सार छंद
बिधि के बिधना कोन मिटाही,जो होना हे होथे।
अपन-अपन तकदीर हवै जी,पाथे कोनो खोथे।
दुख-सुख मा ये जिनगी बीतय,हाँसे कोनो रोथे।
खेलत-कूदत रहिथे कतको,जागे कोनो सोथे।
हे अमीर देखव जी कतको,अउ गरीब हे कोनो।
हवै बिछड़ के कोनो रोवत,अउ करीब हे कोनो।
कतको हावय सीधा-सादा,अउ अजीब हे कोनो।
कतको मनखे हवै अभागा,बदनसीब हे कोनो।
धन दौलत अउ महल अटारी,दू दिन के सँगवारी।
मनखे स्वारथ मा अँधरा हे,करे गजब मतवारी।
भूल मान मर्यादा जाथे,भाथे झूठ लबारी।
चारी चुगली हरदम भाथे,आदत ले लाचारी।
दया मया ला भूले रहिथे,हावय दानव बनके।
कइसे होगे देखव मनखे,चलथे रसता तनके।
करम धरम हा अउ नइ भावय,लड़े लड़ाई डँटके।
का मिले बतादे तँय संगी,जाँत-पाँत मा बँटके।
छन्दकार - श्री ज्ञानुदास मानिकपुरी
शानदार सार छंद।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसादर प्रणाम गुरुजी
Deleteबहुत बढ़िया आदरणीय, बधाई।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर जी
Deleteशानदार भैया
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर जी
Deleteबहुत बढ़िया भाई
ReplyDeleteसादर प्रणाम दीदी
Deleteबड़ सुग्घर,, बधाई ज्ञानु भाई जी।।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर जी
Deleteबड़ सुग्घर,, बधाई ज्ञानु भाई जी।।
ReplyDeleteबहुतेच सुग्घर रचना आदरणीय
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर जी
Deleteबहुतेच सुग्घर रचना आदरणीय
ReplyDeleteबहुत बढ़िया बधाई हो ज्ञानु भाई
ReplyDeleteवाहहह वाहहह सर शानदार सार छंद...
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर जी
Deleteबहुत सुंदर ज्ञानु मानिकपुरी भाई बहुत बहुत बधाई हो
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर जी
Deleteबहुतेच सुघ्घर!आपके सार छन्द म जीवन के सार समाए हे, ज्ञानू भइया।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद दीदी
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद दीदी
Deleteसुग्घर रचना सरजी बधाई।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद गुरुदेव
Deleteबहुत सुन्दर गुरुदेव जी
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर जी
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद सर जी
Deleteबहुत सुघ्घर सार छंद भाई ज्ञानु बधाई
ReplyDeleteसादर प्रणाम दीदी
Deleteसादर प्रणाम दीदी
Deleteविधि के विधान, बड़ सुग्घर सार छंद भैया जी
ReplyDeleteविधि के विधान, बड़ सुग्घर सार छंद भैया जी
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर जी
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