मनखे-मनखे एक बरोबर,जोहन कब समता आही |
खेलत हें समरसता कहिके,अब कब मानवता छाही |1|
संत पंथ पथ लानवँ कोनो,जेमा सत बहुरै संगी |
हितवा-मितवा सब झन बनजैं,कब मिटय मया के तंगी |2|
इहाँ गाय गोबर के खेला,बड़ राजनीति हे भाई |
जनता खोजय हितवा नेता,शासन तो बनगे खाई |3|
देखव भ्रष्टाचार खड़े हे,फेन साँप कस वो काढ़े |
कोनो मारत नइहे संगी,तब दानव जइसे बाढ़े |4|
पइसा वाला न्याय बिसाही,न्याय आस दुखिया राखे |
ढ़रही आँखी रोज लहू रे,कोन अगमजानी भाखे |5|
बलात्कार कइसे थमही जी,भारत माता तो सोंचे |
सिहरत-कलपत रोजे रोवत,दु:ख लाख हिरदे खोंचे |6|
रचनाकार : श्री असकरन दास जोगी
पता : ग्राम डोंड़की पोस्ट+तह.-बिल्हा जिला बिलासपुर छत्तीसगढ़
बहुत बहुत धन्यवाद गुरुदेव 🌸🌻💓🙏
ReplyDeleteलगे रहो भाई बहुत शानदार रचना लिखा है
ReplyDeleteधन्यवाद भईया जी
Deleteबहुत बढ़िया भाई,, परम् पूज्य गुरूदेव के फोटो के साथ रचना लिंक करना ,कत्तिक महिनत हमर मन बर गुरूदेव करथे, सादर नमन
ReplyDeleteसहीं कहत हव भईया जी.. . धन्यवाद
Deleteबहुतेच बढ़िया ताटंक छंद बधाई
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteवाह वाह सुग्घर ताटंक छंदबद्ध रचना।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसुग्घर रचे हव जोगी जी।बधाई।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद भईया जी
Deleteबढ़िया रचना भाई....
ReplyDelete"ढरही रोज लहू आँखी ले" कर लौ भाई मोर हिसाब से
बाकी गुरुदेव के आज्ञा...
जी भईया जी आपके मार्गदर्शन के पालन अवश्य करहवँ.... बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत सुन्दर सिरजन आसकरन भाई
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद मनी भईया जी
Deleteबहुत बहुत बधाई भइया जी, सुग्घर रचना पढ़े ल मिलिस
ReplyDeleteवाह्ह वाह्ह् सर जी
ReplyDeleteवाह्ह वाह्ह् सर जी
ReplyDeleteवाहहह वाहहह शानदार रचना सर जी।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना है भाई
ReplyDeleteसुग्घर जोगी जी
ReplyDeleteसुग्घर जोगी जी
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर ताटंक छंद!!बधाई हो असकरण भाई।।
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर आदरणीय
ReplyDeleteबधाई हम सर जी👌💐
ReplyDeleteशानदार ताटंक छंद भैया। सादर बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना,सुन्दर संदेश
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन से जोगी भाई ।
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