छप्पय छंद-द्वारिका प्रसाद लहरे
(1)
कोन डहर कब जान,छूट जाही रे पापीl
भज ले रे सतनाम ,छोड़ के आपा धापीl
कर ले सत के काम,सुखी रइही ये चोलाl
तज ले गरब गुमान,एक दिन जाना तोलाl
चल दया धरम ला बाँध ले,गठरी जइसन गाँठ गाl
तब यम राजा के लोक मा,खाबे रोटी आठ गाll
(2)
डारव पानी रोज,तभे पौधा बच पाही।
झन काटव गा पेंड़,काम जी अब्बड़ आही।
ताजा हवा बहाय,फूल फर लकड़ी देथे।
रोकय सुक्खा बाढ़,सबो के दुख हर लेथे।
कटय कभू झन पेंड़ हा, मिलथे सब ला छाँव जी।
राहय हरियर खार हा,शहर घलो अउ गाँव जी।।
(3)
धान हवय अनमोल,भूख ला हमर मिटाथे।
बासी पसिया पेज,राँध के सब झन खाथे।
झन छोड़व जी भात,आय महिनत के दाना।
मन हा रोवय मोर,देखथँव फेंकत खाना।
बड़ महिनत मा पाय हन,गाड़ा भर भर धान जी।
फोकट कभू उजार झन,येही सबके जान जी।।
(4)
होइस जी बलिदान,वीर नारायण राजा।
मारे कइ अंग्रेज,बजा दिस उँखरे बाजा।
तरसे सोनाखान,पेट बर दाना दाना।
लुट के जी गोदाम,लान दिन धान खजाना।
अइसन हमरे वीर ला,फाँसी होइस आज गा।
मातम छागे गाँव मा, कोन करय अब काज गा।।
(5)
होगे हवय बिहान,चलव अब जागव भइया।
पहिली कर लव काम,पार लग जाही नइयाँ।
दूनो कर ला जोड़,गुरू के वंदन गावव।
मात पिता के पाँव,परव आशीष ल पावव।
अइसन कर लव काम गा,कर लव पर उपकार जी।
येही मन भगवान हें,सकल जगत के सार जी।।
(6)
आगे महिना जाड़,काँपथे जिवरा भारी।
तिवरा भाजी भात,खवाथे थारी थारी।
आलू गोभी साग,चूरथे झारा झारा।
सेमी बरी पताल,बँटाथे आरा पारा।
अइसन हमरो गाँव हे,माँगे मिल जै साग जी।
एक दुसर घर खाय के,हावे हमरो भाग जी।।
(7)
होही लइका पास,जेन हा लिखही पढ़ही।
करही जब अभ्यास,तेन जी आगू बढ़ही।
पा के गुरु ले ज्ञान,भाग ला अपन जगाही।
अँधियारी ला दूर,भगा के नाम कमाही।
पढ़व लिखव जी रोज कन,बनहू नेक सुजान जी।
याद करव हर पाठ ला,बढ़ते जाही ज्ञान जी।।
(8)
बोली गुरतुर बोल,बहय मधुरस के धारा।
पाये बर जी मान, इही हावय जी चारा।
छत्तीसगढ़ी गोठ,सबो के मन ला भाथे।
सब भाखा ले पोठ,शान ला हमर बढ़ाथे।
जानय जम्मो देश हा,जस मधुरस कस घोल लव।
अब तो झन शरमाव जी,
छत्तीसगढ़ी बोल लव।।
(9)
झन कर गरब गुमान,एक दिन तँय मिट जाबे।
होबे बड़ धनवान,तभो ले नइ बँच पाबे।
जाबे जुच्छा हाथ,काय जी संगे जाही।
झन करबे जी लोभ,कोन दौलत ला खाही।
झूठ हवय सब शान हा,काया माटी जान ले।
दया धरम हा सार हे,कहना मोरो मान ले।।
(10)
पहिली अपने माथ, लगाबो धुर्रा माटी।
चलव मया के खेल, खेलबो भौंरा बाँटी।
खो खो नदी पहाड़,टीप मा सबो लुकाबो।
हरहा देही दाम,मजा ला सब झन पाबो।
गिल्ली डंडा खेलबो,अउ पुतरी के खेल जी।
दया मया ला जीत के,करबो सबसे मेल जी।।
(11)
रंग मया के डार,खेल लव गा पिचकारी।
एक बछर मा आय,मजा आथे बड़ भारी।
धर के हाथ गुलाल,मया के बोलव बोली।
टीका माथ लगाव,मना लव सब झन होली।
उड़थे गजब गुलाल जी,गाँव गली मा जोर हे।
मिलके गावँय फाग जी,सरा ररा के शोर हे।।
छंदकार-द्वारिका प्रसाद लहरे
व्याख्याता शा.उ.मा.वि.इन्दौरी जिला-कबीरधाम छत्तीसगढ़/
बड़ सुघ्घर छप्पय छंद लहरे जी।बधाई
ReplyDeleteगुरुदेव सादर प्रणाम ।।
Deleteवाह वाह लहरे जी।गजब के छप्पय सिरजाय हव।हार्दिक बधाई
ReplyDeleteगजब के छप्पय
Deleteगुरुदेव चरण वंदन।
Deleteशानदार सर
ReplyDeleteगुरुदेव सादर प्रणाम ।।
Deleteशानदार सर
ReplyDeleteसादर प्रणाम गुरुदेव
Deleteछंद खजाना म जघा दे बर गुरुदेव जी के सादर चरण वंदन।
ReplyDeleteमोर कक्षा के जम्मो गुरुदेव मन के आशीर्वाद ले लिख पावत हँव।।
ReplyDeleteमोर अहो भाग्य हे जेन भगवान ले बढ़के गुरू पाय हँव।।
सादर नमन
छप्पय छन्द मा बहुत सुग्घर प्रस्तुति सर जी। बधाई हो।
ReplyDeleteसादर आभार गुरुदेव
Deleteबहुत बहुत बधाई लहरे सर।सुग्घर सुग्घर छप्पय छंद सिरजाय हव..
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद सर जी
Deleteबहुत ही बढ़िया रचना आदरणीय लहरे सर बहुत-बहुत बधाई आपको कृपया मुझे बताएंगे कि छप्पय छंद में कितनी मात्रों की गणना की जाती है।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद भाई
Deleteवाह वाह एक ले बढ़के एक छप्पय छंद सर...बहुत बधाई आप ला
ReplyDeleteहृदय तल से आभार सर जी।
Deleteबहुत बहुत बधाई, आप मन के लिखे छप्पय छंद पढ़के बने लगिस ,भाव
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद
Deleteअब्बड़ सुग्घर छंद सर जी
ReplyDeleteसादर प्रणाम गुरुदेव
Deleteभर दे छप्पर फाड़, छंद अनमोल खजाना।
ReplyDeleteजीवन के ए सार, बंधु जस इहाँ कमाना।।
हवय कलम के धार, तेज लहरे जी तोरे।
भाई कलम तुँहार, जगत साहित्य अगोरे।।
हवय हमर शुभकामना, परचम तुम लहराव जी।
दया मया के विश्व मा, बढ़िया अलख जगाव जी।
बहुत बहुत बधाई भाई...👏👏👏👌👌👍👍🙏🌹
अब्बड़ सुग्घर आशीर्वाद गुरुदेव
ReplyDeleteआपके कृपा सदा बने राहय।
सादर प्रणाम ।।
सुग्घर सुग्घर विषय मा सृजन करे हव ,लहरे जी ।हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteगुरुदेव सादर प्रणाम ।।
Deleteबड़ सुग्घर सृजन बर बहुत बहुत बधाई
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