाई (मनहरण घनाक्षरी) - श्री जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
माई खोली म माढ़े हे,भोजली दाई बाढ़े हे
ठिहा ठउर मगन हे,बने पाग नेत हे।
जस सेवा चलत हे, पवन म हलत हे,
खुशी छाये सबो तीर,नाँचे घर खेत हे।
सावन अँजोरी पाख,आये दिन हवै खास,
चढ़े भोजली म धजा,लाली कारी सेत हे।
खेती अउ किसानी बर,बने घाम पानी बर
भोजली मनाये मिल,आशीश माँ देत हे।
अन्न धन भरे दाई,दुख पीरा हरे दाई,
भोजली के मान गौन,होवै गाँव गाँव मा।
दिखे दाई हरियर,चढ़े मेवा नरियर,
धुँवा उड़े धूप के जी ,भोजली के ठाँव मा।
मुचमुच मुसकाये,टुकनी म शोभा पाये,
गाँव भर जस गावै,जुरे बर छाँव मा।
राखी के बिहान दिन,भोजली सरोये मिल,
बदे मीत मितानी ग,भोजली के नाँव मा।
भोजली दाई ह बढ़ै,लहर लहर करै,
जुरै सब बहिनी हे,सावन के मास मा।
रेशम के डोरी धर,अक्षत ग रोली धर,
बहिनी ह आये हवै,भइया के पास मा।
फुगड़ी खेलत हवै,झूलना झूलत हवै,
बाँहि डार नाचत हे,मया के गियास मा।
दया मया बोवत हे, मंगल ग होवत हे,
सावन अँजोरी उड़ै,मया ह अगास मा।
राखी के पिंयार म जी,भोजली तिहार म जी,
नाचत हे खेती बाड़ी,नाचत हे धान जी।
भुइँया के जागे भाग,भोजली के भाये राग,
सबो खूँट खुशी छाये,टरै दुख बान जी।
राखी छठ तीजा पोरा,सुख के हरे जी जोरा,
हमर गुमान हरे,बेटी माई मान जी।
मया भाई बहिनी के,नोहे कोनो कहिनी के,
कान खोंच भोजली ला,बनाले ले मितान जी
छन्दकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
राखी तिहार के आप सबो ला गाड़ा गाड़ा बधाई अउ शुभकामना💐🙏
दोहावली - श्री ज्ञानुदास मानिकपुरी
भाई बहिनी के मया,देखत हे संसार।
जिनगी भरके बंधना,राखी आज तिहार।।
चंदन कुमकुम आरती,देख सजाये थार।
मिठई नरियर हे रखे,पावय अउ उपहार।।
दया मया हा झन छुटै,रखबे भइया याद।
लोटा भर पानी मिलै,अतके हे फरियाद।।
धन दौलत मा तौल झन,बड़का हे परिवार।
टूटय झन रिश्ता नता,इही हमर संस्कार। ।
मोर मया ला झन समझ,रेशम डोरी तार।
जिनगी भर राहय बने,दया मया हे सार।।
बेटी बहिनी के बिना,सुन्ना घर परिवार।
भेद-भाव ला छोड़ दव,ये जग के आधार।।
छन्दकार - श्री ज्ञानुदास मानिकपुरी, चंदैनी कवर्धा
राखी - श्री सूर्यकान्त गुप्ता
बँधय बँधावय नहीं राखी डोरी के जी गाँठ,
होवत रथे ए ढिल्ला घेरी बेरी आज तो।
काबर बेटी माई दुष्कर्म के शिकार होथे,
सरे आम उंकर बेचात हवै लाज तो।।
आथे हर साल ए तिहार भाई बहिनी के,
रहिथे मगन नेंग रीत मा समाज तो।
हिरदे ले जागै प्रीत निभय निभावँय बने,
पबरित रिश्ता ऊपर गिरै झन गाज तो।।
छन्दकार - श्री सूर्यकान्त गुप्ता, सिंधिया नगर दुर्ग (छ.ग.)
कुकुभ छंद - श्री राजेश कुमार निषाद
चलना भाई आज हमन गा, राखी जाके बँधवाबो।
रहिथे बहिनी हमरो दुरिहा,देख हमन वोला आबो।।
मया पिरित के हमरों बँधना, हावय बहिनी ये राखी।
लइका पन मा राहस तैंहर, हमरों वो आखी आखी।।
चल दे हावस तैंहर दुरिहा,सुरता तोरे बड़ आथे।
भेजे हावस लिखके खत तैं,पढ़के मन ला ओ भाथे।।
राहस तिर मा तैंहर बहिनी,बाँधस राखी ल कलाई।
माँगस तैंहर वचन हमर से,करबे भइया ग भलाई।।
हमर मया ला बाँधे रहिबे,राखी के ये बँधना मा।
आवत जावत रहिबे बहिनी,सदा हमर ओ अँगना मा।।
छन्दकार - श्री राजेश कुमार निषाद
ग्राम चपरीद पोस्ट समोदा तहसील आरंग जिला रायपुर (छ. ग.)
गीत-"राखी आगे"
श्री बोधन राम निषाद राज
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राखी के आगे हे तिहार,
सखी रे चलो नाचो गाओ।
भाई-बहन के ये प्यार,
सखी रे चलो नाचो गाओ।।
भइया हमारो आवत हे घर ले,
रद्दा अगोरत राखी ला धर ले।
पारत हँव गली ले गोहार,
सखी रे चलो नाचो गाओ।
राखी के आगे हे तिहार...........
आथे तिहार दीदी बछर भर में,
सुख के दिन आथे हमर घर में।
राखी के ये बँधना हमार,
सखी रे चलो नाचो गाओ।
राखी के आगे हे तिहार...........
माथे मा चन्दन टीका लगाबो,
भइया ले सुग्घर आशीष पाबो।
हमरो तो हावय अधिकार,
सखी रे चलो नाचो गाओ।
राखी के आगे हे तिहार...........
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छन्दकार:-
श्री बोधन राम निषाद राज
व्याख्याता वाणिज्य विभाग
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम (छ.ग.)
छप्पय छंद - श्री मोहनलाल वर्मा
सावन पुन्नी खास,मनाथें रक्षाबंधन ।
बहिनी राखी बाँध,लगाथे रोली चंदन।
भाई दे उपहार,मया बहिनी के पाथे।
रक्षा के जब डोर,कलाई मा बँध जाथे।।
भाई-बहिनी के मया,हे अटूट संसार मा।
रक्षाबंधन के परब,दिखथे जे परिवार मा।।
छन्दकार - श्री मोहनलाल वर्मा ,
ग्राम-अल्दा,तिल्दा,रायपुर(छ.ग.)
अमृतध्वनि छंद - श्री दिलीप कुमार वर्मा
रेशम डोरी बाँध के,माँगय दुआ हजार।
भाई हा जुगजुग जियय,सुखी रहे घरद्वार।
सुखी रहे घर, द्वार कभू ना,विपदा आवय।
छाहित राहय,सुख के बादर, दुख झन छावय।
ऊपर वाले,अब तो सुनले,बिनती मोरी।
दया मया भर,बहिनी बाँधय,रेशम डोरी।
छन्दकार - श्री दिलीप कुमार वर्मा
बलौदा बाज़ार, छत्तीसगढ़
आल्हा छन्द - श्रीमती आशा देशमुख
ये राखी के रीत चलागन ,कोन करे हावय शुरुआत।
आवव सुनलव भाई बहिनी ,कथा कहानी के ये बात।1।
राजा बलि के परछो लेबर ,वामन रूप धरे भगवान।
तीन पाँव भुइँया ला माँगय ,राजा बलि देवत हे दान।2।
एक पाँव मा धरती नापय ,एक पाँव ला रखे अकास।
एक पाँव मा बलि ला नापय, जा बलि कर पाताल निवास।3।
वचन निभावय बलि राजा हा ,तब बोलत हावय भगवान।
माँग जेन चाही बलि तोला ,मैं देहँव ओही वरदान।4।
मोर राज्य के रक्षा करबे ,बन जा प्रभु मोरे रखवार।
राज सिंहासन बइठे बलि अउ ,विष्णु देव हे पहरेदार।5।
येती लक्ष्मी बइठे सोचे, चिंता दिखन लगय अब माथ।
बड़ दिन होगे हावय अब तो,कहाँ गए हे मोरे नाथ।6।
जान डरिस लक्ष्मी हर जइसे ,प्रभु हर रमे लोक पाताल।
जग हित बर सब खेल करत हे ,लीलाधारी दीनदयाल।7।
लक्ष्मी पहुँचे बलि के द्वारी ,रक्षा सूत्र रखे हे थाल।
लक्ष्मी बनगे बलि के बहिनी ,माथ लगावय तिलक गुलाल।8।
भाई बनके बलि हा बोलय ,माँग बहिन कोनो उपहार।
दे दे भैया मोला तैहर ,तोर खड़े हे पहरेदार।9
तब ले भाई अउ बहिनी के, रक्षा बंधन बनिस तिहार।
बड़ पबरित ये राखी रिश्ता ,मान त हे जम्मों संसार।10
हरिगीतिका छंद
रक्षा करव रक्षा करव ,निर्बल दुखी असहाय के।
बगराव ये जग मा मया, झन सँग धरव अन्याय के।
भाई बहिन बंधु सखा,पबरित रखव सबसे नता।
ये देश तो परिवार हे ,मन मा रखव बस नम्रता।
छन्दकार - श्रीमती आशा देशमुख
सरसी छंद आधारित गीत - श्री ज्ञानुदास मानिकपुरी
मोर मयारू भइया सुनले,अतके मोर गुहार।
दया मया जिनगी भर देबे,पावँव संग दुलार।
1-ननपन मा संग संग खेलन,गुजरे कतको साल।
बिधि के लिखना कोन मिटाथे,जावत हँव ससुराल।
शोर खबर ला लेवत रहिबे,आही तीज तिहार
दया मया-------
2-सोना चाँदी रुपिया पइसा,नइ चाही उपहार।
मीठ बचन लोटा भर पानी,इही मोर बर सार।
मोर मयारू भइया सबले,हावय गा दिलदार।
दया मया-----
3-एक बचन बस माँगव भइया,राखी आज तिहार।
नसा पान ले दुरिहा रहिबे,झन भुलबे संस्कार।
कर लेबे दाई बाबू के ,सेवा अउ सत्कार।
दया मया-----
छन्दकार - श्री ज्ञानुदास मानिकपुरी
दोहा छंद - श्री पोखनलाल जायसवाल
बहिनी सुरता ला लमा , राखी धर जब आय ।
भाई मया परेम के , बँधना मा बँध जाय ।।
बहिनी राखी बाँध के , माथा तिलक लगाय ।
भइया के कर आरती , मिठई घला खवाय।।
बहिनी राखी बाँध के , माँगय ये उपहार ।
पावत रहँव दुलार ला , आके तोर दुआर ।।
भाई बहिनी ले कहय , टूटन नइ दँव आस ।
सुख दुख मानन संग मा , करबे तैं परयास ।।
बचा बचा के राखबे , मइके के तैं लाज ।
मया लुटा ससुरार मा ,करबे तैंहर राज ।।
छन्दकार - श्री पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह ( पलारी ) जिला बलौदाबाजार भाटापारा (छ ग)
लावणी छंद-श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
बहिनी के बाँधे राखी
पावन पबरित नेह निशानी,बहिनी के बाँधे राखी।
वेद मंत्र के शक्ति समाहित,जे मा गुरुवाणी साखी।
केवल डोरी नोहय राखी,बहिनी के विश्वास हरे।
भाई बर अंतस अराधना,फलदायक उपवास हरे।
बहिनी जस असीस के मूरत,धरे आरती के थाली।
माथ लगावय चंदन टीका,बाँधय धागा बलशाली।
रक्षा कवच हरय भाई बर,राखी के पावन धागा।
नेह नता के रक्षा होही,भाई के सिर हे पागा।
मान-गउन बहिनी के करिहँव,अस भाई भाखा भाखय।
चिरंजीव जीवन धन यश बल,बहिनी भाई बर मांगय।
कतको झन मन बाँधँय राखी,रुखराई ला रस्ता मा।
हमर पढ़इया लइकन बाँधँय,कापी पुस्तक बस्ता मा।
घर के मुखिया बाँधय राखी,दरवाजा पूजाघर मा।
ईष्ट ग्रंथ मा दाबँय कतको,राखी ला पन्ना तर मा।
छन्दकार - श्रीसुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर,कवर्धा(छत्तीसगढ़)
ताटंक छन्द - श्री कुलदीप सिन्हा "दीप"
राखी तिहार
सावन महिना मा बहिनी मन, याद अबड़ के आथे जी।
बहिनी मन हा धर के राखी, भइया के घर जाथे जी।।
रेशम के डोरी ला बाँधे, माथा तिलक लगाथे जी।
बहिनी के रक्षा के वादा, भइया घलो निभाथे जी।।
पा के आशिष भइया मन ले, बहिनी खुश हो जाथे जी।
हँसी खुशी मा परब प्यार के,जुर मिल सबो मनाथे जी।।
इही बहाना मात पिता ला, देख सबो गा आथे जी।
बड़ सुघ्घर हे सावन महिना, मया प्रेम बगराथे जी।।
आही जब जब महिना सावन, तब तब राखी आही जी।
भाई बहिनी मन ला सुरता, येहा घलो कराही जी।।
छन्दकार - श्री कुलदीप सिन्हा "दीप"
रक्षा बन्धन के पावन बेला मा जम्मो गुरुदेव मन ला बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteरक्षा बन्धन के पावन बेला मा जम्मो गुरुदेव मन ला बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुतेच सुग्घर राखी विशेषांक हे गुरुदेव सादर प्रणाम
ReplyDeleteबड़ सुघ्घर संकलन गुरुदेव,आप सबो ल भाई बहिनी के पवित्र रिस्ता के तिहार रक्षा बंधन के गाड़ा गाड़ा बधाई।।
ReplyDeleteबड़ सुघ्घर संकलन गुरुदेव,आप सबो ल भाई बहिनी के पवित्र रिस्ता के तिहार रक्षा बंधन के गाड़ा गाड़ा बधाई।।
ReplyDeleteसुग्घर राखी विशेषांक हे गुरुदेव। सादर प्रणाम।
ReplyDeleteवाह वाह गुरुदेव।सादर प्रणाम।शानदार राखी विशेषांक।वाह वाह
ReplyDeleteबड़ सुघ्घर गुरुदेव
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर हे आज के राखी विशेषांक हा गुरुदेव
ReplyDeleteसादर प्रणाम
सुग्घर राखी विशेषांक गुरुदेव
ReplyDeleteसादर प्रणाम
सुग्घर राखी विशेषांक गुरुदेव
ReplyDeleteसादर प्रणाम
वाह्ह्ह वाह्ह्ह गुरुदेव गजब सुग्घर संकलन। सादर प्रणाम
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर संकलन हे गुरुदेव
ReplyDeleteकोटिशः आभार नमन
आप सब ल बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteराखी विशेषांक मा सुन्दर सुन्दर छंद संकलन गुरुदेव।एक ले एक लाजवाब!
ReplyDeleteसबके छंदबद्ध रचना पढ़के आनंद आगे
ReplyDeleteराखी विशेषांक मा अनुपम रचना मन के संग्रह हे,गुरुदेव। सादर नमन।
ReplyDeleteराखी विशेषांक सचमुच विशेष होंगे हे।जइसे राखी रंग रंग के होथे वइसने राखी के अवसर म लिखाये छंद अउ गीत मन रंग जमावत हे।जेन पाठक पढही ओखर मन गदगद हो जही।
ReplyDeleteहमर छंद खजाना में जैन भी गोता लगाही मालामाल हो जही अउ तिहार ह तिहार कस लागही।
गुरुदेव सादर नमन।
बहुत बढ़िया राखी विशेषांक हे गुरुदेव, आप मन हमर असन छोटे कलमकार मन ला छंद खजाना मा जगा दिए हो सच कहूँ ते कुछु केहे बर मोर तीर शब्द नइ हे। अइसन उदीम बर आप ला बहुत बहुत बधाई गुरुदेव, प्रणाम।
ReplyDeleteगुरुदेव मै रचना लिखे बर अउ पोस्ट करे बर पीछुवागे रहेंव।आपके आशीष मिलिस।सादर प्रणाम.....
ReplyDeleteमय ह वंचित रहिगेँव मोर गलती,मोर दुर्भाग्य।आप सब ल बधाई, बहुत सुघ्घर सुघ्घर रचना बर।अउ राखी विशेषांक म स्थान पाय बर।सबके रचना ह उत्कृष्ट हे।
ReplyDeleteराखी के पावन बेरा म आप मन के रचना मंच ल पूरा रंग दे हावय ,पढ़ के मन गदगद् होगे ,आप सबो ल बधाई
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